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*इसे कोई राजा या क्षत्रिय सम्पादित करता है।  
 
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*किसी चक्र की नाभि पर कमल से मण्डल खींचने के उपरान्त [[षष्ठी]] पर उपवास करना चाहिए।
 
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*गुड़युक्त भोजन, रोटियों एवं फलों का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए।
 
*गुड़युक्त भोजन, रोटियों एवं फलों का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए।
 
*शत्रुओं के नाश, युद्ध में विजय एवं सेना की रक्षा के लिए सुदर्शन के मंत्रों का पाठ करना चाहिए।
 
*शत्रुओं के नाश, युद्ध में विजय एवं सेना की रक्षा के लिए सुदर्शन के मंत्रों का पाठ करना चाहिए।
*विष्णु के धनुष (शांर्ग), गदा आदि तथा [[गरुड़]] की पूजा करनी चाहिए।
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*विष्णु के धनुष (शांर्ग), [[गदा]] आदि तथा [[गरुड़]] की पूजा करनी चाहिए।
 
*राजा को सिंहासन पर बैठाया जाता है और एक युवा स्त्री उसकी आरती उतारती है।
 
*राजा को सिंहासन पर बैठाया जाता है और एक युवा स्त्री उसकी आरती उतारती है।
*यह कृत्य किसी अशुभ लक्षण के उदित होने पर तथा [[जन्म नक्षत्र]] पर भी किया जाता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 620-624, [[गरुड़पुराण]] से उद्धरण)</ref>
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*यह कृत्य किसी अशुभ लक्षण के उदित होने पर तथा [[जन्म नक्षत्र]] पर भी किया जाता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 620-624, [[गरुड़पुराण]] से उद्धरण</ref>
 
 
 
 
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08:46, 17 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

Disamb2.jpg सुदर्शन एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुदर्शन (बहुविकल्पी)
  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • इसे कोई राजा या क्षत्रिय सम्पादित करता है।
  • किसी चक्र की नाभि पर कमल से मण्डल खींचने के उपरान्त षष्ठी पर उपवास करना चाहिए।
  • बीजकोष पर सुदर्शन (विष्णु चक्र की स्थापना), लोकपालों के आयुधों की स्थापना दलों पर होती है।
  • कर्ता के बाहु सक्षम रहते हैं।
  • लाल चन्दन लेप, सरसों, लाल कमल, लाल वस्त्रों आदि से पूजा करनी चाहिए।
  • गुड़युक्त भोजन, रोटियों एवं फलों का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए।
  • शत्रुओं के नाश, युद्ध में विजय एवं सेना की रक्षा के लिए सुदर्शन के मंत्रों का पाठ करना चाहिए।
  • विष्णु के धनुष (शांर्ग), गदा आदि तथा गरुड़ की पूजा करनी चाहिए।
  • राजा को सिंहासन पर बैठाया जाता है और एक युवा स्त्री उसकी आरती उतारती है।
  • यह कृत्य किसी अशुभ लक्षण के उदित होने पर तथा जन्म नक्षत्र पर भी किया जाता है।[1]

 

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 620-624, गरुड़पुराण से उद्धरण

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