"ग्वादूर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "कब्जा" to "क़ब्ज़ा") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Gwadar-Port.jpg|thumb|300px|ग्वादुर बंदरगाह]] | |||
'''ग्वादूर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Gwadar) [[मकरान]], पश्चिमी [[पाकिस्तान]] में स्थित है। यह [[अरब सागर]] ([[फ़ारस की खाड़ी]]) के तट पर एक छोटा-सा बंदरगाह है, जिसका प्राचीन नाम 'बंदर' कहा जाता है। इसका उल्लेख [[टॉल्मी]], आर्थोगोरस और एरियन (90 ई.-170 ई.) आदि प्राचीन विदेशी लेखकों ने भी किया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=311|url=}}</ref> [[मध्य काल]] में इस स्थान का बहुत महत्व था और ईरान की खाड़ी तथा [[भारत]] के पश्चिमी तट पर स्थित पत्तनों के व्यापारिक जहाज़ यहाँ रुकते थे। | '''ग्वादूर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Gwadar) [[मकरान]], पश्चिमी [[पाकिस्तान]] में स्थित है। यह [[अरब सागर]] ([[फ़ारस की खाड़ी]]) के तट पर एक छोटा-सा बंदरगाह है, जिसका प्राचीन नाम 'बंदर' कहा जाता है। इसका उल्लेख [[टॉल्मी]], आर्थोगोरस और एरियन (90 ई.-170 ई.) आदि प्राचीन विदेशी लेखकों ने भी किया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=311|url=}}</ref> [[मध्य काल]] में इस स्थान का बहुत महत्व था और ईरान की खाड़ी तथा [[भारत]] के पश्चिमी तट पर स्थित पत्तनों के व्यापारिक जहाज़ यहाँ रुकते थे। | ||
*[[यूनानी]] लेखकों ने ग्वादूर के समीप [[समुद्र]] में अनेक प्रकार की विचित्र [[मछली|मछलियों]] का वर्णन किया है। | *[[यूनानी]] लेखकों ने ग्वादूर के समीप [[समुद्र]] में अनेक प्रकार की विचित्र [[मछली|मछलियों]] का वर्णन किया है। | ||
*1581 ई में [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने इस नगर को जलाकर नष्ट कर दिया था। | *1581 ई में [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने इस नगर को जलाकर नष्ट कर दिया था। | ||
*17वीं शती में [[कलात]] के ख़ान ने इस बंदरगाह पर अधिकार कर लिया। उसने इसे ओमान के शासक सैयद सुल्तानबिन अहमद को सौंप दिया। इस प्रकार [[1871]] ई. तक इस पर [[मस्कट]] के सुल्तान का | *17वीं शती में [[कलात]] के ख़ान ने इस बंदरगाह पर अधिकार कर लिया। उसने इसे [[ओमान]] के शासक सैयद सुल्तानबिन अहमद को सौंप दिया। इस प्रकार [[1871]] ई. तक इस पर [[मस्कट]] के सुल्तान का क़ब्ज़ा रहा। इस वर्ष से [[ब्रिटेन]] का एक राजदूत भी यहाँ रहने लगा था। | ||
*18वीं सदी के उत्तरार्ध में कलात के ख़ान नसीर ख़ाँ प्रथम ने ग्वादूर तथा पास की लगभग 300 वर्ग मील भूमि मस्कट के सुल्तान के भाई को आजीविका के लिये दे दी। | *18वीं सदी के उत्तरार्ध में कलात के ख़ान नसीर ख़ाँ प्रथम ने ग्वादूर तथा पास की लगभग 300 वर्ग मील भूमि मस्कट के सुल्तान के भाई को आजीविका के लिये दे दी। | ||
*[[पाकिस्तान]] का निर्मण होने पर ग्वादूर पत्तन तथा 'ओमान की खाड़ी' के उत्तर का कुछ क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में आ गया है। | *[[पाकिस्तान]] का निर्मण होने पर ग्वादूर पत्तन तथा 'ओमान की खाड़ी' के उत्तर का कुछ क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में आ गया है। | ||
*ग्वादूर के अधिकांश निवासी मछुए हैं, जो 'मेद' कहलाते हैं। | *ग्वादूर के अधिकांश निवासी मछुए हैं, जो 'मेद' कहलाते हैं। | ||
*इस स्थान का व्यापार 'खोजा' मुसलमानों, जिन्हें 'लोटिया' कहते हैं, तथा हिन्दू गुजरातियों के हाथ में है। | *इस स्थान का व्यापार 'खोजा' मुसलमानों, जिन्हें 'लोटिया' कहते हैं, तथा हिन्दू गुजरातियों के हाथ में है। | ||
*[[कराची]] तथा बंबई-बसरा-मार्ग पर चलने वाले जहाज़ यहाँ ठहरते हैं। कस्बे के पास ही पहाड़ी पर पत्थर से बना हुआ सुंदर बाँध है।<ref>{{cite web |url=http:// | *[[कराची]] तथा बंबई-बसरा-मार्ग पर चलने वाले जहाज़ यहाँ ठहरते हैं। कस्बे के पास ही पहाड़ी पर पत्थर से बना हुआ सुंदर बाँध है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B0|title=ग्वादूर|accessmonthday=28 अप्रैल|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
14:16, 9 मई 2021 के समय का अवतरण

ग्वादूर (अंग्रेज़ी: Gwadar) मकरान, पश्चिमी पाकिस्तान में स्थित है। यह अरब सागर (फ़ारस की खाड़ी) के तट पर एक छोटा-सा बंदरगाह है, जिसका प्राचीन नाम 'बंदर' कहा जाता है। इसका उल्लेख टॉल्मी, आर्थोगोरस और एरियन (90 ई.-170 ई.) आदि प्राचीन विदेशी लेखकों ने भी किया है।[1] मध्य काल में इस स्थान का बहुत महत्व था और ईरान की खाड़ी तथा भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पत्तनों के व्यापारिक जहाज़ यहाँ रुकते थे।
- यूनानी लेखकों ने ग्वादूर के समीप समुद्र में अनेक प्रकार की विचित्र मछलियों का वर्णन किया है।
- 1581 ई में पुर्तग़ालियों ने इस नगर को जलाकर नष्ट कर दिया था।
- 17वीं शती में कलात के ख़ान ने इस बंदरगाह पर अधिकार कर लिया। उसने इसे ओमान के शासक सैयद सुल्तानबिन अहमद को सौंप दिया। इस प्रकार 1871 ई. तक इस पर मस्कट के सुल्तान का क़ब्ज़ा रहा। इस वर्ष से ब्रिटेन का एक राजदूत भी यहाँ रहने लगा था।
- 18वीं सदी के उत्तरार्ध में कलात के ख़ान नसीर ख़ाँ प्रथम ने ग्वादूर तथा पास की लगभग 300 वर्ग मील भूमि मस्कट के सुल्तान के भाई को आजीविका के लिये दे दी।
- पाकिस्तान का निर्मण होने पर ग्वादूर पत्तन तथा 'ओमान की खाड़ी' के उत्तर का कुछ क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में आ गया है।
- ग्वादूर के अधिकांश निवासी मछुए हैं, जो 'मेद' कहलाते हैं।
- इस स्थान का व्यापार 'खोजा' मुसलमानों, जिन्हें 'लोटिया' कहते हैं, तथा हिन्दू गुजरातियों के हाथ में है।
- कराची तथा बंबई-बसरा-मार्ग पर चलने वाले जहाज़ यहाँ ठहरते हैं। कस्बे के पास ही पहाड़ी पर पत्थर से बना हुआ सुंदर बाँध है।[2]
|
|
|
|
|