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'''सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय''''
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}}'''सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sachchidananda Hirananda Vatsyayan'' 'Agyeya', जन्म: [[7 मार्च]], [[1911]] [[कुशीनगर]]; मृत्यु: [[4 अप्रैल]], [[1987]] [[नई दिल्ली]]) [[हिन्दी]] के सुप्रसिद्ध [[साहित्यकार]] थे। अज्ञेय को प्रतिभासम्पन्न [[कवि]], शैलीकार, [[कथा साहित्य]] को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है।
 
==व्यक्तिगत जीवन==
 
==व्यक्तिगत जीवन==
अज्ञेय जी के पिता पण्डित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे। इनका बचपन इनके पिता की नौकरी के साथ कई स्थानों की परिक्रमा करते हुए बीता। [[कुशीनगर]] में अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, 1911 को हुआ था। [[लखनऊ]], [[श्रीनगर]], [[जम्मू]] घूमते हुए इनका परिवार [[1919]] में [[नालंदा]] पहुँचा। नालंदा में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय से हिन्दी लिखवाना शुरु किया। इसके बाद [[1921]] में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुँचा ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय को वात्स्यायन कुलनाम दिया।
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अज्ञेय जी के पिता पण्डित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे। इनका बचपन इनके पिता की नौकरी के साथ कई स्थानों की परिक्रमा करते हुए बीता। [[कुशीनगर]] में अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, 1911 को हुआ था। [[लखनऊ]], [[श्रीनगर]], [[जम्मू]] घूमते हुए इनका परिवार [[1919]] में [[नालंदा]] पहुँचा। नालंदा में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय से हिन्दी लिखवाना शुरू किया। इसके बाद [[1921]] में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुँचा ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय को वात्स्यायन कुलनाम दिया।
 
==शिक्षा==
 
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अज्ञेय ने घर पर ही [[भाषा]], [[साहित्य]], [[इतिहास]] और [[विज्ञान]] की प्रारंभिक शिक्षा आरंभ की। [[1925]] में अज्ञेय ने मैट्रिक की प्राइवेट परीक्षा [[पंजाब]] से उत्तीर्ण की इसके बाद दो वर्ष [[मद्रास]] क्रिश्चियन कॉलेज में एवं तीन वर्ष फ़ॉर्मन कॉलेज, [[लाहौर]] में संस्थागत शिक्षा पाई। वहीं बी.एस.सी.और अंग्रेज़ी में एम.ए.पूर्वार्द्ध पूरा किया। इसी बीच [[भगत सिंह]] के साथी बने और [[1930]] में गिरफ़्तार हो गए।  
 
अज्ञेय ने घर पर ही [[भाषा]], [[साहित्य]], [[इतिहास]] और [[विज्ञान]] की प्रारंभिक शिक्षा आरंभ की। [[1925]] में अज्ञेय ने मैट्रिक की प्राइवेट परीक्षा [[पंजाब]] से उत्तीर्ण की इसके बाद दो वर्ष [[मद्रास]] क्रिश्चियन कॉलेज में एवं तीन वर्ष फ़ॉर्मन कॉलेज, [[लाहौर]] में संस्थागत शिक्षा पाई। वहीं बी.एस.सी.और अंग्रेज़ी में एम.ए.पूर्वार्द्ध पूरा किया। इसी बीच [[भगत सिंह]] के साथी बने और [[1930]] में गिरफ़्तार हो गए।  
 
