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'''गोविन्द चन्द्र पाण्डे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Govind Chandra Pande'', जन्म- [[30 जुलाई]], [[1923]], [[इलाहाबाद]]; मृत्यु- [[22 मई]], [[2011]], [[दिल्ली]]) 20वीं सदी के जानेमाने चिंतक, इतिहासवेत्ता, संस्कृतज्ञ तथा सौंदर्यशास्त्री थे। वे [[संस्कृत]], हिब्रू तथा लेटिन आदि अनेक भाषाओं के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के प्रसिद्ध लेखक तथा [[हिन्दी]] [[कवि]] भी थे। प्राचीन भारतीय इतिहास, [[संस्कृति]], [[बौद्ध दर्शन]], [[साहित्य]], [[इतिहास]] लेखन तथा [[दर्शन]] आदि में गोविन्द चन्द्र पाण्डे को विशेषज्ञता प्राप्त थी। अनेक चर्चित किताबों तथा सैंकड़ों शोध पत्रों के वे लेखक थे। वर्ष [[2010]] में उन्हें '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित किया गया था।
 
==जन्म==
 
==जन्म==
आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म 30 जुलाई, सन 1923 में [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उत्तर प्रदेश के काशीपुर नगर में आकर बसे [[अल्मोड़ा]] के एक [[ग्राम]] से निकले सुप्रतिष्ठित पहाड़ी [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम पीताम्बर दत्त पाण्डे था, जो कि भारत सरकार की लेखा सेवा के उच्च अधिकारी थे और [[माता]] का नाम प्रभावती देवी पाण्डे था।  
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आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म 30 जुलाई, सन 1923 में [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उत्तर प्रदेश के काशीपुर नगर में आकर बसे [[अल्मोड़ा]] के एक [[ग्राम]] से निकले सुप्रतिष्ठित पहाड़ी [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम पीताम्बर दत्त पाण्डे था, जो कि भारत सरकार की लेखा सेवा के उच्च अधिकारी थे और [[माता]] का नाम प्रभावती देवी पाण्डे था।
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गोविन्द चन्द्र पाण्डे ने काशीपुर से माध्यमिक शिक्षा एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परीक्षाएं दोनों ही प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण कीं और उसी दौरान रघुवीर दत्त शास्त्री और पण्डित रामशंकर द्विवेदी जैसे उद्भट विद्वानों के सान्निध्य में [[व्याकरण]], [[साहित्य]] एवं शास्त्रों का पारम्परिक [[संस्कृत]] माध्यम से गहन अध्ययन किया। पहली कक्षा से इलाहाबाद में एम.ए. तक की सभी परीक्षाओं में सर्वोच्च्च अंक लेकर विख्यात विद्वान और [[सुभाष चन्द्र बोस]] के मित्र प्रो. क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय के अधीन तुलनात्मक भाषाशास्त्र, [[धर्म]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] की गहन शिक्षा प्राप्त की। प्रो. क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय के निर्देशन में ही उन्होंने [[1947]] में 'डी.फिल.' की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने इस शोधकाल में ही [[पालि भाषा|पालि]], [[प्राकृत]]. फ्रेंच, जर्मन और बौद्ध चीनी भाषाओं का भी अध्ययन किया और बाद में 'डी.लिट' की उपाधि भी [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से ही प्राप्त की।
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गोविन्द चन्द्र पाण्डे द्वारा लिखे गये संस्कृति, दर्शन, साहित्य, इतिहास-विषयक अनेक आलोचनात्मक शोधग्रन्थ, काव्य-ग्रंथ और विविध शोधपूर्ण आलेख, [[भारत]] और विदेशों में सम्मानपूर्वक प्रकाशित हैं। उनके द्वारा [[संस्कृत भाषा]]] में रचित मौलिक एवं अनूदित तथा प्रकाशित प्रमुख [[ग्रन्थ]] ‘दर्शन विमर्श:’ [[1996]] वाराणसी, ‘सौन्दर्य दर्शन विमर्श:’ 1996 वाराणसी, ‘एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति’ [[1997]] वाराणसी, ‘न्यायबिन्दु’ [[1975]] सारनाथ/जयपुर आदि हैं। इसके अतिरिक्त संस्कृति एवं इतिहास विषयक पाँच ग्रन्थ और [[दर्शन]] विषय के आठ ग्रन्थों में ‘शंकराचार्य: विचार और सन्दर्भ‘ ग्रन्थ महनीय हैं। विविध साहित्यिक कृतियों में इनके द्वारा विरचित आठ अन्य ग्रन्थ संस्कृत वाड्मय को विभूषित कर रहे हैं। गोविन्द चन्द्र पाण्डे ने [[ऋग्वेद]] की अनेक कविताओं का सरस [[हिन्दी]] काव्यानुवाद भी किया था। [[दर्शन]], [[इतिहास]] और [[संस्कृत]] के गहन ज्ञान ने उनसे जो ग्रंथ लिखवाए, उनमें गूढता, प्रौढ़ता और संक्षेप में बात कहने की प्रवणता का होना स्वाभाविक था। 'राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी' से छपे इनके ग्रंथों में ‘मूल्य मीमांसा’ इन सभी लक्षणों को चरितार्थ करती है। बौद्ध दर्शन और बुद्धकालीन भारत पर उनके ग्रंथ सर्वोत्कृष्ट माने जाते हैं। ज्योतिष पर भी उनका अधिकार था। बाद के दिनों में वेद वाङ्मय का सर्वांगीण विमर्श प्रस्तुत करने हेतु लिखा गया उनका ग्रंथ ‘वैदिक संस्कृति’ भी शिखर स्तर का ग्रंथ है।
 
