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*[[कालिदास]] ने शूरसेन राज्य के अधिपति सुषेण का वर्णन किया है <ref>रघुवंश,सर्ग 6,45-51</ref>।  
 
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*कालिदास ने जिन विशेषणों का प्रयोग सुषेण के लिए किया है उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि वह एक प्रतापी शासक था, जिसकी कीर्ति स्वर्ग के [[देवता]] भी गाते थे और जिसने अपने शुद्ध आचरण से माता-पिता दोनों के वंशों को प्रकाशित कर दिया था। <ref>सा शूरसेनाधिपतिं सुषेणमुद्दिश्य लोकन्तरगीतकीर्तिम्।</ref>  
 
*कालिदास ने जिन विशेषणों का प्रयोग सुषेण के लिए किया है उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि वह एक प्रतापी शासक था, जिसकी कीर्ति स्वर्ग के [[देवता]] भी गाते थे और जिसने अपने शुद्ध आचरण से माता-पिता दोनों के वंशों को प्रकाशित कर दिया था। <ref>सा शूरसेनाधिपतिं सुषेणमुद्दिश्य लोकन्तरगीतकीर्तिम्।</ref>  
*सुषेण को विधिवत [[यज्ञ]] करने वाला, शांत प्रकृति का शासक बताया गया है, जिसके तेज़ से शत्रु लोग घबराते थे।  
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*सुषेण को विधिवत [[यज्ञ]] करने वाला, शांत प्रकृति का शासक बताया गया है, जिसके [[तेज़]] से शत्रु लोग घबराते थे।  
 
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  • कालिदास ने शूरसेन राज्य के अधिपति सुषेण का वर्णन किया है [1]
  • मगध, अंसु, अवंती, अनूप, कलिंग और अयोध्या के बड़े राजाओं के बीच शूरसेन-नरेश की गणना की गई है।
  • कालिदास ने जिन विशेषणों का प्रयोग सुषेण के लिए किया है उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि वह एक प्रतापी शासक था, जिसकी कीर्ति स्वर्ग के देवता भी गाते थे और जिसने अपने शुद्ध आचरण से माता-पिता दोनों के वंशों को प्रकाशित कर दिया था। [2]
  • सुषेण को विधिवत यज्ञ करने वाला, शांत प्रकृति का शासक बताया गया है, जिसके तेज़ से शत्रु लोग घबराते थे।
  • यहाँ मथुरा और यमुना की चर्चा करते हुए कालिदास ने लिखा है कि जब राजा सुषेण अपनी प्रेयसियों के साथ मथुरा में यमुना-विहार करते थे तब यमुना-जल का कृष्णवर्ण गंगाकी उज्जवल लहरों-सा प्रतीत होता था [3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रघुवंश,सर्ग 6,45-51
  2. सा शूरसेनाधिपतिं सुषेणमुद्दिश्य लोकन्तरगीतकीर्तिम्।
  3. यस्यावरोधस्तनचन्दनानां प्रक्षालनाद्वारि-विहारकाले

संबंधित लेख

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