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*[[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] या [[चर्तुदशी]] पर नक्त विधि शिवनक्तव्रत किया जाता है। | *[[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] या [[चर्तुदशी]] पर नक्त विधि शिवनक्तव्रत किया जाता है। | ||
− | *[[इहलोक]] में आनन्द एवं मृत्युपरान्त [[शिवलोक]] की प्राप्ति होती है।<ref> | + | *[[इहलोक]] में आनन्द एवं मृत्युपरान्त [[शिवलोक]] की प्राप्ति होती है।<ref>कृत्यकल्पतरु 386); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 398, [[भविष्यपुराण]] से उद्धरण</ref> |
*ऐसी मान्यता है कि एक वर्ष के प्रत्येक पर्व पर नक्त रहना चाहिए। | *ऐसी मान्यता है कि एक वर्ष के प्रत्येक पर्व पर नक्त रहना चाहिए। | ||
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*अष्टमी, [[नवमी]], [[त्रयोदशी]] एवं चतुर्दशी पर कर्ता केवल एकभक्त रहता है, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर रखा भोजन करता है। | *अष्टमी, [[नवमी]], [[त्रयोदशी]] एवं चतुर्दशी पर कर्ता केवल एकभक्त रहता है, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर रखा भोजन करता है। | ||
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12:57, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चर्तुदशी पर नक्त विधि शिवनक्तव्रत किया जाता है।
- इहलोक में आनन्द एवं मृत्युपरान्त शिवलोक की प्राप्ति होती है।[1]
- ऐसी मान्यता है कि एक वर्ष के प्रत्येक पर्व पर नक्त रहना चाहिए।
- एक वर्ष तक शिव पूजा करनी चाहिए।[2]
- अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी एवं चतुर्दशी पर कर्ता केवल एकभक्त रहता है, पृथ्वी पर रखा भोजन करता है।
- शिवनक्तव्रत एक वर्ष तक करना चाहिए।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु 386); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 398, भविष्यपुराण से उद्धरण
- ↑ कृत्यकल्पतरु व्रत खण्ड 386
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्द 386-387
संबंधित लेख
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