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*[[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के भोजन कराते है और प्रत्येक ब्राह्मण को 'ओं खखोल्काय' नामक मन्त्र के साथ 100 मरिच खाने होते हैं।  
 
*[[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के भोजन कराते है और प्रत्येक ब्राह्मण को 'ओं खखोल्काय' नामक मन्त्र के साथ 100 मरिच खाने होते हैं।  
*इस व्रत के करने से कर्ता को अपने प्रियजनों का वियोग दुख प्राप्त नहीं होता है।  
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*इस व्रत के करने से कर्ता को अपने प्रियजनों का वियोग दु:ख प्राप्त नहीं होता है।  
 
*[[राम]] एवं [[सीता]] तथा [[नल दमयन्ती|नल एवं दमयन्ती]] ने यह व्रत किया था।  
 
*[[राम]] एवं [[सीता]] तथा [[नल दमयन्ती|नल एवं दमयन्ती]] ने यह व्रत किया था।  
 
*हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि व्रत॰ 1, 696</ref>, और भविष्योत्तरपुराण<ref>भविष्योत्तरपुराण, 1|214|40-47</ref> से भी उद्धरण मिलता है।  
 
*हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि व्रत॰ 1, 696</ref>, और भविष्योत्तरपुराण<ref>भविष्योत्तरपुराण, 1|214|40-47</ref> से भी उद्धरण मिलता है।  

14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • मरिच सप्तमी चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर मनाई जाती है
  • इस व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है।
  • ब्राह्मणों के भोजन कराते है और प्रत्येक ब्राह्मण को 'ओं खखोल्काय' नामक मन्त्र के साथ 100 मरिच खाने होते हैं।
  • इस व्रत के करने से कर्ता को अपने प्रियजनों का वियोग दु:ख प्राप्त नहीं होता है।
  • राम एवं सीता तथा नल एवं दमयन्ती ने यह व्रत किया था।
  • हेमाद्रि[1], और भविष्योत्तरपुराण[2] से भी उद्धरण मिलता है।

 

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि व्रत॰ 1, 696
  2. भविष्योत्तरपुराण, 1|214|40-47

अन्य संबंधित लिंक

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