कार्तिक छठ

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हिन्दू चंद्रमास में बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पूरे भक्तिमय वातावरण में सूर्य की उपासना का पर्व छठ मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत द्वापर काल से होने का उल्लेख है। कहते हैं कि लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं। लेकिन यह ऐसा अनोखा पर्व है जिसकी शुरुआत डूबते हुए सूर्य की आराधना से होती है।

छठ दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें छह अर्थात् हाथ-हाथ योग (तपस्या विज्ञान) को दर्शाता है। इसमें सूर्य की अराधना की जाती है। भगवान सूर्य देव की आराधना का सबसे बड़ा पर्व छठ सूर्य देव को अर्ग देने का स्वर्णिम अवसर होता है। सभी नदियों और घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है तो यह समझते देर नहीं लगती कि छठ पर्व आ गया है। उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश में छठ श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाने वाला सबसे बड़ा पर्व है।

  • पूजा का पहला दिन नहाय-खाय जिसमें गंगा नदी में नहाया जाता है और वहाँ के पानी से घर को पवित्र किया जाता है।
  • पंचमी को दिनभर 'खरना का व्रत' रखकर व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का 'निर्जला व्रत'।
  • पर्व का दूसरा दिन खरना है जिसमें सूर्यास्त के बाद शाम को पूजा के पश्चात् प्रसाद ग्रहण किया जाता है इसमें गेहूँ के आटे, केले, खीर और चावल का ग्रहण प्रसाद के रूप में किया जाता है।
  • महापर्व के तीसरे दिन शाम को व्रती डूबते हुए सूर्य की आराधना करता है, जब व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देते हैं।
  • पूजा के चौथे दिन व्रतधारी उदयीमान सूर्य को दूसरा अर्ध्य समर्पित करते हैं। इसके पश्चात् 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है और व्रती अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस अर्ध्य में फल, नारियल के अतिरिक्त ठेकुआ का काफ़ी महत्त्व होता है।

गीतों के माध्यम

लोकप्रिय भोजपुरी गायिका प्रो. शारदा सिन्हा छठ की महिला एवं महंगाई को गीतों के माध्यम से व्यक्त करते हुए कहती हैं,

"नाही छोड़ब हो भइया छठिया बरतिया,
लेले अइहा हो भइया छठ के मोटरिया।
अबकी त बहिनी महंग भइल गेहुंआ-छोड़ी
देहु ए बहिनी छठ के बरितया।"

सिन्हा ने कहा, "भक्ति एवं शुद्धता को विशेष रूप से महत्त्व देने वाले छठ पर्व के प्रारम्भ का उल्लेख द्वापर काल में मिलता है। कहा जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण सूर्य के बड़े उपासक थे और वह नदी के जल में खड़े होकर भगवान सूर्य की पूजा करते थे। पूजा के पश्चात् कर्ण किसी भी याचक को कभी भी ख़ाली हाथ नहीं लौटाते थे। उन्होंने कहा कि छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय से शुरू हो जाती है। जब छठव्रती स्नान एवं पूजा पाठ के बाद शुद्ध अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं। नहाय खाय की तैयारी के दौरान महिलाओं को एक ओर जहाँ गेहूँ धोने और सुखाने में व्यस्त देखा जा सकता है वहीं पर महिलाओं के एक हुजूम को बाज़ारों में चूड़ी, लहठी, अलता और अन्य सुहाग की वस्तुएँ ख़रीदते हुए देखा जा सकता है। बिहार के औरंगाबाद ज़िले के पौराणिक देव स्थल में लोकपर्व कार्तिक छठ पर्व पर चार दिवसीय छठ मेले की भी शुरुआत हो गई है। यहाँ त्रेता युग में स्थापित प्राचीन सूर्य मन्दिर में वृहद सूर्य मेले का आयोजन किया जाता है।

अनुष्ठान

त्योहार का अनुष्ठान अत्यंत कठोर होता हैं जिसमें व्रती या उपासक को उपवास रखना होता है। उन्हें लंबे समय तक पानी में खड़े रहना पड़ता है। इस पर्व में शाकाहारी भोजन किया जाता है और नमक, लहसुन और प्याज तक से परहेज किया जाता है। पूजा के दौरान बांस से बने सूप में मिठाई, फल, बांस एवं इससे बनीं सामग्री, फूल, नारियल, गेहूँ से बने ठेकुए, गन्ना, गुड़, अगरबत्ती इत्यादि को रखा जाता है और इससे पूजा की जाती है। इस दौरान महिलाएं भगवान सूर्य का गुणगान करती हैं स्वादिष्ठ पकवान, अंगूर, नारियल, मिठाई त्योहार का मुख्य हिस्सा हैं।

