पंचमी व्रत

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को सूर्योदय काल में व्रत के नियमों का संकल्प लिया जाता है।
  • स्वर्ण, रजत, पीतल, ताम्र या काष्ठ की लक्ष्मी प्रतिमा या वस्त्र पर लक्ष्मी का चित्र, पुष्पों आदि से सिर से पैर तक की पूजा की जाती है।
  • सधवा नारियों का पुष्पों, कुंकुम एवं मिष्ठान के थालों से सम्मान।
  • एक पसर (प्रस्थ) चावल एवं घृतपूर्ण पात्र का 'श्री का हृदय प्रसन्न हों' के साथ दान दिया जाता है।
  • प्रत्येक मास में लक्ष्मी के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है।
  • प्रतिमा का ब्राह्मण को दान दिया जाता है।[1]
  • पंचमी के 7 व्रत होते हैं।[2]
  • हेमाद्रि[3] ने 28 व्रतों के नाम लिये हैं।[4]
  • सभी पंचमी उपवासों (केवल नागपंचमी एवं स्कन्द उपवास को छोड़कर) में चतुर्थी से युक्त पंचमी को वरीयता दी जानी चाहिए।[5]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भविष्योत्तरपुराण (37|38-58)।
  2. कृत्यकल्पतरु 87-97
  3. हेमाद्रि व्रतखण्ड 1, 536-576
  4. कालनिर्णय (186-188); तिथितत्त्व (32-34); पुरुषार्थचिन्तामणि (95-100); व्रतराज (192-220)।
  5. कालनिर्णय (188); निर्णयामृत (44-45); पुरुषार्थचिन्तामणि (96)।

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