==कार्यकाल==
 
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अज्ञेय ने छह वर्ष जेल और नज़रबंदी भोगने के बाद [[1936]] में कुछ दिनों तक [[आगरा]] के समाचार पत्र सैनिक के संपादन मंडल में रहे, और बाद में 1937-39 में विशाल [[भारत]] के संपादकीय विभाग में रहे। कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहने के बाद अज्ञेय [[1943]] में सैन्य सेवा में प्रविष्ट हुए। [[1946]] में सैन्य सेवा से मुक्त होकर वह शुद्ध रुप से साहित्य में लगे। [[मेरठ]] और उसके बाद [[इलाहाबाद]] और अंत में [[दिल्ली]] को उन्होंने अपना केंद्र बनाया। अज्ञेय ने प्रतीक का संपादन किया। प्रतीक ने ही [[हिन्दी]] के आधुनिक साहित्य की नई धारणा के लेखकों, कवियों को एक नया सशक्त मंच दिया और साहित्यिक पत्रकारिता का नया इतिहास रचा। [[1965]] से [[1968]] तक अज्ञेय साप्ताहिक दिनमान के संपादक रहे। पुन: प्रतीक को नाम, नया प्रतीक देकर [[1973]] से निकालना शुरू किया और अपना अधिकाधिक समय लेखन को देने लगे। [[1977]] में उन्होंने दैनिक पत्र नवभारत टाइम्स के संपादन का भार संभाला। अगस्त [[1979]] में उन्होंने नवभारत टाइम्स से अवकाश ग्रहण किया।
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==सप्तक==
 
==सप्तक==
अज्ञेय ने 1943 में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ तार सप्तक का संपादन किया। अज्ञेय ने आधुनिक हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया, जिसे प्रयोगशील कविता की [[संज्ञा]] दी गई। इसके बाद समय-समय पर उन्होंने दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक और चौथा सप्तक का संपादन भी किया।  
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==कृतित्व==
 
==कृतित्व==
अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। अज्ञेय की प्रारंभ की रचनाएँ अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं, बाद की रचनाएँ निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते थे, परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरुक प्रक्रिया रही।  
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अज्ञेय ने अभिव्यक्ति के लिए कई विधाओं, कई कलाओं और भाषाओं का प्रयोग किया, जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा, संपादन। उपन्यास के क्षेत्र में 'शेखर' एक जीवनी हिन्दी उपन्यास का एक कीर्तिस्तंभ बना। नाट्य-विधान के प्रयोग के लिए 'उत्तर प्रियदर्शी' लिखा, तो आंगन के पार द्वार संग्रह में वह अपने को विशाल के साथ एकाकार करने लगते हैं।  
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अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। अज्ञेय की प्रारंभ की रचनाएँ अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं, बाद की रचनाएँ निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते थे, परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरुक प्रक्रिया रही। अज्ञेय ने अभिव्यक्ति के लिए कई विधाओं, कई कलाओं और भाषाओं का प्रयोग किया, जैसे [[कविता]], [[कहानी]], [[उपन्यास]], [[नाटक]], यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा, संपादन। उपन्यास के क्षेत्र में 'शेखर' एक जीवनी हिन्दी उपन्यास का एक कीर्तिस्तंभ बना। नाट्य-विधान के प्रयोग के लिए 'उत्तर प्रियदर्शी' लिखा, तो आंगन के पार द्वार संग्रह में वह अपने को विशाल के साथ एकाकार करने लगते हैं।
 
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अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन
सच्चिदानंद वात्स्यायन
पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
जन्म 7 मार्च, 1911
जन्म भूमि कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 4 अप्रैल, 1987
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
अभिभावक पण्डित हीरानंद शास्त्री
पति/पत्नी कपिला वात्स्यायन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य, सामाजिक
मुख्य रचनाएँ 'आँगन के पार द्वार', 'कितनी नावों में कितनी बार', 'क्योंकि मैं उसे जानता हूँ', 'एक जीवनी' आदि।
विषय कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा, संपादन
भाषा हिन्दी
विद्यालय मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, फ़ॉर्मन कॉलेज, लाहौर
शिक्षा बी.एस.सी., एम.ए. (अंग्रेज़ी)
पुरस्कार-उपाधि भारतीय पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय 'गोल्डन रीथ' पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978)
नागरिकता भारतीय
साहित्यिक आंदोलन नई कविता, प्रयोगवाद
काल आधुनिक काल
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

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व्यक्तिगत जीवन

अज्ञेय जी के पिता पण्डित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे। इनका बचपन इनके पिता की नौकरी के साथ कई स्थानों की परिक्रमा करते हुए बीता। कुशीनगर में अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, 1911 को हुआ था। लखनऊ, श्रीनगर, जम्मू घूमते हुए इनका परिवार 1919 में नालंदा पहुँचा। नालंदा में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय से हिन्दी लिखवाना शुरू किया। इसके बाद 1921 में अज्ञेय का परिवार ऊटी पहुँचा ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय का यज्ञोपवीत कराया और अज्ञेय को वात्स्यायन कुलनाम दिया।