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#गोविन्द चन्द्र पाण्डे ने राजस्थान और [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] के कुलपति के रूप में कार्य किया।
 
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14:01, 15 मई 2016 का अवतरण

गोविन्द चन्द्र पाण्डे (अंग्रेज़ी: Govind Chandra Pande, जन्म- 30 जुलाई, 1923, इलाहाबाद; मृत्यु- 22 मई, 2011, दिल्ली) 20वीं सदी के जानेमाने चिंतक, इतिहासवेत्ता, संस्कृतज्ञ तथा सौंदर्यशास्त्री थे। वे संस्कृत, हिब्रू तथा लेटिन आदि अनेक भाषाओं के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के प्रसिद्ध लेखक तथा हिन्दी कवि भी थे। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति, बौद्ध दर्शन, साहित्य, इतिहास लेखन तथा दर्शन आदि में गोविन्द चन्द्र पाण्डे को विशेषज्ञता प्राप्त थी। अनेक चर्चित किताबों तथा सैंकड़ों शोध पत्रों के वे लेखक थे। वर्ष 2010 में उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था।

जन्म

आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म 30 जुलाई, सन 1923 में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उत्तर प्रदेश के काशीपुर नगर में आकर बसे अल्मोड़ा के एक ग्राम से निकले सुप्रतिष्ठित पहाड़ी ब्राह्मण परिवार में गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम पीताम्बर दत्त पाण्डे था, जो कि भारत सरकार की लेखा सेवा के उच्च अधिकारी थे और माता का नाम प्रभावती देवी पाण्डे था।

शिक्षा

गोविन्द चन्द्र पाण्डे ने काशीपुर से माध्यमिक शिक्षा एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परीक्षाएं दोनों ही प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण कीं और उसी दौरान रघुवीर दत्त शास्त्री और पण्डित रामशंकर द्विवेदी जैसे उद्भट विद्वानों के सान्निध्य में व्याकरण, साहित्य एवं शास्त्रों का पारम्परिक संस्कृत माध्यम से गहन अध्ययन किया। पहली कक्षा से इलाहाबाद में एम.ए. तक की सभी परीक्षाओं में सर्वोच्च्च अंक लेकर विख्यात विद्वान और सुभाष चन्द्र बोस के मित्र प्रो. क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय के अधीन तुलनात्मक भाषाशास्त्र, धर्म, दर्शन और इतिहास की गहन शिक्षा प्राप्त की। प्रो. क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय के निर्देशन में ही उन्होंने 1947 में 'डी.फिल.' की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने इस शोधकाल में ही पालि, प्राकृत. फ्रेंच, जर्मन और बौद्ध चीनी भाषाओं का भी अध्ययन किया और बाद में 'डी.लिट' की उपाधि भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही प्राप्त की।