सूर्य की उपासना

सूर्य की उपासना भारतीय संस्कृति का सदा से ही अभिन्न अंग रही है। कार्तिक मास में होने वाली छठ पूजा वस्तुतः सूर्यदेव की ही आराधना है। सूर्य की उपासना के तर्क भी हैं। सूर्य मानवमात्र के लिए अत्यंत उपयोगी है। हमारी संस्कृति में पालन-पोषण करने वाले और मुश्किलों से बाहर्व निकालने वाले को ही भगवान मानकर पूजा जाता है। सूर्यनारायण बिना किसी भेद-भाव के सबको नित्य दर्शन, ऊर्जा और आरोग्यता देते हैं। वे जीवन के देवता हैं। पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ और मनुष्य सभी उनसे ही अनुप्राणित हैं। प्रकाश, ताप और ऊर्जा के अक्षय स्रोत भगवान सूर्य के प्रति मानव आदिकाल से ही श्रद्धावतन रहा है। सूर्य की जीवनीशाक्ति और अक्षय ऊर्जा के कारण उनकी पूजा की प्रथा संसार की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं- मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत, चीन आदि में मिलती है। ऋग्वेद में भी सूर्य-महिमा का उल्लेख है। सूर्य देव आकाश में उदित होकर ग़रीब- अमीर, सभी को अपनी रश्मियों से ऊर्जा प्रदान करते हैं।

पुराणों में उल्लेख

पुराणों में उल्लेख है कि सूर्य की आराधना से तन-मन स्वस्थ रहता है। यह तथ्य सबसे पहले शुक्लयजुर्वेद में प्रतिपादित हुआ है। अथर्ववेद ने भी सूर्य की रश्मियों में आरोग्यदायिनी शाक्ति होने की पुष्टि की। बाद में वैज्ञानिकों ने भी इसे माना और सूर्य चिकित्सा की पद्धति विकसित हुई।

वाल्मीकि रामायण में रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व भगवान श्रीराम के द्वारा सूर्योपासना किए जाने का विवरण मिलता है। मान्यता है कि सूर्योपासना से आत्मविश्वास जागता है और मनोबल पुष्ट होता है।

डूबते सूर्य को अर्घ्य

कार्तिक शुक्ल अष्टमी को हम सूर्यदेव के अनंत उपकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। इसी माह में धान की बालियां पकने लगती हैं। अधिकांश वृक्ष फलों से लद आते हैं। खेतों में रस भरी ईखें झूमने लगती हैं। शकरकंद, सिंघाड़ा आदि फल तथा कंद मूल पक जाते हैं। केले के फल पीताभ हो आते हैं। ये प्राकृतिक वस्तुएँ सूर्यदेव को अर्पित होती हैं। ये सूर्य द्वारा ही तो प्रदत्त हैं। त्वदीयं वस्तु गोविन्द, तुम्यमेव समर्पये के भाव से उन्हें प्रातः एवं सायं जल में खड़े होकर अर्पित करते हैं।

सूर्य को प्रथम अर्घ्य संध्या में प्रदान किया जाता है। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। लोक में कहावत चलती है। कि उगते सूर्य को तो सभी नमस्कार करते हैं, डूबते सूर्य को कोई नहीं पूछता। इसके विपरित छठ पर्व यह संदेश देता है कि जो परोपकारी हैं, उसे सदा श्रद्धा दो। उसके अवसान के समय, उससे मुख नहीं मोड़ो। यह संदेश नई पीढ़ी के लिए है, जो अपने वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा करते हैं। इस पावन आयोजन से शिक्षा ग्रहण करने की आवश्यकता है। केवल घाटों की शोभा निहार कर तथा प्रसाद पालन से कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती। इस पर्व पर सांस्कृतिक छटा देखने लायक़ होती हैं। नदी-सरोवर के घाट इस सूर्य-महोत्सव के समय खूब सजाये जाते हैं। सरकार भी घाटों की स्वच्छता में योगदान देने लगी हैं। व्रती कदल-स्तंभों के तोमर एवं आम्र-पत्रों तथा पुष्पों के वंदनकार बनाते हैं। रंग-बिरंगे बल्बों से घाटों को अद्भुत आकर्षण मिलता है। संगीत एवं वाद्य के स्वर वातावरण को गुंजायमान कर दर्शकों को बरबस खींच लाते हैं। छठ लोक पर्व है, अतः इससे संबंधित मधुर लोक गीत भी खूब लिखे गए हैं। महिला कंठों से निस्सृत हो यह लोक संगीत छठ पर्व के प्रमुख आकर्षणों में है। घाट पर जाते समय एवं वहाँ से लौटते समय उन गीतों के स्वर से संपूर्ण परिवेश अद्भुत होकर लोगों के मन-प्राणों को प्रभावित कर देता है। एक लोक गीत की छटा देखें-

कहवां की सूरज के जनमवां, कहवा ही होखे ला अंजोरा
स्वर्ग में ही सूरज के जनमवा, कुरु खेते होखे ला अंजोर
गरजी के बोललन सूरज भल, के करहीं वरत हमार॥


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