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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
*यह व्रत [[आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[दशमी]] को संकल्प करके- "मैं एकादशी को उपवास तथा [[केशव]] पूजा करूँगा और दूसरे दिन ([[द्वादशी]] को) भोजन करूँगा करना चाहिए। पाद से सिर तक केशव की पूजा, एक मण्डल का निर्माण, जिस पर चार कोणों वाली एक वेदी, वेदी पर एक सूप में विशोका ([[लक्ष्मी]]) की प्रतिमा का स्थापन और प्रार्थना 'विशोका चिन्ता दूर करें, धन एवं सफलता दें' करनी चाहिए। सभी रातों में कुश से शुद्ध किये हुए जल का प्रयोग, नृत्य एवं संगीत, ब्राह्मणों की जोड़ियों का सम्मान करना चाहिए। प्रत्येक [[मास]] में यही विधि से करना चाहिए। अन्त में पलंग, गुड़, धेनु एवं रूप्य के साथ में लक्ष्मी प्रतिमा का दान करना चाहिए। मत्स्यपुराण <ref>मत्स्यपुराण (81)</ref> ने वर्णन किया है और (82) गुड़ धेनु को इस व्रत का एक अंग माना है। यह ग्रन्थ <ref>धर्मशास्त्र (खण्ड 2, पृ0 880-881)</ref> में देखिए जहाँ पर गुड़ धेनु का वर्णन है। यहाँ संक्षेप में धेनुओं के दान पर प्रकाश डाला जा रहा है। मत्स्यपुराण <ref>मत्स्यपुराण (अध्याय 82|17-22)</ref> ने दस धेनुओं के नाम दिये हैं, यथा– गुड़, घृत, तिल, जल, क्षीर, मधु, शर्करा, दधि, रस (अन्य जलीय पदार्थ) एवं गोधेनु (स्वयं गाय का दान) करना चाहिए। जलीय धेनु पात्र में तथा अन्य राशि (एकत्र) में। कहीं-कहीं सुवर्णधेनु, नवनीत धेनु, रत्नधेनु के नाम भी आये हैं। वराहपुराण <ref>[[वराहपुराण]] (अध्याय 19-110)</ref> में बारह धेनुओं का उल्लेख है, जिनमें [[मत्स्यपुराण]] की घृत एवं गोधेनु छूटी हुई है और नवनीत, लवण, कार्पास (कपास) एवं धान्य जोड़ दी गयी हैं।  
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*यह व्रत [[आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[दशमी]] को संकल्प करके- "मैं एकादशी को उपवास तथा [[केशव]] पूजा करूँगा और दूसरे दिन ([[द्वादशी]] को) भोजन करूँगा करना चाहिए।  
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*पाद से सिर तक केशव की पूजा, एक मण्डल का निर्माण, जिस पर चार कोणों वाली एक वेदी, वेदी पर एक सूप में विशोका ([[लक्ष्मी]]) की प्रतिमा का स्थापन और प्रार्थना 'विशोका चिन्ता दूर करें, धन एवं सफलता दें' करनी चाहिए।
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*सभी रातों में कुश से शुद्ध किये हुए जल का प्रयोग, नृत्य एवं संगीत, ब्राह्मणों की जोड़ियों का सम्मान करना चाहिए।  
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*प्रत्येक [[मास]] में यही विधि से करना चाहिए।  
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*अन्त में पलंग, गुड़, धेनु एवं रूप्य के साथ में लक्ष्मी प्रतिमा का दान करना चाहिए।
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*जलीय धेनु पात्र में तथा अन्य राशि (एकत्र) में।  
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*कहीं-कहीं सुवर्णधेनु, नवनीत धेनु, रत्नधेनु के नाम भी आये हैं।  
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13:00, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को संकल्प करके- "मैं एकादशी को उपवास तथा केशव पूजा करूँगा और दूसरे दिन (द्वादशी को) भोजन करूँगा करना चाहिए।
  • पाद से सिर तक केशव की पूजा, एक मण्डल का निर्माण, जिस पर चार कोणों वाली एक वेदी, वेदी पर एक सूप में विशोका (लक्ष्मी) की प्रतिमा का स्थापन और प्रार्थना 'विशोका चिन्ता दूर करें, धन एवं सफलता दें' करनी चाहिए।
  • सभी रातों में कुश से शुद्ध किये हुए जल का प्रयोग, नृत्य एवं संगीत, ब्राह्मणों की जोड़ियों का सम्मान करना चाहिए।
  • प्रत्येक मास में यही विधि से करना चाहिए।
  • अन्त में पलंग, गुड़, धेनु एवं रूप्य के साथ में लक्ष्मी प्रतिमा का दान करना चाहिए।
  • मत्स्य पुराण[1] ने वर्णन किया है और (82) गुड़ धेनु को इस व्रत का एक अंग माना है।
  • यह ग्रन्थ[2] में देखिए जहाँ पर गुड़ धेनु का वर्णन है।
  • यहाँ संक्षेप में धेनुओं के दान पर प्रकाश डाला जा रहा है।
  • मत्स्यपुराण[3] ने दस धेनुओं के नाम दिये हैं, यथा– गुड़, घृत, तिल, जल, क्षीर, मधु, शर्करा, दधि, रस (अन्य जलीय पदार्थ) एवं गोधेनु (स्वयं गाय का दान) करना चाहिए।
  • जलीय धेनु पात्र में तथा अन्य राशि (एकत्र) में।
  • कहीं-कहीं सुवर्णधेनु, नवनीत धेनु, रत्नधेनु के नाम भी आये हैं।
  • वराह पुराण[4] में बारह धेनुओं का उल्लेख है, जिनमें मत्स्यपुराण की घृत एवं गोधेनु छूटी हुई है और नवनीत, लवण, कार्पास (कपास) एवं धान्य जोड़ दी गयी हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्स्यपुराण (81
  2. धर्मशास्त्र (खण्ड 2, पृ0 880-881
  3. मत्स्यपुराण (अध्याय 82|17-22
  4. वराहपुराण (अध्याय 19-110

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