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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
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'''आरोग्य सप्तमी''' [[माह|माह माह]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी|सप्तमी तिथि]] को कहा जाता है। माघ का पूरा महीना ही पुण्य मास के नाम से जाना जाता है। इस महीने में शुक्ल पक्ष की [[अमावस्या]], [[पूर्णिमा]] और सप्तमी तिथि का बहुत महत्व है। इस सप्तमी को सालभर की सप्तमी में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसे करने से सौभाग्य प्राप्त होता है। '''इस सप्तमी को शास्त्रों में रथ सप्तमी, अचला सप्तमी, पुत्र सप्तमी, भानु सप्तमी और अर्क सप्तमी भी कहा गया है।''' यदि अचला सप्तमी [[रविवार]] को है तो इसे [[भानु सप्तमी]] भी कहा जाता है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और उसमें भी यदि रविवार का दिन हो तो उसका महत्त्व 100 गुना बढ़ जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठर को इस व्रत के बारे में बताया था। कहा जाता है कि आज ही के दिन सूर्य ने अपने प्रकाश रूपी किरण से जगत को प्रकाशित किया था और इसी दिन भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लोक में प्रकट हुए थे।
*[[माघ]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] को करना चाहिए।
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==क्या करें==
*इस व्रत में एक वर्ष तक सभी सप्तमियों पर उपवास करना चाहिए।
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जो भी श्रद्धालु इस व्रत को करना चाहते हैं, उन्हें [[षष्ठी]] के दिन एक बार ही भोजन करना चाहिए और [[सप्तमी]] के दिन प्रातःकाल सूर्योदय काल में से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में [[स्नान]] करके [[सूर्य]] को दीप दान करने (दीप को जल में प्रवाहित करना) से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोग नदी में स्नान नहीं कर सकते, वे पानी में गंगाजल डाल के स्नान कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रातः काल किसी अन्य व्यक्ति के जलाशय में नहाने से पहले यदि स्नान करते हैं तो बड़ा ही पुण्य मिलता है। इस दिन अपने-अपने गुरु को वस्त्र दान करना चाहिये। [[तिल]], [[गाय]] और दक्षिणा भी देनी चाहिए। आरोग्य सप्तमी को जो व्यक्ति [[सूर्यदेव]] की [[पूजा]] करके एक समय मीठा भोजन अथवा फलाहार करता है, उसे पूरे वर्ष सूर्य की पूजा करने का फल एक ही बार में मिल जाता है। यह व्रत संतान सुख के साथ-साथ अखंड सौभाग्य प्रदाता है।
*आरोग्य सप्तमी व्रत में [[सूर्य देवता|सूर्य]] की पूजा करनी चाहिए।<ref>वराहपुराण (62|1-5), हेमाद्रि व्रतखण्ड (1, 747), तिथितत्त्व (460</ref>
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*इस व्रत के करने से स्वास्थ्य एवं धन की प्राप्ति होती है।
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आज के दिन खाने में तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसका मुख्य कारण है कि तेल [[शनिदेव]] की कारक वस्तु है और शनिदेव सूर्यदेव के घोर विरोधी हैं, ऐसी परिस्थिति में सूर्य उपासना में तेल का प्रयोग उचित नहीं है। इसी प्रकार इस दिन [[नमक]] का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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==व्रत कथा==
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[[भविष्यपुराण]] में एक [[कथा]] है कि एक गणिका इन्दुमति ने अपने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था। इसे जब अपने अंत समय का ख्याल आया तो [[वशिष्ठ|वशिष्ठ मुनि]] के पास गयी और वशिष्ठ मुनि से मुक्ति पाने का उपाय पूछने लगी। तब मुनि ने उत्तर में गणिका से कहा- "[[माघ|माघ मास]] की सप्तमी को आरोग्य सप्तमी का व्रत करो। इसके लिए षष्ठी के दिन एक ही बार भोजन करो और सप्तमी की सुबह [[स्नान]] के पूर्व आक के सात पत्ते सिर पर रखें और सूर्य का [[ध्यान]] करके [[गन्ना|गन्ने]] से जल को हिला कर ‘नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:। वरुणाय नमस्तेsस्तु।’ मंत्र का उच्चारण करने के बाद दीप को जल में बहा दें। स्नान के उपरांत सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना कर [[शिव]] और [[पार्वती]] को स्थापित करें और विधिपूर्वक पूजन कर तांबे के पात्र में [[चावल]] भर कर दान करें।" गणिका इन्दुमति ने [[मुनि]] के कथनानुसार माघ सप्तमी का व्रत किया। इसके पुण्य से शरीर त्याग के बाद [[इन्द्र]] ने उसे [[अप्सरा|अप्सराओं]] की नायिका बना दिया।
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एक अन्य कथा के अनुसार [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] के पुत्र [[सांब]] को अपने बल और शारीरिक सुंदरता का अभिमान हो गया था।  एक बार [[दुर्वासा|दुर्वासा ऋषि]] श्रीकृष्ण से मिलने आये थे। उस समय दुर्वासा ऋषि का शरीर बहुत ही दुबला हो गया था, क्योकि वह कठिन तप में लम्बे समय से लीन थे। [[ऋषि]] को देखकर सांब को हंसी आ गयी। स्वभाव से ही क्रोधी ऋषि को सांब की धृष्ठता पर क्रोध आ गया और उन्होंने सांब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। ऋषि के श्राप का प्रभाव तुरंत ही हो गया। उपचार से जब कोई लाभ नहीं हुआ, तब श्रीकृष्ण ने सांब को सूर्योपासना  करने की सलाह दी। शीघ्र ही सूर्योपासना से सांब को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिल गया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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06:34, 24 दिसम्बर 2016 का अवतरण

