पद्मनाभ द्वादशी

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पद्मनाभ द्वादशी

भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। आश्विन शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर यह व्रत आरम्भ होता है। एक घट स्थापित करके उसमें पद्मनाभ (विष्णु) की एक स्वर्ण प्रतिमा डाल देनी चाहिए। चन्दन लेप, पुष्पों आदि से उस प्रतिमा की पूजा की जाती है। दूसरे दिन किसी ब्राह्मण को दान दिया जाता है।

पद्मनाभ द्वादशी व्रत आश्विन शुक्ल की द्वादशी को किया जाता है। यह व्रत पापांकुशी एकादशी के अगले दिन किया ही किया जाता है। इसमें भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है। पद्मनाथ भगवान विष्णु का एक रूप है। यह व्रत भगवान विष्णु का समर्पित है। इस दिन भगवान जागृतावस्था प्राप्त करने हेतु अंगडाई लेते हैं तथा पद्मासीन ब्रह्मा ऊँकार ध्वनि करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पद्मनाभ द्वादशी व्रत का पालन करते हैं, वे जीवन भर समृद्धि प्राप्त करते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस व्रत का उल्लेख वराह पुराण में मिलता है।

पूजा विधान

भगवान विष्णु की प्रतिमा को क्षीर से स्नान कराकर भोग लगायें तथा धूप, दीप, नैवेद्य, चन्दन से आरती उतार कर ब्राह्मणों को भोजन करा कर दान दें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से मनोवांछित फल मिलता है।

  • कृत्यकल्पतरु[1], हेमाद्रि[2] कृत्यरत्नाकर[3] इन सभी में वराह पुराण[4] को उद्धृत किया है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 333-335);
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1039-41);
  3. कृत्यरत्नाकर (373-375);
  4. वराह पुराण, (49|1-8

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