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14:13, 21 मई 2012 का अवतरण
रोटक हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार पर आरम्भ करना चाहिए। यह व्रत साढ़े तीन मासों के लिए होता है।
व्रत पद्धति
भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। रोटक व्रत हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। यह व्रत श्रावण माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ होता है। कार्तिक मास की चतुर्दशी पर उपवास तथा बिल्व दलों के साथ में पूजा करनी चाहिए। पाँच 'रोटक' (गेहूँ की रोटी, जो लोहे के तवा या मिट्टी के थाल में पकायी जाती है) बनाये जाते हैं। एक नैवेद्य के लिए, दो ब्राह्मण एवं दो कर्ता के लिए। भगवान शिव की पूजा पाँच वर्षों तक करनी चाहिए। अन्त में सोने या चाँदी के दो रोटकों का दान करना चाहिए।[1] इसी व्रत के समान 'बिल्वरोटक व्रत' का भी उल्लेख मिलता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ व्रतार्क (पाण्डुलिपि, 30 बी-32 बी);
संबंधित लेख
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