ललिता पंचमी

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ललिता पंचमी
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ललिता पंचमी
विवरण 'ललिता पंचमी' हिन्दू धर्म में मान्य प्रमुख पंचमी तिथियों में से है। इस तिथि को देवी पार्वती के साथ-साथ स्कन्दमाता और शिव की पूजा भी की जाती है।
अनुयायी हिन्दू
तिथि आश्विन माह, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि।
उद्देश्य माता की कृपा और जीवन में सदैव सुख-समृद्धी के लिए।
संबंधित लेख स्कन्दमाता, नवरात्र, शिव, पार्वती
अन्य जानकारी हिन्दू पंचांग के अनुसार शक्तिस्वरूपा देवी ललिता को समर्पित 'ललिता पंचमी' आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में होने वाले नवरात्र के पांचवे दिन मनाई जाती है।

ललिता पंचमी आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को कहा जाता है। इसमें शक्ति स्वरूपा ललिता देवी (पार्वती) की पूजा की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार शक्तिस्वरूपा देवी ललिता को समर्पित 'ललिता पंचमी' आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में होने वाले नवरात्र के पांचवे दिन मनाई जाती है। इस सुअवसर पर भक्तगण व्रत रखते हैं। यह पर्व गुजरात और महाराष्ट्र के साथ-साथ लगभग पूरे भारत में मनाया जाता है।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन देवी ललिता 'भांडा' नामक राक्षस को मारने के लिए प्रकट हुई थीं, जो कि कामदेव के शरीर की राख से उत्पन्न हुआ था। इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से माँ ललिता का पूजन करते है। ललिता देवी के साथ-साथ स्कन्दमाता और शिवशंकर की भी शास्त्रानुसार पूजा की जाती है। इस दिन का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है। आस्थावान भक्तों में मान्यता है कि यदि कोई इस दिन माँ ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करता है तो उसे देवी माँ की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में हमेशा सुख शांति एवं समृद्धि रहती है।

महत्त्व

आदि शक्ति माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं, ललिता पंचमी का व्रत भक्तजनों के लिए शुभ फलदायक होता है। ललिता पंचमी के दिन देवी ललिता की पूजा भक्ति-भाव सहित करने से देवी माँ की कृपा व आशिर्वाद प्राप्त होता है। जीवन में सदैव सुख व समृद्धि बनी रहती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार आदिशक्ति, त्रिपुर सुंदरी, जगत जननी ललिता माता के दर्शन से समस्त कष्टों का निवारण स्वत: ही हो जाता है। ललिता पंचमी व्रत समस्त सुखों को प्रदान करने वाला होता है। देवी की पूजा भक्त को शक्ति प्रदान करती है। इस अवसर पर देवी के समस्त मंदिरों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अनेक जगहों पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है, हज़ारों श्रद्धालु श्रद्धा और हर्षोल्लासपूर्वक इस दिन को मनाते हैं। ललिता पंचमी के अवसर पर माँ की पूजा-आराधना का कुछ विशेष ही महत्व होता है।[1]

देवी ललिता

शक्ति की देवी ललिता का वर्णन पुराणों में प्राप्त होता है। जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत होकर जब दक्ष पुत्री सती अपने प्राण उत्सर्ग कर देती हैं। सती के वियोग में भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए चारों दिशाओं में घूमने लगते हैं। इस महाविपत्ति को यह देख भगवान विष्णु चक्र द्वारा सती की देह को विभाजित कर देते हैं। तत्पश्चात् भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर इन्हें 'ललिता' के नाम से पुकारा जाने लगा। ललिता माँ का प्रादुर्भाव तब होता है, जब ब्रह्मा द्वारा छोडे गये चक्र से पाताल समाप्त होने लगा। इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है। तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं। सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है।

पूजा पद्धति

शक्तिस्वरूपा देवी ललिता को समर्पित 'ललिता पंचमी' आश्विन मास के शुक्ल पक्ष को पांचवे नवरात्र के दिन मनाई जाती है। इस शुभ दिन भक्तगण व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं, यह दिन 'ललिता व्रत' के नाम से भी जाना जाता है। देवी ललिता का ध्यान, रूप बहुत ही उज्ज्वल व प्रकाश मान है। माता की पूजा श्रद्धा एवं सच्चे मन से की जाती है। 'कालिकापुराण' के अनुसार देवी की दो भुजाएँ हैं। यह गौर वर्ण की और रक्तिम कमल पर विराजित हैं। ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को 'चण्डी' का स्थान प्राप्त है। इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है। ललिता पंचमी के दिन 'ललितासहस्रनाम', 'ललितात्रिशती' का पाठ किया जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 उपांग ललिता व्रत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2013।

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