लेखन कार्य

गोविन्द चन्द्र पाण्डे द्वारा लिखे गये संस्कृति, दर्शन, साहित्य, इतिहास-विषयक अनेक आलोचनात्मक शोधग्रन्थ, काव्य-ग्रंथ और विविध शोधपूर्ण आलेख, भारत और विदेशों में सम्मानपूर्वक प्रकाशित हैं। उनके द्वारा संस्कृत भाषा] में रचित मौलिक एवं अनूदित तथा प्रकाशित प्रमुख ग्रन्थ ‘दर्शन विमर्श:’ 1996 वाराणसी, ‘सौन्दर्य दर्शन विमर्श:’ 1996 वाराणसी, ‘एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति’ 1997 वाराणसी, ‘न्यायबिन्दु’ 1975 सारनाथ/जयपुर आदि हैं। इसके अतिरिक्त संस्कृति एवं इतिहास विषयक पाँच ग्रन्थ और दर्शन विषय के आठ ग्रन्थों में ‘शंकराचार्य: विचार और सन्दर्भ‘ ग्रन्थ महनीय हैं। विविध साहित्यिक कृतियों में इनके द्वारा विरचित आठ अन्य ग्रन्थ संस्कृत वाड्मय को विभूषित कर रहे हैं। गोविन्द चन्द्र पाण्डे ने ऋग्वेद की अनेक कविताओं का सरस हिन्दी काव्यानुवाद भी किया था। दर्शन, इतिहास और संस्कृत के गहन ज्ञान ने उनसे जो ग्रंथ लिखवाए, उनमें गूढता, प्रौढ़ता और संक्षेप में बात कहने की प्रवणता का होना स्वाभाविक था। 'राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी' से छपे इनके ग्रंथों में ‘मूल्य मीमांसा’ इन सभी लक्षणों को चरितार्थ करती है। बौद्ध दर्शन और बुद्धकालीन भारत पर उनके ग्रंथ सर्वोत्कृष्ट माने जाते हैं। ज्योतिष पर भी उनका अधिकार था। बाद के दिनों में वेद वाङ्मय का सर्वांगीण विमर्श प्रस्तुत करने हेतु लिखा गया उनका ग्रंथ ‘वैदिक संस्कृति’ भी शिखर स्तर का ग्रंथ है।

प्रमुख उपलब्धियाँ

  1. गोविन्द चन्द्र पाण्डे ने राजस्थान और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया।
  2. वे 'सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हायर तिब्बतन स्टडीज', 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवान्स्ड स्टडी शिमला' और 'इलाहाबाद म्यूजियम' के अध्यक्ष भी रहे।
  3. कुछ प्रतिष्ठित पुरस्कार, जिसमें ‘मूर्तिदेवी’, साहित्य अकादमी फैलोशिप, ‘विश्व भारती सम्मान’, ‘शंकर सम्मान’ आदि मुख्य हैं, गोविन्द चन्द्र पाण्डे को प्राप्त हुये थे।
  4. 'डी.लिट.' तथा 'वाचस्पति' की मानद उपाधियाँ भी उन्हें प्राप्त हुई थीं।[1]


युवाओं के नाम संदेश-

उत्तराखण्ड के युवाओं को ऋषियों, मनीषियों, विद्वानों तथा नायकों की अपनी प्राचीन विरासत को पुनर्जीवित करना चाहिये।

निधन

अपने जीवन के अंतिम दिनों में गोविन्द चन्द्र पाण्डे अस्वस्थ हो गए थे। 88 वर्ष की परिपक्व अवस्था में दिल्ली में 21 मई, 2011 को उनका निधन हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोविन्द चन्द्र पाण्डे (हिन्दी) merapahadforum.com। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2016।

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