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*चारों दिशाओं में पूर्व से आरम्भ कर क्रम से [[ऋग्वेद]], [[यजुर्वेद]] एवं [[अथर्वेवेद]] की प्रतिमाएँ; दक्षिण-पूर्व कोण से आरम्भ कर क्रम से अंगों का पूजन किया जाता है।  
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*चारों दिशाओं में पूर्व से आरम्भ कर क्रम से [[ऋग्वेद]], [[यजुर्वेद]] एवं [[अथर्ववेद]] की प्रतिमाएँ; दक्षिण-पूर्व कोण से आरम्भ कर क्रम से अंगों का पूजन किया जाता है।  
 
*धर्मशास्त्रों, [[पुराण|पुराणों]] एवं न्यायविस्तर को रखा जाता है।  
 
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*एक [[वर्ष]] तक प्रत्येक [[मास]] की प्रथम तिथि से पूजा का आरम्भ और अन्त में गोदान किया जाता है।  
 
*एक [[वर्ष]] तक प्रत्येक [[मास]] की प्रथम तिथि से पूजा का आरम्भ और अन्त में गोदान किया जाता है।  

17:45, 12 जुलाई 2011 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ किया जाता है।
  • उपवास रखा जाता है।
  • रंगीन चूर्णों से अष्ट दल कमल का निर्माण करके; बीज कोष पर ब्रह्मा प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
  • चारों दिशाओं में पूर्व से आरम्भ कर क्रम से ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद की प्रतिमाएँ; दक्षिण-पूर्व कोण से आरम्भ कर क्रम से अंगों का पूजन किया जाता है।
  • धर्मशास्त्रों, पुराणों एवं न्यायविस्तर को रखा जाता है।
  • एक वर्ष तक प्रत्येक मास की प्रथम तिथि से पूजा का आरम्भ और अन्त में गोदान किया जाता है।
  • ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से कर्ता वेदज्ञ हो जाता है और बारह वर्षों में ब्रह्म लोक पहुँच जाता है।[1]; [2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णु धर्मोत्तपुराण (3|126|1-12)
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 343)

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