त्रिकार्तिक व्रत
त्रिकार्तिक व्रत
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विवरण | हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में 'त्रिकार्तिक व्रत' का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। इस व्रत को निष्ठापूर्वक करने वाला व्यक्ति भगवान विष्णु के लोक को पाप्त करता है। |
तिथि | कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन पहले |
धार्मिक मान्यता | पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है। |
संबंधित देवता | विष्णु |
विशेष | 'त्रिकार्तिक व्रत' रखने वाले को कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। |
संबंधित लेख | विष्णु, कार्तिक, कार्तिक स्नान, कार्तिक पूर्णिमा |
अन्य जानकारी | इस व्रत में भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए त्रयोदशी से पूर्णिमा तक जितना संभव हो 'गीता', 'विष्णुसहस्रनाम' एवं 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ करना चाहिए। |
त्रिकार्तिक व्रत कार्तिक स्नान का पूर्ण फल दिलाने वाला व्रत है। कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। 'स्कंदपुराण' के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत भगवान विष्णु की पूजा के समान कहा गया है।
महत्ता
कार्तिक मास में प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करना उत्तम फलदायी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो लोग संकल्प पूर्वक पूरे कार्तिक मास में किसी जलाशय में जाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके जलाशय के निकट दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु के लोक में स्थान मिलता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि कार्तिक स्नान का व्रत बीच में ही टूट जाता है अथवा प्रातः उठकर प्रतिदिन स्नान करना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में 'कार्तिक स्नान' का पूर्ण फल दिलाने वाला "त्रिकार्तिक व्रत" है।
स्मरणीय तथ्य
'त्रिकार्तिक व्रत' कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन पहले शुरू होता है। व्रत रखने वाले को कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। त्रिकार्तिक व्रत रखने वाले को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- व्रती को परनिंदा से बचना चाहिए
- ब्रह्मचर्य का पालन पूर्ण निष्ठा के साथ करना चाहिए
- भूमि पर बैठकर पत्तल पर ही सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए
- इन तीन दिनों में तेल लगाना वर्जित होता है
- भोजन में मटर, चना एवं मसूर की दाल का त्याग करना पड़ता है
- व्रती को पलंग पर नहीं सोना चाहिए। इस व्रत में भूमि पर सोने का नियम है
- भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए त्रयोदशी से पूर्णिमा तक जितना संभव हो 'गीता', 'विष्णुसहस्रनाम' एवं 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ करना चाहिए।
शास्त्र मान्यता
त्रिकार्तिक व्रत के विषय में शास्त्र कहता है कि त्रयोदशी के दिन व्रत का पालन करने से समस्त वेद प्राणी को पवित्र करते हैं। चतुर्दशी के व्रत से यज्ञ और देवता प्राणी को पावन बनाते हैं। पूर्णिमा के व्रत से भगवान विष्णु द्वारा पवित्र जल प्राणी को शु्द्ध करते हैं।
इस प्रकार अंदर और बाहर से शुद्ध हुआ प्राणी भगवान विष्णु के लोक में शरण पाने योग्य बन जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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