"पद्मक योग" के अवतरणों में अंतर
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− | *जब [[रविवार]] [[सप्तमी]] से युक्त [[षष्ठी]] को होता है तो इसे पद्मकयोग कहते हैं, जो सहस्र सूर्य ग्रहणों के समान है।<ref>पुरुषार्थचिन्तामणि (105); व्रतराज (249 | + | *जब [[रविवार]] [[सप्तमी]] से युक्त [[षष्ठी]] को होता है तो इसे पद्मकयोग कहते हैं, जो सहस्र सूर्य ग्रहणों के समान है।<ref>पुरुषार्थचिन्तामणि (105); व्रतराज (249</ref> |
*जब सूर्य [[विशाखा नक्षत्र]] में और चन्द्र कृत्तिका में हो तो पद्मकयोग होता है।<ref>हेमाद्रि (काल॰ 679, शंख से उद्धरण); कालविवेक (390, पद्म एवं विष्णुपुराण से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (430); स्मृतिकौस्तुभ (400);</ref> | *जब सूर्य [[विशाखा नक्षत्र]] में और चन्द्र कृत्तिका में हो तो पद्मकयोग होता है।<ref>हेमाद्रि (काल॰ 679, शंख से उद्धरण); कालविवेक (390, पद्म एवं विष्णुपुराण से उद्धरण); कृत्यरत्नाकर (430); स्मृतिकौस्तुभ (400);</ref> | ||
*कालविवेक ने व्याख्या की है कि सूर्य विशाखा के चतुर्थ चरण में तथा चन्द्र कृत्तिका के प्रथम चरण में होना चाहिए। | *कालविवेक ने व्याख्या की है कि सूर्य विशाखा के चतुर्थ चरण में तथा चन्द्र कृत्तिका के प्रथम चरण में होना चाहिए। | ||
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12:52, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- जब रविवार सप्तमी से युक्त षष्ठी को होता है तो इसे पद्मकयोग कहते हैं, जो सहस्र सूर्य ग्रहणों के समान है।[1]
- जब सूर्य विशाखा नक्षत्र में और चन्द्र कृत्तिका में हो तो पद्मकयोग होता है।[2]
- कालविवेक ने व्याख्या की है कि सूर्य विशाखा के चतुर्थ चरण में तथा चन्द्र कृत्तिका के प्रथम चरण में होना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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