सर्वाप्ति सप्तमी

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • माघ कृष्ण पक्ष की सप्तमी पर सर्वाप्तिसप्तमी किया जाता है।
  • सर्वाप्तिसप्तमी व्रत में ध्यानपूर्वक सूर्य पूजा करनी चाहिए।
  • सर्वाप्तिसप्तमी एक वर्ष तक करना चाहिए।
  • सर्वाप्तिसप्तमी वर्ष की दो अवधियों में किया जाता है।
  • प्रथम 6 मासों में तिल का स्नान एवं भोजन में प्रयोग करना चाहिए।
  • इन मासों में सूर्य के नाम क्रम से माघ मास से ये हैं–मार्तण्ड, अर्क, चित्रभानु, विभावसु, भग एवं हस
  • दूसरी अवधि के 6 मासों में स्नान एवं भोज में पंचगव्य का प्रयोग करना चाहिए।
  • रात्रि में भोजन किन्तु नमक एवं तेल का त्याग करना चाहिए।
  • सर्वाप्तिसप्तमी व्रत से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।[1]
  • हेमाद्रि[2] में आया है–'कुष्ठ मांसी हरिद्र द्वे मुरा शैलेयचन्दनम्। वचा चम्पकमुस्ते च सर्वोषध्यो दश स्मृता:।।'


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 168-169
  2. हेमाद्रि व्रत खण्ड 1, पृ0 49

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