"अद्वयवज्र": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
#विरूपा
#विरूपा
==शिष्य==
==शिष्य==
अद्वयवज्र के शिष्यों में 'बोधिभद्र' (नालंदा महाविहार के प्रधान) का विशेष स्थान है, जिन्होंने दीपंकर श्रीज्ञान को आचार्य अद्वयवज्र के समक्ष [[राजगृह]] में प्रस्तुत किया था। अद्वयवज्र ने शवरिपा से दीक्षा लेने के लिए तत्कालीन प्रसिद्ध तांत्रिक पीठ 'श्रीपर्वत' की यात्रा की और महामुद्रा की साधना की। दूसरे स्रोतों से इनकी छह वाराहियों की साधना की सूचना मिलती है। इनके शिष्यों में दीपंकर श्रीज्ञान का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इनके अन्य शिष्यों के नाम थे- 'सौरिपा', 'कमरिपा', 'चैलुकपा', 'बोधिभद्र', 'सहजवज्र', 'दिवाकरचंद्र', 'रामपाल', 'वज्रपाणि', 'मारिपा', 'ललितगुप्त' अथवा 'ललितवज्र' आदि।<ref name="aa"/>
अद्वयवज्र के शिष्यों में 'बोधिभद्र' (नालंदा महाविहार के प्रधान) का विशेष स्थान है, जिन्होंने दीपंकर श्रीज्ञान को आचार्य अद्वयवज्र के समक्ष [[राजगृह]] में प्रस्तुत किया था। अद्वयवज्र ने शवरिपा से दीक्षा लेने के लिए तत्कालीन प्रसिद्ध तांत्रिक पीठ 'श्रीपर्वत' की यात्रा की और [[महामुद्रा]] की साधना की। दूसरे स्रोतों से इनकी छह वाराहियों की साधना की सूचना मिलती है। इनके शिष्यों में दीपंकर श्रीज्ञान का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इनके अन्य शिष्यों के नाम थे- 'सौरिपा', 'कमरिपा', 'चैलुकपा', 'बोधिभद्र', 'सहजवज्र', 'दिवाकरचंद्र', 'रामपाल', 'वज्रपाणि', 'मारिपा', 'ललितगुप्त' अथवा 'ललितवज्र' आदि।<ref name="aa"/>
;समकालीन सिद्ध
;समकालीन सिद्ध
अद्वयवज्र के समकालीन सिद्धों में निम्नलिखित प्रमुख थे-
अद्वयवज्र के समकालीन सिद्धों में निम्नलिखित प्रमुख थे-

11:16, 26 मई 2015 का अवतरण

अद्वयवज्र एक प्रसिद्ध आचार्य, टीकाकार और बौद्ध तांत्रिक थे। इनका पूर्व नाम 'दामोदर' था। ये जन्म से ब्राह्मण थे। कुछ सूत्रों के अनुसार इन्हें पूर्वी बंगाल का निवासी क्षत्रिय कहा गया है। अद्वयवज्र ने 'आदिसिद्ध सरह' अथवा 'सरोरुहवज्रवाद' के दोहा कोष की संस्कृत में टीका भी लिखी थी। इनकी संस्कृत रचनाओं का एक संग्रह 'अद्वयवज्रसंग्रह' नाम से बड़ौदा से प्रकाशित हुआ था, जिससे 'वज्रयान' एवं 'सहजयान' के सिद्धांत एवं साधना पर अच्छा प्रकाश पड़ता है।[1]

जन्म काल

अद्वयवज्र जन्म से ब्राह्मण थे। वहीं कुछ लोग इनको रामपाल प्रथम का समकालीन मानते हैं और कुछ लोग इनका समय 10वीं शती का पूर्वार्ध मानते हैं। कुछ सूत्रों के अनुसार इन्हें पूर्वी बंगाल का निवासी और 'क्षत्रिय' कहा गया है। विशेषकर इनका महत्व इसलिए है कि इन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार एवं प्रसार करने वाले एवं असंख्य भारतीय बौद्ध ग्रंथों के तिब्बती भाषा में अनुवादक सिद्धाचार्य अतिश दीपंकर श्रीज्ञान को दीक्षा दी, साधनाओं में प्रवृत्त किया और विद्या प्रदान की।

अन्य नाम

अद्वयवज्र के अन्य नाम भी थे, जैसे- 'अवधूतिपा' और 'मैत्रिपा'। इनका एक पूर्व नाम 'दामोदर' भी बताया जाता है।

गुरु

कहा जाता है कि अद्वयवज्र भी भोट देश गए थे और बहुत से ग्रंथों का भोटिया में अनुवाद करने के बाद तीन सौ तोले सोने के साथ भारत लौटे थे। इनके गुरु के संबंध में कई व्यक्तियों के नाम लिए जाते हैं, जैसे-

  1. शवरिपा
  2. नागार्जुन
  3. आचार्य हुंकार अथवा बोधिज्ञान
  4. विरूपा

शिष्य

अद्वयवज्र के शिष्यों में 'बोधिभद्र' (नालंदा महाविहार के प्रधान) का विशेष स्थान है, जिन्होंने दीपंकर श्रीज्ञान को आचार्य अद्वयवज्र के समक्ष राजगृह में प्रस्तुत किया था। अद्वयवज्र ने शवरिपा से दीक्षा लेने के लिए तत्कालीन प्रसिद्ध तांत्रिक पीठ 'श्रीपर्वत' की यात्रा की और महामुद्रा की साधना की। दूसरे स्रोतों से इनकी छह वाराहियों की साधना की सूचना मिलती है। इनके शिष्यों में दीपंकर श्रीज्ञान का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इनके अन्य शिष्यों के नाम थे- 'सौरिपा', 'कमरिपा', 'चैलुकपा', 'बोधिभद्र', 'सहजवज्र', 'दिवाकरचंद्र', 'रामपाल', 'वज्रपाणि', 'मारिपा', 'ललितगुप्त' अथवा 'ललितवज्र' आदि।[1]

समकालीन सिद्ध

अद्वयवज्र के समकालीन सिद्धों में निम्नलिखित प्रमुख थे-

कालपा, शवर, नागार्जुन, राहुलपाल, शीलरक्षित, धर्मरक्षित, धर्मकीर्ति, शांतिपा, नारोपा, डोंबीपा आदि।

रचनाएँ

तैंजुर में अद्वयवज्र की निम्नलिखित रचनाएँ तिब्बती में अनूदित रूप में मिलती हैं-

  1. अबोधबोधक
  2. गुरुमैत्रीगीतिका
  3. चतुर्मुखोपदेश
  4. चित्तमात्रदृष्टि
  5. दोहानिधितत्वोपदेश
  6. वज्रगीतिका

इन्होंने 'आदिसिद्ध सरह' अथवा 'सरोरुहवज्रवाद' के दोहा कोष की संस्कृत में टीका भी लिखी। इनकी संस्कृत रचनाओं का एक संग्रह 'अद्वयवज्रसंग्रह' नाम से बड़ौदा से प्रकाशित हुआ था, जिससे 'वज्रयान' एवं 'सहजयान' के सिद्धांत एवं साधना पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। विभिन्न स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि अद्वयवज्र ने अपने प्रिय शिष्य दीपंकर श्रीज्ञान को माध्यमिक दर्शन, तांत्रिक साधना और विशेषकर डाकिनी साधना की शिक्षा दी थी। अधिकांश विद्वानों ने इनका समय 10वीं ईस्वी शताब्दी का उत्तरार्ध और 11वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 अद्वयवज्र (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2014।

संबंधित लेख