रूपसत्र

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत फाल्गुन की पूर्णिमा के उपरान्त कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर जब मूल नक्षत्र हो तब आरम्भ होता है।
  • इसमें नक्षत्र, उसके स्वामी, वरुण, चन्द्र एवं विष्णु की पूजा, होम और गुरु सम्मान करना चाहिए।
  • दूसरे दिन उपवास रखके केशव पूजा करनी चाहिए।
  • केशव के पाद से सिर तक विभिन्न अंगों पर विभिन्न नक्षत्रों का न्यास, चैत्र शुक्ल पक्ष के अन्त में सत्र समाप्ति करनी चाहिए।
  • अन्त में पुष्पों, धूप आदि से विष्णु पूजा करनी चाहिए।[1] के मंत्र से होम, गुरु को दान, ब्रह्म भोज करना चाहिए।
  • इससे स्वर्ग में वास तथा लौटने पर राजा बनते हैं।[2]
  • बृहत्संहिता[3] जहाँ पर यही व्रत चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास एवं नारायण तथा नक्षत्र की पूजा के साथ वर्णित है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद (1|22|20
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 671-675, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण
  3. बृहत्संहिता (104|6-13

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