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*इस व्रत में अपने आँगन में दसों दिशाओं के चित्रों की पूजा करनी चाहिए।
 
*इस व्रत में अपने आँगन में दसों दिशाओं के चित्रों की पूजा करनी चाहिए।
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*इस व्रत के करने से व्यक्ति की सभी आशाएँ ('आशा' का अर्थ 'दिशा' एवं अभिकांक्षा या इच्छा भी होता है) पूर्ण हो जाती हैं।<ref>हेमाद्रि व्रतखण्ड (1, 977-981), व्रतरत्नाकर (356-7)</ref>  
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06:32, 15 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत किसी शुक्ल पक्ष की दशमी पर आरम्भ करना चाहिए। यह व्रत 6 मास, 1 वर्ष या 2 वर्ष के लिए करना चाहिए।
  • इस व्रत में अपने आँगन में दसों दिशाओं के चित्रों की पूजा करनी चाहिए।
  • इस व्रत के करने से व्यक्ति की सभी आशाएँ ('आशा' का अर्थ 'दिशा' एवं अभिकांक्षा या इच्छा भी होता है) पूर्ण हो जाती हैं।[1]
  • व्रत जो कर रहा है यदि वृद्ध हो तो पूजा तब होनी चाहिए, जब दशमी पूर्वाह्नाँ में हो।

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि व्रतखण्ड (1, 977-981), व्रतरत्नाकर (356-7)

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