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*यह चार वर्षों तक करना चाहिए, किन्तु दूसरे वर्ष में नक्त, तीसरे में अयाचित एवं चौथे में उपवास करना चाहिए। <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 530-31), स्कन्दपुराण से उद्धरण; कृत्यरत्नाकर (504); कालविवेक (190); वर्षक्रियाकौमुदी (498)।</ref>
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*यह चार वर्षों तक करना चाहिए, किन्तु दूसरे वर्ष में नक्त, तीसरे में अयाचित एवं चौथे में उपवास करना चाहिए।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 530-31), स्कन्दपुराण से उद्धरण; कृत्यरत्नाकर (504); कालविवेक (190); वर्षक्रियाकौमुदी (498)।</ref>
 
   
 
   
 
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11:53, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरम्भ करना चाहिए।
  • इसमें प्रतिमास गणेश पूजन करना चाहिए। तथा उस दिन एकभक्त रहना चाहिए किन्तु क्षार एवं लवण का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • यह चार वर्षों तक करना चाहिए, किन्तु दूसरे वर्ष में नक्त, तीसरे में अयाचित एवं चौथे में उपवास करना चाहिए।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 530-31), स्कन्दपुराण से उद्धरण; कृत्यरत्नाकर (504); कालविवेक (190); वर्षक्रियाकौमुदी (498)।

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