फलत्याग व्रत

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • मार्गशीर्ष शुक्ल की तृतीया, अष्टमी, द्वादशी या चतुर्दशी तिथि को यह व्रत किया जाता है।
  • यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है।
  • देवता, शिव का पूजन होता है।
  • कर्ता फलों का त्याग करता है, केवल 18 धान्यों का ही प्रयोग करता है।
  • नन्दी एवं धर्मराज के साथ शिव की प्रतिमा का निर्माण करना चाहिए।
  • सोलह प्रकार (यथा–कूष्माण्ड, आम, बदर, केला आदि) के फलों की स्वर्णिम प्रतिमाएँ बनानी चाहिए, 16 अन्य छोटे-छोटे फलों (यथा–आमलक, उदुम्बर) की चाँदी प्रतिनिधि प्रतिमाएँ भी बनानी चाहिए तथा 16 अन्य फलों (यथा–इमली, इंगुद आदि) की ताम्र प्रतिमाएँ बनायी जाती हैं।
  • धान्य की एक राशि पर श्वेत वस्त्र से ढँके दो जलपूर्ण घट रखे जाते हैं तथा एक पलंग बनाया जाता है।
  • वर्ष के अन्त में ये सभी वस्तुएँ एक सपत्नीक ब्राह्मण को दान में दे दी जाती हैं।
  • यदि यह सब देने में असमर्थता हो तो केवल धातु निर्मित फल घड़े एवं शिव तथा धर्म की स्वर्णिम प्रतिमाएँ दे दी जाती हैं।
  • कर्ता सहस्रों युगों तक रुद्रलोक में रहता है।[1], [2]; [3]

 


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्स्य पुराण (96|1-25
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 906-909
  3. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 436-439

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