शिक्षा

अज्ञेय ने घर पर ही भाषा, साहित्य, इतिहास और विज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा आरंभ की। 1925 में अज्ञेय ने मैट्रिक की प्राइवेट परीक्षा पंजाब से उत्तीर्ण की इसके बाद दो वर्ष मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में एवं तीन वर्ष फ़ॉर्मन कॉलेज, लाहौर में संस्थागत शिक्षा पाई। वहीं बी.एस.सी.और अंग्रेज़ी में एम.ए.पूर्वार्द्ध पूरा किया। इसी बीच भगत सिंह के साथी बने और 1930 में गिरफ़्तार हो गए।

कार्यकाल

अज्ञेय ने छह वर्ष जेल और नज़रबंदी भोगने के बाद 1936 में कुछ दिनों तक आगरा के समाचार पत्र सैनिक के संपादन मंडल में रहे, और बाद में 1937-39 में विशाल भारत के संपादकीय विभाग में रहे। कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहने के बाद अज्ञेय 1943 में सैन्य सेवा में प्रविष्ट हुए। 1946 में सैन्य सेवा से मुक्त होकर वह शुद्ध रुप से साहित्य में लगे। मेरठ और उसके बाद इलाहाबाद और अंत में दिल्ली को उन्होंने अपना केंद्र बनाया। अज्ञेय ने प्रतीक का संपादन किया। प्रतीक ने ही हिन्दी के आधुनिक साहित्य की नई धारणा के लेखकों, कवियों को एक नया सशक्त मंच दिया और साहित्यिक पत्रकारिता का नया इतिहास रचा। 1965 से 1968 तक अज्ञेय साप्ताहिक दिनमान के संपादक रहे। पुन: प्रतीक को नाम, नया प्रतीक देकर 1973 से निकालना शुरू किया और अपना अधिकाधिक समय लेखन को देने लगे। 1977 में उन्होंने दैनिक पत्र नवभारत टाइम्स के संपादन का भार संभाला। अगस्त 1979 में उन्होंने नवभारत टाइम्स से अवकाश ग्रहण किया।

सप्तक

अज्ञेय ने 1943 में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ तार सप्तक का संपादन किया। अज्ञेय ने आधुनिक हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया, जिसे प्रयोगशील कविता की संज्ञा दी गई। इसके बाद समय-समय पर उन्होंने दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक और चौथा सप्तक का संपादन भी किया।

कृतित्व

thumb

अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। अज्ञेय की प्रारंभ की रचनाएँ अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं, बाद की रचनाएँ निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते थे, परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरुक प्रक्रिया रही। अज्ञेय ने अभिव्यक्ति के लिए कई विधाओं, कई कलाओं और भाषाओं का प्रयोग किया, जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा, संपादन। उपन्यास के क्षेत्र में 'शेखर' एक जीवनी हिन्दी उपन्यास का एक कीर्तिस्तंभ बना। नाट्य-विधान के प्रयोग के लिए 'उत्तर प्रियदर्शी' लिखा, तो आंगन के पार द्वार संग्रह में वह अपने को विशाल के साथ एकाकार करने लगते हैं।

प्रमुख कृतियाँ

  • कविता भग्नदूत (1933)
  • चिंता (1942)
  • इत्यलम (1946)
  • हरी घास पर क्षण भर (1949)
  • बावरा अहेरी (1954)
  • आंगन के पार द्वार (1961)
  • पूर्वा (1965)
  • कितनी नावों में कितनी बार (1967)
  • क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969)
  • सागर मुद्रा (1970)
  • पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973)

उपन्यास

  • शेखर,एक जीवनी (1966)
  • नदी के द्वीप (1952)
  • अपने अपने अजनबी (1961)

पुरस्कार

अज्ञेय को भारत में भारतीय पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय 'गोल्डन रीथ' पुरस्कार आदि के अतिरिक्त साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित किया गया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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