आरोग्य सप्तमी माह माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को कहा जाता है। माघ का पूरा महीना ही पुण्य मास के नाम से जाना जाता है। इस महीने में शुक्ल पक्ष की अमावस्या, पूर्णिमा और सप्तमी तिथि का बहुत महत्व है। इस सप्तमी को सालभर की सप्तमी में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसे करने से सौभाग्य प्राप्त होता है। इस सप्तमी को शास्त्रों में रथ सप्तमी, अचला सप्तमी, पुत्र सप्तमी, भानु सप्तमी और अर्क सप्तमी भी कहा गया है। यदि अचला सप्तमी रविवार को है तो इसे भानु सप्तमी भी कहा जाता है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और उसमें भी यदि रविवार का दिन हो तो उसका महत्त्व 100 गुना बढ़ जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठर को इस व्रत के बारे में बताया था। कहा जाता है कि आज ही के दिन सूर्य ने अपने प्रकाश रूपी किरण से जगत को प्रकाशित किया था और इसी दिन भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लोक में प्रकट हुए थे।

क्या करें

जो भी श्रद्धालु इस व्रत को करना चाहते हैं, उन्हें षष्ठी के दिन एक बार ही भोजन करना चाहिए और सप्तमी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय काल में से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीप दान करने (दीप को जल में प्रवाहित करना) से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोग नदी में स्नान नहीं कर सकते, वे पानी में गंगाजल डाल के स्नान कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रातः काल किसी अन्य व्यक्ति के जलाशय में नहाने से पहले यदि स्नान करते हैं तो बड़ा ही पुण्य मिलता है। इस दिन अपने-अपने गुरु को वस्त्र दान करना चाहिये। तिल, गाय और दक्षिणा भी देनी चाहिए। आरोग्य सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्यदेव की पूजा करके एक समय मीठा भोजन अथवा फलाहार करता है, उसे पूरे वर्ष सूर्य की पूजा करने का फल एक ही बार में मिल जाता है। यह व्रत संतान सुख के साथ-साथ अखंड सौभाग्य प्रदाता है।

आज के दिन खाने में तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसका मुख्य कारण है कि तेल शनिदेव की कारक वस्तु है और शनिदेव सूर्यदेव के घोर विरोधी हैं, ऐसी परिस्थिति में सूर्य उपासना में तेल का प्रयोग उचित नहीं है। इसी प्रकार इस दिन नमक का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।

व्रत कथा

भविष्यपुराण में एक कथा है कि एक गणिका इन्दुमति ने अपने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था। इसे जब अपने अंत समय का ख्याल आया तो वशिष्ठ मुनि के पास गयी और वशिष्ठ मुनि से मुक्ति पाने का उपाय पूछने लगी। तब मुनि ने उत्तर में गणिका से कहा- "माघ मास की सप्तमी को आरोग्य सप्तमी का व्रत करो। इसके लिए षष्ठी के दिन एक ही बार भोजन करो और सप्तमी की सुबह स्नान के पूर्व आक के सात पत्ते सिर पर रखें और सूर्य का ध्यान करके गन्ने से जल को हिला कर ‘नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:। वरुणाय नमस्तेsस्तु।’ मंत्र का उच्चारण करने के बाद दीप को जल में बहा दें। स्नान के उपरांत सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना कर शिव और पार्वती को स्थापित करें और विधिपूर्वक पूजन कर तांबे के पात्र में चावल भर कर दान करें।" गणिका इन्दुमति ने मुनि के कथनानुसार माघ सप्तमी का व्रत किया। इसके पुण्य से शरीर त्याग के बाद इन्द्र ने उसे अप्सराओं की नायिका बना दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को अपने बल और शारीरिक सुंदरता का अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि श्रीकृष्ण से मिलने आये थे। उस समय दुर्वासा ऋषि का शरीर बहुत ही दुबला हो गया था, क्योकि वह कठिन तप में लम्बे समय से लीन थे। ऋषि को देखकर सांब को हंसी आ गयी। स्वभाव से ही क्रोधी ऋषि को सांब की धृष्ठता पर क्रोध आ गया और उन्होंने सांब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। ऋषि के श्राप का प्रभाव तुरंत ही हो गया। उपचार से जब कोई लाभ नहीं हुआ, तब श्रीकृष्ण ने सांब को सूर्योपासना करने की सलाह दी। शीघ्र ही सूर्योपासना से सांब को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिल गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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